Sunday, September 19, 2010

माया महा ठगिनी हम जानी

भगवान की लीला अपरम्पार है। उसने सम्पूर्ण जगत की रचना की है,जीवधारियों को बनाया है पेड पौधे वनस्पतियों को बनाया है,सबके लिये अपने अपने अनुसार भोजन और निवास की व्यवस्था की है। जीव जगत की रचना की विधि भी बहुत ही अजीब है,जिसे गहन अध्ययन के बाद भी समझ पाना मुश्किल है बडे बडे ऋषि मुनि तपस्या करने के बाद इस ज्ञान की प्राप्ति के लिये शतत प्रयत्न करने के बाद भी उस ज्ञान को नही प्राप्त कर पाये जिसके लिये आज भी जीव के रूप में बुधिधारी जीव अपनी अपनी गति के लिये भागा भागा घूम रहा है। सभी को अपने अपने अनुसार के साधन उस परमपिता ने उपलब्ध करवाये है। जानवरों को सींग पंजे नाखून हिंसक वृत्ति दी है,तो उन्ही जानवरों को भागने के लिये खुर देकर भी योग्य बनाया है,जो जितना भाग लेता है वह उतना ही सबल और हिंसक जानवरों से दूर रह कर अपने जीवन को अधिक जी लेता है। मनुष्य को उसने बुद्धि वाला हथियार दिया है,वह अपनी बुद्धि के द्वारा अपने को कितनी ही दूर बिना कोई श्रम किये ले जाता है,बिना श्रम के वह बडे बडे काम कर लेता है,पहाडों को काटकर रास्ते बना लेता है,पानी के अन्दर भी अपने जीवन को बिताने के लिये बडे बडे पोतों का निर्माण कर लेता है,बडी बडी मशीनों को बनाकर वह बडे बडे काम कर लेता है।सभी अपनी अपनी पूरकता वाली बुद्धि के बल अपना अपना जीवन जी रहे है। कोई जमीन को उपजाऊ बनाने में लगा है और वह अपने श्रम से अनाज और सब्जियां तथा फ़लों को पैदा कर रहा है,कोई उन अनाजों को विभिन्न प्रकार के स्वादों में बनाकर बेच रहा है,कोई सब्जी को पैदा कर रहा है और उन सब्जियों को पौष्टिक बनाकर और स्वाद वाली बनाकर लोगों को परोस रहा है। जिसे देखो वह एक दूसरे के काम की पूरकता के लिये अपने अपने बुद्धि वाले श्रम को कर रहे है। एक मशीन को बना रहा है तो दूसरा उस मसीन को प्रयोग करने के बाद काम कर रहा है,तो एक उस मशीन के खराब होने पर उसे रिपेयर कर रहा है। कोई मोटर गाडी को बना रहा है तो कोई उसे चलाकर सामान और सवारियों को लेकर जा रहा है,कोई उसे बना रहा है तो कोई बाद जब वह बिलकुल बेकार हो गयी है तो उसे काट कूट कर उसके अंशों को बेच रहा है।
किसी को सात्विक विचार और बुद्धि दी है जिससे वह अपने विचारों को लोगों की भलाई के लिये लगा रहा है और निर्माण वाली बातें बता रहा है,तो किसी को तामसिक बुद्धि दी है जिससे वह अपने हिंसक बनकर सात्विक लोगों को काट रहा है,उनके लिये बुराइयां पैदा कर रहा है,जो निर्माण किया जा रहा है उसका विध्वंश कर रहा है,किसी को बुद्धि दी है कि वह इन दोनो प्रकार के लोगों के बीच की दूरी को समझा बुझाकर दूर कर रहा है,किसी को न्याय और कानून की बुद्धि दी है जिससे वह किये गये अपराध की सजा दे रहा है,कोई दुश्मनी से मार रहा है तो कोई दोस्ती से बचा रहा है,कोई छुरा लेकर काट रहा है तो कोई डाक्टर बन कर उस कटे को सिल रहा है। कोई जानवरों को दाना पानी खिला रहा है तो कोई जानवरों को ही काट कर खा रहा है,कोई मंदिर में घंटी बजा रहा है तो कोई मंदिर में आने वाले के जूते चप्पल ही ले जा रहा है,कोई पानी पिला रहा है तो कोई बेकार में पानी को बहा रहा है,कोई खाना खा रहा है तो कोई खाना खिला रहा है। खाना खाने और खिलाने के बीच में जो काम रहे है वे खाना खाने वाले और खिलाने वाले के लिये सहायता का काम कर रहे है।
