Tuesday, September 14, 2010

13 मेरा 7

अंक तेरह का कमाल अक्सर देखने को मिल जाता है,हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस अंक के देवता को भगवान शिव के रूप में माना जाता है और त्रयोदशी का उपवास इसी अंक की महिमा के लिये किया जाता है। इस अंक की हिब्रू वर्णमाला में एक उत्पत्ति मिलती है कि एक व्यक्ति जिसके अन्दर शारीरिक शक्ति नही होने के बावजूद उसके सितारे उसे इतना समर्थ बना लेते है कि वह असहाय लोगों के लिये कुछ करने की हैसियत रखता है,इस अंक का जोड चार माना जाता है और जितनी भी संख्यायें इस अंक से सम्बन्धित होती है,वे सभी इस अंक वाले के लिये समान विचार वाली संख्यायें होती है। यह वास्तव में केतु का अंक है और इसके सामने जो अंक आता है वह नम्बर सात के लिये माना जाता है। नम्बर सात राहु का नम्बर है और यह नम्बर अपने अपने अनुसार केतु को शक्ति प्रदान करता जाता है। अंक सात और अंक तेरह का आपसी सम्बन्ध आदि काल से चला आ रहा है,शक्ति की सीमा दुर्गा में है तो शक्ति को साधने वाला शिव ही माना जा सकता है। बिना शिव के शक्ति को साधने वाला कोई नही है। वह बडी से बडी शक्ति को धारण करने और शक्ति का उपयोग तप के आधार पर करता है। बिना तप किये शक्ति को धारण करना हर किसी के बस की बात नही होती है। शिव रूप बनकर अगर शक्ति रूपी विद्या का ग्रहण किया जायेगा तो वह विद्या रूपी शक्ति साधक को अपना फ़ल जरूर प्रदान करेगी,सिद्धि को भी प्राप्त करने के लिये शक्ति की उपासना करना बहुत जरूरी माना जा सकता है। केतु का दूसरा रूप मंगल की प्रकृति का भी माना जा सकता है,केतु का असली रूप साधन के रूप में सामने होता है,लेकिन बिना शक्ति के साधन की महिमा भी नही कही जा सकती है। केतु को जो भी ग्रह बल देता है वह ही केतु के लिये मान्य हो जाता है,वह चाहे स्थान बल हो या वह विद्या का बल हो,केतु को बल मिलते ही वह अपने में समर्थ हो जाता है। केतु से जो भाव चौथे भाव मे होता है और जो ग्रह होता है उस भाव से सम्बन्धित कारकों को और उस ग्रह से सम्बन्धित कारकों को केतु सम्भालने का कार्य करता है।
प्रस्तुत कुंडली तेरह दिसम्बर की है और जातक का जन्म का समय अज्ञात है। लेकिन भचक्र की राशियों के अनुसार जातक के लिये जीवन के मिलान को समझा जाये तो जातक का मंगल कन्या राशि का है,यानी जातक का चलता हुआ नाम कन्या राशि से होना चाहिये,दूसरे मंगल पर अपना असर देने वाले ग्रह चौथे भाव का केतु दसवें भाव का राहु अपना पूर्ण बल दे रहा है,केतु को सूर्य और बुध ने अपना बल अष्टम भाव से दिया है,राहु ने अपना बल अपने आसपास के दोनो भावों और उन भावों में विराजमान ग्रहों से भी लिया है,तथा अपना पूरा बल लेकर मंगल को प्रेषित किया है,इस तरह से जातक का मंगल सर्वसमर्थ माना जाता है। इस मंगल ने द्रश्य रूप से शुक्र को सम्भाला हुआ है,जो भाग्य और धर्म भाव में है,इस मंगल की सप्तम द्रिष्टि बारहवे भाव में भी है और यह मंगल लगन को पूरी तरह से कंट्रोल में लिये हुये है। लेकिन केतु से दसवें भाव में लगन होने से जातक को वही कार्य करना होता है जो केतु की तरफ़ से मिलता है। केतु कुंडली के अनुसार मंगल को देख रहा है,अन्दरूनी रूप से सूर्य और बुध को भी देख रहा है,लालकिताब के अनुसार छठे और बारहवें भाव के ग्रह आपसकी गुपचुप नीति को कायम रखते है,और जो वे कार्य करते है किसी को पता नही होता है।