Sunday, May 29, 2011

मकर लगन और उसका सप्तम भाव

शनि के दो घर माने जाते है एक करने वाला और एक सोचने वाला। जो लोग काम को करने के बाद सोचते है वे मकर लगन की श्रेणी मे आते है और जो सोच कर करते है वे कुम्भ लगन की श्रेणी में आते है। कार्य को करने के बाद सोचने की क्रिया को करके सीखने का होता है और सीख कर करने की क्रिया को शिक्षा को पूर्ण करने के बाद कर्म की क्रिया को कहा जाता है। कार्य को करने के बाद जो सीखता है वह कार्य के बारे में गूढ रूप से जानता है कारण उसके द्वारा प्रेक्टिकल में कार्य किया जाता है। लेकिन सीख कर कार्य को जो करता है वह कार्य में अनुभव के बिना कहीं न कहीं अटक जाता है। अक्सर मकर लगन वाले लोग अपनी शिक्षा को पूर्ण नही कर पाते है,वे हर समय किसी न किसी विचार में घुसे रहते है,उन्हे अपने बचपन से लेकर चलने वाली उम्र तक जो उनके साथ बीता है उसे याद करने के बाद ही चलने से उनकी कार्य शैली में कोई उतावला पन नही होता है। मकर लगन का स्वामी शनि होता है शनि भी सकारात्मक होता है यानी उसे सोचना नही करना होता है। इस शनिके स्थान के अनुसार उसकी जिन्दगी का रूप चलता है,मकर लगन वालो के लिये धन देने का कार्य कुम्भ राशि करती है और लाभ के लिये मंगल की सकारात्मक राशि वृश्चिक करती है। जातक का भाग्य देने वाला बुध होता है,और बुध ही नौकरी पेशा और रोजाना के कामो के लिये भी जाना जाता है,नवे भाव का स्वामी बुध होने से और नवे भाव मे कन्या राशि के होने से जातक को धर्म भाग्य ज्योतिष पिता के द्वारा किये जाने वाले खर्चे पिता की कर्जदारिया माता की बीमारिया और माता के साथ वैचारिक मतभेद तथा माता के द्वारा माता के ननिहाल खान्दान में नौकरी या डाक्टरी या बेंक बीमा फ़ायनेन्स के कामो की तरफ़ भी कोई न कोई व्यक्ति जुडा पाया जाता है लेकिन उस खान्दान में कोई न कोई व्यक्ति हठी भी होता है तथा अपनी मर्जी का मालिक भी होता है,माता के मामा के बडे भाई की प्रसिद्धि होती है और छोटे भाई की सन्तान बिगडी हुयी होती है। मकर लगन वाले माता की सहायता से चलने वाले होते है उन्हे पिता के कार्यों और उनके व्यवहारो से कोई न कोई असन्तुष्टि हमेशा होती है उसका भी कारण होता है कि पिता के द्वारा उसके जीवन साथी के लिये या तो कोई अपने अनुसार चुनाव किया होता है,जिससे जातक के साथ जीवन साथी का कार्य और व्यवहार उसे पसन्द नही होता है। यह उल्टा प्रतिकार इसलिये भी माना जाता है क्योंकि मेष राशि जातक की माता के पल्ले पडती है और विवाह वाली तुला राशि जातक के पिता के पास होती है। शरीर के प्रति भोजन के प्रति दिमाग के प्रति बनने वाले और बिगडने वाले मूड के प्रति परिवार में इकट्ठे रहने के प्रति बातें माता के प्रति होती है और कार्य के प्रति नौकरी के प्रति व्यवसाय के प्रति किसी बात को बेलेंस में लाने के प्रति वाहन के प्रति जीवन साथी के प्रति दूसरी सन्तान के प्रति आदि बातें पिता के प्रति ही मानी जाती है। इस लगन में हिम्मत को देने वाला और रिस्तों को बनाने वाला भाव गुरु की मीन राशि होती है,यह राशि सन्तुष्टि के लिये मानी जाती है,माता के भाव से खर्च करने वाली और पिता के भाव से बीमारी को पालने वाली बात से भी मानी जाती है,इसके बाद गुरु की ही धनु राशि बारहवें भाव में भी होती है,या तो जातक के रहने वाले स्थान के ऊपर कोई पूजा पाठ बना लिया जाता है अथवा जातक के लिये भाग्य धर्म शिक्षा ज्योतिष आदि की रुचि बाहरी शक्तियों के द्वारा मिलती है,इन दोनो राशि के स्वामी गुरु पर भी जातक के कार्य निर्भर होते है अगर गुरु किसी प्रकार से लगन में ही विराजमान है तो वह गुरु नीच का फ़ल देगा,जातक अपनी योजना को नीच हरकतों के द्वारा पूरा करने की कोशिश करेगा उसे कार्य का कीडा तो माना जाता है लेकिन गुरु जो रिस्ते और भाग्य का कारक है सामाजिक मर्यादा का कारक के प्रति कार्यों में लाने से वह या तो किसी भी रिस्ते को उसी प्रकार से समझेगा जैसे कि नौकरी करने के बाद पगार को लेने के बाद नौकरी करवाने वाले और नौकरी वाले काम का मतलब पगार के मिलने तक ही होता है,अगर किसी प्रकार से नौकरी को छोड दिया जाये तो नौकरी करवाने वाले और नौकरी वाले काम से कोई लेना देना नही होगा यह बात रिस्ते के अन्दर स्वार्थ की भावना से पूर्ण भी माना जाता है,जबकि समाज परिवार मर्यादा सम्बन्ध सभी आजीवन रिस्ते के रूप में निभाने के लिये माने जाते है। अक्सर मकर लगन वाले जातक दूसरे नम्बर