यह सब कुदरत यानी भगवान की माया के चलते हो रहा है। इस माया को पहिचानने के लिये जब कोई प्रयत्न करता है तो वह या तो बुद्ध का रूप धारण कर लेता है या जगत की आस्था को त्याग कर अपने शरीर को उसी माया को पहिचानने के लिये घर से निकल पडता है। वह भटकाव में लग जाता है,कभी किसी शहर में जाता है कभी किसी धर्मस्थान में जाता है,कभी गांव में जाकर लोगों की आस्था बनता है तो कभी जंगलों में जाकर अपने शरीर को तपाने लगता है,लेकिन तब भी माया के इस जंजाल को नही समझ पाता है तो वापस आकर फ़िर से दुनिया के लोगों को देखने लगता है। कोई सांप को भी बच्चे की तरह से पालता है तो कोई बच्चे को भी सांप की तरह से मारता है। कोई मंदिर जाकर भगवान की मूर्ति के दर्शन करता है तो कोई मंदिर के पुजारी के सो जाने पर मंदिर की मूर्ति के गहने कपडे ही उतार ले जाता है,कोई मंदिर में भगवान में के लिये घंटा चढाता है तो कोई उसे बजाता है कोई मनचला उसे उतार कर बर्तन वाली दुकान पर बेच आता है। कोई मंदिर में जाकर भगवान से अपनी नौकरी की प्रार्थना कर रहा है तो कोई बेईमानी से कमाये गये धन को सुरक्षित रखने के लिये प्रार्थना करता है,कोई अपने आदमी की कुशल क्षेम के लिये प्रार्थना करता है तो हजारों में कोई एक जगत कल्याण की भावना से भगवान से प्रार्थना करता है। कोई रोजाना मंदिर जाता है तो कोई महिने में एक बार ही जाता है,कोई तो बिलकुल मंदिर जाता ही नही है। लेकिन परमपिता परमेश्वर सभी को भोजन देते है,सभी को वस्त्र देते है,सभी सर्दी गर्मी से बचने के लिये मकान का इंतजाम करवाते है। कोई रहने के लिये धर्मशाला का निर्माण करवा रहा है तो कोई आकर उस धर्मशाला में ठहर रहा है,किसी को धर्मशाला में ठहरने वालों के लिये इंतजाम में लगा दिया है तो किसी किसी को धर्मशाला में ठहरने वालों का आँख चूकने पर सामान उठाने के लिये ही लगा रखा है,कोई सामान ले जाकर खुश हो रहा है कोई सामान के जाने से रो रहा है। कोई आपत्ति को झेल रहा है कोई आपत्ति के समय सहायता दे रहा है,कोई दर्द दे रहा है तो कोई दर्द लेकर तडप रहा है यह माया का रूप है।
किसी को पढने के लिये बनाया है किसी को लिखने के लिये बनाया है,कोई बोलने में चतुर है कोई लिखने में चतुर है,कोई बोलने और लिखने के साथ पढने में भी बुद्धू है,हर किसी को एक जैसा ईश्वर ने नही बनाया है,अगर हर किसी को एक जैसा बना देता तो माया का रूप ही नही रहता। माया के रूप को समझने के लिये माया का ही रूप धारण करना पडता है। कोई खर्च करने के लिये दे रहा है तो कोई खर्च कर रहा है,और कोई दिये गये खर्चे को बिना किसी मेहनत के लूट रहा है। गृहस्थियां सभी की चल रही है,गरीब भी रोटी खाकर जिंदा है,अमीर भी रोटी खाकर जिंदा है,रोटी का रूप अलग अलग बना दिया गया है,कहीं पर वह साधारण रोटी बन गयी है तो कहीं पर वह डबल रोटी बन गयी है,कहीं पर वह नान बन गयी है तो कहीं पर वह तंदूर की रोटी बन गयी है,कहीं पर उसमें थोडा सा घी लगाया तो वह पराठा बन गया है और उसे घी के अन्दर ही सेंक लिया है तो अह रोटी पूडी बन गयी है,कहीं पर उसके अंदर सब्जी भर दी है तो वह पीजा बन गयी है और कहीं पर आलू भर दिया या दाल भर दी है तो वह कचौडी बन गयी है। लेकिन वह है रोटी ही। कोई दूध पीकर अपनी बाहें फ़ुला रहा है तो कोई शराब पीकर अपना मँह फ़ुला रहा है,कोई मीठी मीठी बातें कर रहा है तो कोई गाली देकर बातें कर रहा है,कोई कोई कभी कभी मीठी और कभी कभी गाली देकर भी बात कर रहा है। यह भी माया का ही रूप है।