राहु को शनि चन्द्र और शुक्र और मन्गल का सानिध्य प्राप्त है,केतु को सूर्य और मन्गल का सानिध्य मिला है। राहु ने मंगल को भी बल दिया है और केतु ने भी पूरा बल दिया है। लगनेश मंगल को बल देने के कारक केतु और राहु होने से मंगल को विराट बल की प्राप्ति हो जाती है। केतु उसी बल का प्रयोग करने लगता है और मंगल को संभालने की औकात केतु के अन्दर आजाती है,बचा खुचा बल सूर्य केतु देते है। दिशाओं के अनुसार देखा जाये तो सूर्य और बुध दोनो ही भारतवर्ष की दक्षिण पश्चिम दिशा से सम्बन्ध रखते है,कारण वृश्चिक राशि दक्षिण पश्चिम दिशा की कारक है। सूर्य राजनीति से सम्बन्ध रखता है और बुध कानून और संचार व्यवस्था से। कर्क राशि जनता से सम्बन्धित मानी जाती है और कर्क राशि का केतु सूर्य से सम्बन्ध रखने के कारण जनता का नेता माना जाता है। कर्क के केतु से गुरु चौथे भाव मे होने से और गुरु के पीछे मंगल तथा आगे सूर्य बुध होने से केतु का सम्बन्ध पश्चिम दिशा से होता है,और उसे पश्चिम दिशा को कन्ट्रोल करना आता है,गुरु के पीछे मंगल होने से क्षत्रिय जाति से सम्बन्ध रखता है,जातक का सम्बन्ध क्षत्रिय जाति से होता है,जो पश्चिम दिशा में स्थापित होती है। मंगल का सम्बन्ध राहु से होने से मंगल जो क्षत्रिय जाति से सम्बन्ध रखता है वह सूखे और पानी विहीन क्षेत्र की तरफ़ इशारा करती है। राहु से आगे शनि चन्द्र होने से शनि वाली फ़सलें जैसे खेजडा और कांटों से युक्त जमीन के लिये माना जा सकता है। यानी जातक का सम्बन्ध ऐसे स्थान से होता है जो भूभाग के पश्चिम में स्थापित होता है,और बिना पानी के रेगिस्तानी इलाका होता है,तथा उस दिशा में कंटीले और सूखे पेड पैदा होते है। गुरु से आगे सूर्य और बुध होने से जातक के एक पुत्र और एक पुत्री होते है,लेकिन गुरु से तीसरे भाव में धनु राशि में शुक्र होने से जातक का आशियाना महानगर में होता है,और जातक के पुत्र और पुत्री का निवास उसी आशियाने में होता है। लगनेश मंगल के चौथे भाव में शुक्र होने से जातक का रूप कानूनी जानकार के रूप में होता है। यानी जातक ने कानूनी विद्या भी प्राप्त की होती है। जातक को गरीबों से अपने समर्थक खोजने में दिक्कत नही होती कारण सूर्य जो शमशानी राशि में है राजनीति के लिये काफ़ी माना जाता है। दक्षिण पश्चिम के लोग और पश्चिम के लोग मान्यता देते है,जिस स्थान पर शुक्र विराजमान है वह मर्यादा से पूर्ण व्यक्तित्व की मीमांशा करता है,लोग मर्यादा का भी ख्याल करते है। यह शुक्र जब धनु राशि का होता है और गुरु से द्र्ष्ट होता है तो शुक्र को एक ऐसी स्त्री के रूप में देखा जाता है जो सभी साधनो से पूर्ण हो,इस प्रकार की स्त्री का बल जातक को मिलता है। शुक्र से पीछे सूर्य और बुध के होने से उस स्त्री का पिता भी राजनीतिक रहा हो और बुध उस स्त्री का सहायक हो और बुध ही राजनीति का कारक हो। केतु के द्वारा जिस मंगल को शासित किया जा रहा है वह मंगल अपनी पूर्ण चौथी द्रिष्टि से शुक्र के जीवन में अपघात भी करता हो,लेकिन केतु की द्रिष्टि राजनीति रूप से उसके साथ हो। उसी मंगल के द्वारा जातक की लगन को पूर्ण अष्टम द्रिष्टि से देखा जाना भी जातक के जीवन के लिये  खुद की ही राजनीति अपघात के लिये मानी जाती हो। इस कुंडली में बुध मंगल का परिवर्तन योग भी है। बुध जो राजनीति का कारक है वह अपना स्थान मंगल के साथ और मंगल बुध के स्थान पर भी अपने अपने समय पर काम कर रहा हो। यह मंगल कभी रक्षा करने वाला और कभी मौत देने वाला भी माना जाता है,यह छठे स्थान पर बैठ कर रक्षा भी करता है और कानून के रूप में बुध के स्थान पर जाने पर यह मौत भी देता है। यह मंगल अपनी पूरी ताकत से शुक्र को भी कंट्रोल कर रहा है,शुक्र कानून के स्थान पर है विदेशी सम्बन्धो के स्थान पर है,मतलब यह जातक कानून और विदेशी सम्बन्धो को भी कंट्रोल करने के लिये उत्तम स्थान ग्रहण कर रहा है,लेकिन बुध का स्थान परिवर्तन का कारण शासित पार्टी इस स्थान का पूरा पूरा फ़ायदा उठाकर मंगल का रूप ग्रहण करने के बाद अपनी तरह से कानून बनाने और कानून को संभालने तथा कानूनी रूप से अपना फ़ायदा उठाने के लिये भी माना जायेगा।

1 comment:

Unknown said...

PANDITJI AAJ TAK MAINE KABHI NAHI SOCHA THA KI KUNDLI KE YE BARAH KHANE KISI WYAKTI KE BARE MAIN ITNA KUCH BATA SAKTE HAI. SAHI MAIN AAP DHANYA HAI.