Friday, September 24, 2010

प्रेम प्रसंग और कैरियर के बारे में शंका

एक जातक ने अपने प्रेम प्रसंग और कैरियर के बारे में शंका का समाधान चाहा है।

जातक की कुंडली कन्या लगन की है,और लगनेश बुध धनु राशि में व्ययेश सूर्य और लाभेश चन्द्र के साथ विराजमान है। सप्तम स्थान में तृतीयेश और अष्टमेश मंगल के साथ राहु विराजमान है,धनेश और भाग्येश का स्थान वृश्चिक राशि में तीसरे स्थान में है। पंचम और छठे भाव के मालिक शनि शुक्र के साथ तीसरे  भाव में स्वगृही है। चतुर्थेश और सप्तमेश गुरु छठे भाव में विराजमान है।

कुंडली में गुरु का स्थान इसलिये गौढ माना जा सकता है क्यों कि गुरु ही सप्तम का मालिक है और गुरु ही चतुर्थ स्थान का मालिक है। गुरु का स्थान नौकरी के स्थान में है,गुरु से आगे मंगल और राहु है। शनि जो कर्म का दाता है वह शुक्र के साथ तीसरे भाव में विराजमान है,शनि के आगे बुध सूर्य चन्द्र है,जातक को शिक्षा के बाद भटकाव नही मिलता है सीधा ही शिक्षा के बाद वह कार्य के क्षेत्र में चला जाता है,कार्य भी पहले बुध के साथ होने से जातक को बडी शिक्षा या न्याय या विदेशी सम्बन्ध रखने वाली बैंक आदि के साथ माना जाता है,यात्रा वाले कामों से इसलिये भी जोडा जा सकता है क्योंकि यात्रा का कारक गुरु लगनेश से तीसरे स्थान पर है,धनेश और भाग्येश शुक्र में बल नही है,जातक के पास सभी वस्तुयों की उपलब्धि तो होती है लेकिन किसी प्रकार से सही नही मानी जा सकती है,ब्राण्ड के नाम से मतलब नही होकर केवल काम चलाऊ वस्तुओं की उपलब्धि ही मानी जाती है,राहु के साथ मंगल होने से खून के अन्दर प्रेसर भी अधिक होता है और झल्लाहट भी बहुत जल्दी आना मामूली बात है,राहु के द्वारा शुक्र को देखे जाने से विजातीय व्यक्ति से प्रेम संबन्ध रखना भी एक कारण माना जाता है,शनि जो बुजुर्ग होने का कारक है वह भी शुक्र के साथ होने से जिस व्यक्ति से जातक का प्रेम संबन्ध होगा वह जातक से नीची श्रेणी से सम्बन्ध रखने वाला भी माना जाता है। जातक का अधिक से अधिक धन इन्ही प्रेम सम्बन्धों से भी खर्च होना माना जाता है,जातक का गुरु छठे भाव में होना जातक को प्रेम संबन्धों को उजागर करने में भी दिक्कत ही आने के योग भी मिलते है। केतु के लगन में होने से जातक जिससे भी प्रेम संबन्ध बना कर रहना चाहता है उसे जातक ने कार्य और निवास आदि की सुविधा भी दी जानी मिलती है,जातक का गुरु नौकरी के भाव में होने से और गुरु का लाभ की राशि कुम्भ में होने से जातक अपने भाई के साथ मेहनती भी माना जा सकता है। जातक के लिये गुरु बक्री का समय कनफ़्यूजन वाला माना जाता है जैसे कि वर्तमान में गुरु का गोचर जातक के सप्तम में राहु और मंगल पर चल रहा है,यह एक भयंकर योग माना जा सकता है,तथा सामाजिक रूप से किसी कानूनी प्रक्रिया से गुजरने का समय माना जा सकता है,अगर जातक मई सन ग्यारह तक का समय आसानी से निकाल लेता है तो वह तकनीकी मामलों में आगे अपना स्थान सही बनाकर चलेगा,तथा उसे अपने अपमान से बचने और जीवन को सुरक्षित चलाने के लिये किसी तामसी वस्तु का सेवन नही करना पडेगा।

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