किसी की बहू आराम देने वाली आयी है तो किसी की परेशानी देने के लिये ही आयी है,कोई अपने परिवार को सम्भालने के लिये आयी है तो कोई अपने परिवार को बरबाद करने के लिये आयी है। कोई अपने पति को दूसरों की सहायता के लिये कहती है तो कोई दूसरों से सहायता लेने के लिये कहती है,कोई सभी परिवार वालों के साथ मगन है तो कोई अकेली रहकर ही मगन है,कोई सोने में मगन है तो कोई जागने में मगन है। किसी को रुलाने में मजा आ रहा है तो किसी को हँसाने में मजा आ रहा है,कोई बिच्छू जैसा डंक मारती है तो कोई गुलाब जैसी महक बिखेरती है। कोई सास की भली है और कोई सास की बुरी है,किसी की सास बडाई करते करते नही थकती है तो किसी की सास बुराई करते करते नही थकती है। यह भी माया का खेल है।
यह माया घात लगाकर भी बैठी है। चोर के रूप में चोरी करने की घात लगाये बैठी है,डकैत के रूप में डकैती डालने के रूप में घात लगाये बैठी है। बनिया के रूप में ग्राहक के लिये घात लगाये है तो शिकारी के रूप में शिकारी की घात लगाये है,किसान मौसम की घात लगाये बैठा है तो व्यापारी व्यापार की घात लगाये बैठा है। कोई नाम कमाने की घात में बैठा है तो कोई दाम कमाने की घात में बैठा है। कोई घात लगाकर बैठा है कि राजनीति में दाव लग जाये तो कोई घात लगाकर बैठा है कि समाज में उच्च आसन मिल जाये,कोई मंत्री पद की घात में है तो कोई संतरी के पद की घात में ह। बडी बहू सास के जेवर पर घात लगाये बैठी है तो छोटी बहू ससुर के दाम पर घात लगाये बैठी है। बडा लडका पिता की लम्बी उम्र की कामना करने के बाद पिता की सहायता लेने की घात में बैठा है तो छोटा लडका स्वर्गवासी होने की घात में बैठा है कि कब पिता मरे और माल पर कब्जा हो। पत्नी पति पर घात लगाये है कि कहीं सौत से तो नही मिल रहा है और पति पत्नी पर घात लगाये बैठा है कि कहीं यह अपने बचपन के यार से तो नही मिलती है। पुत्र माता पर घात लगाये है कि कब माता की नजर चूके और फ़्रिज में रखा सामान उसके काम आये,पिता की कब नजर चूके और वह अपने दोस्तों के साथ खेलने को जाये,पुत्री अपनी घात लगाये है कि कब पिता का मोबाइल खाली मिले और अपने दोस्तों से बातें करे,पोता अपनी घात लगाये है कि कब दादा तख्त से दूर हों और उनके चश्मे से खेला जाये या लगाकर देखा जाये,पोती अपनी घात लगाकर बैठी है कि दादा कब सोयें और उनकी छडी को लेकर लान में खेला जाये। किरायेदार घात लगाकर मकान पर कब्जा करने के चक्कर में है तो मकान मालिक किरायेदार को खाली करवाने के चक्कर में है। नेता बाढ आने की घात लगाकर बैठा है तो अभिनेता किसी धनी प्रोड्यूसर की घात में है। यात्रा करने वाला गाडी आने और सीट मिलने की घात में है तो गाडी वाला अधिक से अधिक सवारी कहाँ से मिलेंगी उस स्थान की घात में है। रेल वाला रेल की घात में है और खेल वाला खेल की घात में है। मौत भी अपने अपने रूप में घात लगाये बैठी है कि कब घात लगे और जीव का काम तमाम किया जा सके,कब इसकी नजर चूके और कब इसके साथ टक्कर मारी जाये। डाक्टर मरीज की घात लगाये बैठा है कि कब धनी मरीज आये और अधिक से अधिक टेस्ट करवाकर धन ऐंठा जाये,मरीज अपनी घात लगाये है कि डाक्टर को कम से कम मर्ज बताकर कम से कम में इलाज करवालिया जाये। माता पिता अपने पुत्र के लिये घात लगाकर बैठे है कि कब कोई धनी लडकी वाला आकर उनके लडके का रिस्ता कर जाये और लडकी वाले अपनी घात लगाकर बैठे है कि कब कोई बिना धन मांगने वाला लडका शादी के लिये मिले। दुकान वाला अधिक से अधिक धन कमाने के लिये घात लगाये है तो ग्राहक कम से कम में सामान लेने की घात लगाकर बैठा है।