के होते है यानी उनके कोई न कोई बडा भाई या बहिन जरूर होता है चाहे वह जिन्दा हो या मर गया हो,साथ ही मकर लगन का स्थान धर्म भाग्य विदेश यात्रा पिता के द्वारा किये जाने वाले कार्यों के लिये जातक को अपनी उम्र की चालीसवी साल तक को पिता का दाहिना हाथ बनकर रहना पडता है उसके बाद वह अपने ही द्वारा कोई न कोई उपक्रम बनाकर रहना शुरु कर देता है,उसी तरह से उसके साथ जीवन साथी के लिये भी माना जाता है या तो वह पहले वाले जीवन साथी को दूर करने के बाद दूसरे जीवन साथी के साथ अपने जीवन को जीना चाहता है या फ़िर वह अपने पहले वाले जीवन साथी को पीठ पर लाद कर चलने वाला होता है। गुरु के लगन में ही अगर वक्री गति की सीमा है तो जातक के लिये दुनियादारी केवल स्वार्थ तक ही सीमित होती है,वह जीवन में सूर्य की राशि अष्टम में होने के कारण जीवन साथी के साथ सम्बन्ध केवल अहम के कारण ही रख पाता है,अथवा वह जीवन साथी के रूप में कई स्त्रियों के साथ सम्पर्क रखता है और उन्हे केवल अपने स्वार्थ के लिये प्रयोग करने के बाद पिता को अपमान मौत और जोखिम जैसे कार्यों को करने का अवसर भी देता है। शनि भी जातक के लिये अपने अपने अनुसार फ़ल देने के लिये माना जाता है,जैसे शनि का स्थान अगर लगन में है तो वह एक स्थान पर कार्य को बदलने के बाद हमेशा दूसरे स्थान पर कार्य करने की योजना को बनाता रहेगा,दूसरे भाव में होने पर वह कार्य तो न्याय वाले करेगा लेकिन सभी कार्य बदलाव वाले होंगे वह अपने बडे भाई या बहिन के साथ मिलकर कार्य करेगा लेकिन हमेशा अनबन किसी न किसी बात में होती रहेगी,तीसरे भाव में शनि के होने से जातक की शादी या तो देर से होगी या जन्म लेने वाले स्थान से दूर जाकर यहां तक कि जन्म के स्थान से दक्षिण पूर्व मे जाकर रहने के लिये मजबूर होना पडेगा,चौथे भाव में शनि के होने से जातक अपने को अन्धेरे में ही रखेगा वह सामाजिक रूप से व्यवहारिक रूप से किसी के सामने आने से डरेगा और वक्त पडने पर वह अपने ही नाम को कलंकित कर लेगा,शनि के पंचम भाव में होने पर वह अपनी ही सुरक्षा के प्रति हमेशा चिन्ता में रहेगा वह कार्य भी केवल जल्दी से धन कमाने वाले करने के लिये बहुत से नीचे उपक्रम करेगा,लेकिन नगद धन अपने ही परिवार वाले उसके लिये हमेशा के लिये फ़्रीज होने वाली स्थिति में ही मिलेगे,शनि के छठे भाव में होने पर जातक हमेशा गुप्त रूप से कमन्यूकेशन और धन के प्रति आद्तों से धीमी गति से कमाने वाला होगा उसका सम्पर्क बेकार के लोगों से होगा और चोरी फ़रेबी कारणों से भी उसका जीवन दिक्कत देने वाला माना जायेगा,सप्तम में शनि होने से वह शादी विवाह जाति धर्म और व्यवहार को ताक पर रखकर केवल अपने लिये ही कार्य को करने वाला होगा और किसी भी कार्य को जनता माता और सम्बन्धित लोगों की राय से करेगा माता के लिये हमेशा ही कष्ट देने वाला होगा अष्टम में शनि होने से वह गुप्त कार्यों को पिता की हठधर्मी को दूर करने के लिये राजकीय सहायता या घर की ही राजनीति से उसे अपमानित करने की कोशिश करेगा,पिता को घर छोडने के लिये मजबूर करना भी होता है जातक के जन्म के बाद उसके ताऊ के लिये भी दिक्कत का कारण माना जाता है नवें भाव में शनि के होने से जातक जब तक दूसरों की नौकरी करेगा तब तक ही समर्थ रहेगा अन्यथा वह कोर्ट केश और बेकार के आक्षेपों से घिरा रहेगा,दसवें भाव में शनि के होने से जातक कभी भी अपने घर परिवार जान पहिचान वाले लोगों के लिये तथा जीवन साथी के लिये कोई न कोई अडचन वाली बात को पैदा किये रहेगा कभी भी वैवाहिक जीवन को मानसिक रूप से प्राप्त करने के लिये वह प्रयास नही करेगा उसे तो कार्य की अधिकता ही परेशान करने वाली होगी,ग्यारहवे भाव में शनि के होने से जातक गूढ कार्यों को करने वाला होगा और दोस्तों की सीमा में ही अपने जीवन को बिताने वाला होगा उसकी जानकारी अन्डर वर्ड के लोगों से होगी तथा तंत्र मंत्र शमशानी क्रियायों को करने वाला भी होगा मांस मदिरा को खाने पीने वाला अथवा अपनी ही क्रियाओं के द्वारा खुद को परेशान करने वाला शरीर से कमजोर और दिमागी रूप से कबाड से जुगाड बनाने की क्रिया अजीब काम जो पत्थर खान या जमीनी पदार्थों के रूप में माने जाते है ऐसे व्यक्ति के लिये यह शनि उम्र के पचासवें साल के बाद ही गृहस्थ जीवन को देने वाला होता है और सन्तान के मामले में कभी भी सन्तुष्टि नही देने वाला नही होता है।

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