Monday, March 22, 2010

ऊँ और स्वास्तिक का महत्व

स्वास्तिक भारतीयों में चाहे वे वैदिक मतालम्बी हों या सनातनी हो या जैन मतालम्बी,ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र सभी मांगलिक कार्यों जैसे विवह आदि संस्कार घर के अन्दर कोई भी मांगलिक कार्य होने पर "ऊँ" और स्वातिक का दोनो का अथवा एक एक का प्रयोग किया जाता है। इन दोनो का प्रयोग करने का तरीका यह जरूरी नही है कि वह पढे लिखे या विद्वान संगति में ही देखने को मिलता हो,यह किसी भी ग्रामीण या शहरी संस्कृति में देखने को मिल जाता है। किसी के घर में मांगलिक कार्य होते है तो दरवाजे पर लिखा जाता है,किसी मंदिर में जाते है तो उसके दरवाजे पर यह लिखा मिलता है,किसी प्रकार की नई लिखा पढी की जाती है तो शुरु में इन दोनो को या एक को ही प्रयोग में लाया जाता है। "ऊँ" के अन्दर तीन अक्षरों का प्रयोग किया जाता है,"अ उ म" इन तीनो अक्षरों में अ से अज यानी ब्रह्मा जो ब्रह्माण्ड के निर्माता है,सृष्टि का बनाने का काम जिनके पास है,उ से उनन्द यानी विष्णुजी जो ब्रह्माण्ड के पालक है और सृष्टि को पालने का कार्य करते है, म से महेश यानी भगवान शिवजी,जो ब्रह्माण्ड में बदलाव के लिये पुराने को नया बनाने के लिये विघटन का कार्य करते है। वेदों में ऊँ को प्रणव की संज्ञा दी गयी है,जब भी किसी वेद मंत्र का उच्चारण होता है तो ऊँकार से ही शुरु किया जाता है,स्वास्तिक को चित्र के रूप में भी बनाया जाता है और लिखा भी जाता है जैसे "स्वास्ति न इन्द्र:" आदि.
हिन्दू समाज में किसी भी शुभ संस्कार में स्वास्तिक का अलग अलग तरीके से प्रयोग किया जाता है,बच्चे का पहली बार जब मुंडन संस्कार किया जाता है तो स्वास्तिक को बुआ के द्वारा बच्चे के सिर पर हल्दी रोली मक्खन को मिलाकर बनाया जाता है,स्वास्तिक को सिर के ऊपर बनाने का अर्थ माना जाता है कि धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों का योगात्मक रूप सिर पर हमेशा प्रभावी रहे,स्वास्तिक के अन्दर चारों भागों के अन्दर बिन्दु लगाने का मतलब होता है कि व्यक्ति का दिमाग केन्द्रित रहे,चारों तरफ़ भटके नही,वृहद रूप में स्वास्तिक की भुजा का फ़ैलाव सम्बन्धित दिशा से सम्पूर्ण इनर्जी को एकत्रित करने के बाद बिन्दु की तरफ़ इकट्ठा करने से भी माना जाता है,स्वास्तिक का केन्द्र जहाँ चारों भुजायें एक साथ काटती है,उसे सिर के बिलकुल बीच में चुना जाता है,बीच का स्थान बच्चे के सिर में परखने के लिये जहाँ हड्डी विहीन हिस्सा होता है और एक तरह से ब्रह्मरंध के रूप में उम्र की प्राथमिक अवस्था में उपस्थित होता है और वयस्क होने पर वह हड्डी से ढक जाता है,के स्थान पर बनाया जाता है। स्वास्तिक संस्कृत भाषा का अव्यय पद है,पाणिनीय व्याकरण के अनुसार इसे वैयाकरण कौमुदी में ५४ वें क्रम पर अव्यय पदों में गिनाया गया है। यह स्वास्तिक पद ’सु’ उपसर्ग तथा ’अस्ति’ अव्यय (क्रम ६१) के संयोग से बना है,इसलिये ’सु+अस्ति=स्वास्ति’ इसमें ’इकोयणचि’सूत्र से उकार के स्थान में वकार हुआ है। ’स्वास्ति’ में भी ’अस्ति’ को अव्यय माना गया है और ’स्वास्ति’ अव्यय पद का अर्थ ’कल्याण’ ’मंगल’ ’शुभ’ आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है। जब स्वास्ति में ’क’ प्रत्यय का समावेश हो जाता है तो वह कारक का रूप धारण कर लेता है और उसे ’स्वास्तिक’ का नाम दे दिया जाता है। स्वास्तिक का निशान भारत के अलावा विश्व में अन्य देशों में भी प्रयोग में लाया जाता है,जर्मन देश में इसे राजकीय चिन्ह से शोभायमान किया गया है,अन्ग्रेजी के क्रास में भी स्वास्तिक का बदला हुआ रूप मिलता है,हिटलर का यह फ़ौज का निशान था,कहा जाता है कि वह इसे अपनी वर्दी पर दोनो तरफ़ बैज के रूप में प्रयोग करता था,लेकिन उसके अंत के समय भूल से बर्दी के बेज में उसे टेलर ने उल्टा लगा दिया था,जितना शुभ अर्थ सीधे स्वास्तिक का लगाया जाता है,उससे भी अधिक उल्टे स्वास्तिक का अनर्थ भी माना जाता है। स्वास्तिक की भुजाओं का प्रयोग अन्दर की तरफ़ गोलाई में लाने पर वह सौम्य माना जाता है,बाहर की तरफ़ नुकीले हथियार के रूप में करने पर वह रक्षक के रूप में माना जाता है। काला स्वास्तिक शमशानी शक्तियों को बस में करने के लिये किया जाता है,लाल स्वास्तिक का प्रयोग शरीर की सुरक्षा के साथ भौतिक सुरक्षा के प्रति भी माना जाता है,डाक्टरों ने भी स्वास्तिक का प्रयोग आदि काल से किया है,लेकिन वहां सौम्यता और दिशा निर्देश नही होता है। केवल धन (+) का निशान ही मिलता है। पीले रंग का स्वास्तिक धर्म के मामलों में और संस्कार के मामलों में किया जाता है,विभिन्न रंगों का प्रयोग विभिन्न कारणों के लिये किया जाता है।
ऊँ परमात्मा वाची कहा गया है,ऊँ को मंगल रूप में जाना गया है,जैन धर्म के अनुसार ऊँ पंच परमेष्ठीवाचक की उपाधि से विभूषित है। णमोकार मंत्र के पहले इसे प्रयोग किया गया है। ऊँ एक बीजाक्षर की भांति है,इसके मात्र उच्चारण करने से ही भक्ति महिमा का निष्पादन हो जाता है। इसका रूप दोनो आंखों के बीच में आंखों को बन्द करने के बाद सुनहले रूप में कल्पित करते रहने से यह सहज योग का रूप सामने लाना शुरु कर देता है,और उन अनुभूतियों की तरफ़ मनुष्य जाना शुरु कर देता है जिन्हे वह कभी सोच भी नही सकता है।
ऊँ कार बिन्दु संयुक्तं नित्यं ध्यायन्ति योगिना:।
कामदं मोक्षदं चैव ऊँकाराय नमो नम:॥

12 comments:

Anita Goyal said...

bahut he achhi jankari h

prabodh.tiwari said...

aap ne om aur swastik ke vishay me jo jankari di hai wo uttam hai hum aur jyada janna chahenge please prabodha tiwari

Sameer Jhoka said...

wakayi bahut hi achchi jankari sanjha ki hai,

Sameer Jhoka said...

wakayi guru ji ne jo bhi bataya hai om or swastik ke bare me atti sunder bataya hai...........

sunil kumar shrivas said...

this knoledge is even sa a secret for present generation, thanks for bringing it in light.

Narendra Chouhan Purni said...

kya ye jankari satya he kise dekha he bhagwan ko back 10 years me

maya said...

guruji thanks aapne bahut achhi jankari di thankssssssssssssssssssss

dinesh yadav said...

you are realy great becose we are learning about our relegious symbols which can change our life. thanks lot guruji.dinesh yadav barwani

Nitin said...
This comment has been removed by the author.
Nitin said...

Swastik char shubh (+)shakti ko grahan karneka our char buri(-)shkti ko rokneka pratik hai / is karanse hi swastik gile kumkumse kagaj par nahi nikalna chahiye , kach pe aar par dikhta ho ,ya bhagwanka mandir banate samay aar par ka swastik dono tarafse dikhta hai , baharse achha our andarse bura ho jata hai / diwarpar kumkumse nikala huva swastik rasaynik prakriyase kala ho jata hai / to bhi bura asar karega / is bat ka dhyan rakhkae swastik nikalna chahiye / Guruji pranam !

Nitin said...

Guruji Navkar mantra ke bareme mere kuch vichar aapke samne rakhta hu / aadhe hai,aap use pura kar dijiye / namo arihanta nam ;safed color chandraka nirvikar jise moksha ki bhi aasha nahi jinhone moksha ka rasta bataya / namo sidhanam ; lal color mangal ka , jo chahiye tha hasil kiya, tap our parakram / namo aayriyanam ; pila color guruka, aachrya jinhone gyanko prapta kiya, gyanki sadhna ki / namo uwazayanam ; hara color budha ka upacharya jinhone aachrya ke dwara prapta gyanka prasar kiya / namo loye sawasahunam ; gadad nila ya kala shanika duniyake jo sadu kathor niyam, tap, our mehanatse dharm our gyanse am jantako sudharne ka kam karte hai /

Unknown said...

आदरणीय गुरु जी सादर चरण स्पर्श,
हमको अपनी जन्मतिथि ज्ञात नहीं है। हमारी आर्थिक स्थिति बहुत ही कष्टकारी होती जा रही है कोई भी नया काम न बन रहा है न मिल रहा है जो भी प्रयास करते हैं वह 99.99% बनने के बाद अटक जाता है पिछले पाँच वर्षों में जो कार्य किये उनके भुगतान नहीं मिले जिसके फलस्वरूप हमारे जीवन के सभी कार्य अवरुद्ध हो गए हैं, कहीं से भी कोई आशा की किरण नहीं दिख रही। कृप्या कोई समाधान कर हमको आर्थिक संकट से उबारने की कृपा करें। आपकी महान कृपा होगी