माया का काम ठीक करने के बाद मारना होता है। वह मरीज को आराम देने के बाद मारती है,जानवर को दौडा दौडा कर ही मारती है,माया ने अपनी जान का लोभ दे रखा है। अगर जान का लोभ नही होता तो यह शरीर रोजाना मार दिया जाता,जान से मरने पर दर्द भी दिया है। मनुष्य को दर्द की पहिचान है,वह अपने पांव में कांटा चुभने का दर्द पहिचानता है,लेकिन जानवर को काटने के समय उस जानवर की तडप जो उसे मजा देती है उसे वह भूल गया होता है कि सभी के लिये यह माया वही दर्द वाली मौत लेकर बैठी है। किसी को कैंसर का मरीज बना दिया,कैंसर मुँह का दे दिया। तडप से बोल भी नही सके,तडप और दर्द से भोजन भी नही खा सके,इतना दर्द होता है कि जानवर के काटने के समय तो कुछ भी दर्द नही होता है,तीन चार मिनट में जानवर का तो काम तमाम हो जाता है लेकिन केंसर का रोग सालों साल बिस्तर पर तडपाता है। फ़िर भी मानव को दर्द नही होता है वह कल की बात को भूल जाता है। उसका माया ने काल के रूप में कल उसका स्वागत किया था,उसे किसी मानव से ही या खुद से ही टक्कर मार कर घायल किया था,उसके दर्द हुआ था,उसे अस्पताल पहुँचाया गया था उसक मरहम पट्टी हुयी थी,कई लोग उसकी सहायता के लिये आये थे,कोई दोस्ती का बल लेकर कोई परिवार के सदस्य के रूप में सभी ने अपने अपने अनुसार दर्द का बखान किया था,लेकिन उस दर्द को याद नही किया,लेकिन जब मानव अस्पताल से घर आया तो वही काटने का रूप लेकर चलने लगा,और एक दिन बिना किसी पहले की जानकारी के जब वह ठीक हो गया तो उसे तडपाकर ही माया ने मार डाला।
एक दूसरे को काटने का नाम भी माया है। धर्म के नाम पर माया धर्माधिकारी बन कर काट रही है। राज्य के नाम पर राजकीय अधिकारी बन कर काट रही है। समाज के अन्दर समाजसेवी नेता बन कर काट रही है। न्याय के नाम से काट रही है,कानून के नाम से काट रही है,सुरक्षा के नाम से काट रही है,देश समाज नगर गांव में रहने के नाम से काट रही है,इस माया के काटने से कोई नही बचा है। पुत्र पिता का नाम लेकर पिता को काट रहा है,पत्नी पति का नाम लेकर पति को काट रही है,मित्र दोस्ती का नाम लेकर काट रहे है,दुश्मन दुश्मनी का नाम लेकर काट रहे है जिसे देखो वह काटने में लगा है,कोई मीठा बोलकर और अपनी तेज बुद्धि से काट रहा है कोई अपने रूप को दिखाकर काट रहा है,कोई सजधज कर काट रहा है कोई नंगा होकर काट रहा है। सभी एक दूसरे को काटने में लगे हैं। साधू अपनी तपस्या से जीवन को काटने में लगा है,वह अपनी उम्र को भगवान के नाम से काट रहा है,पतिव्रता पत्नी अपने पतिव्रत धर्म को निभाकर काटने में लगी है,दानी दान देकर काट रहा है,तो भिखारी भीख लेकर अपनी काट रहा है। किसान फ़लस को काट रहा है तो लकडाहारा लकडी को काट रहा है,कसाई जानवर को काट रहा है तो यात्री मंजिल को काट रहा है। बैंक ब्याज के नाम से काट रही है तो जमा करने वाला धन को जमा करने के बाद ब्याज से काट रहा है। मकान मालिक किराये से काट रहा है तो किरायेदार मकान मालिक को किराया देकर काट रहा है। अभिनेता नाच गाकर काट रहा है तो नेता भाषण देकर काट रहा है। लेखक लिख कर काट रहा है तो पडने वाला अपनी राय अच्छी या बुरी देकर काट रहा है। कोई नीचा दिखाकर काट रहा है तो कोई ऊँचा दिखाकर काट रहा है,कोई महलों में काट रहा है तो कोई झोपडी में काट रहा है,कोई पानी में काट रहा है तो कोई जमीन में काटकर खुश है,कोई आसमान में ही अपनी काट रहा है। कोई दया से कोई धर्म से कोई जल्लाद बनकर कोई फ़रियादी बन काट रहा है,माया ने संसार में ऐसा कोई स्थान नही छोडा जहाँ वह काटने के लिये तैयार नही मिली। यहाँ तक कि जब जंगल में जाकर गुफ़ा के अन्दर जीवन काटने का मन हुआ तो पता नही कहाँ से आकर एक बिच्छू ने ही काट लिया।

No comments: