Tuesday, March 30, 2010

मंगल नही होता है अमंगल

मंगल से अमंगल होना विचित्र बात है,किन्तु परम्परागत ज्योतिष के की यह मान्यता है कि मंगल,शनि,राहु,और क्षीण चन्द्रमा पापी ग्रह है,इनमे कोई भी १,४,७,८,१२ भावों में स्थित हो या इन भावों को देखता हो,तो वह मंगलीक दोष होता है.जन्म कुन्डली के १,४,७,८,१२ भावों को समझना बहुत जरूरी है,फला भाव शारीरिक गठन,कद,काठी,रंग रूप,शारीरिक शक्ति और स्वास्थ्य का कारक है,इस भाव के पीडित होने पर जातक के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पडता है,स्वास्थ्य खराब होने पर जातक चिढचिढा हो जाता है,और उग्र स्वभाव तथा हठी हो जाता है,चौथा भाव माता का भाव होता है,और जीवन के प्रति बहुत ही उपयोगी माना जाता है,उसके पीडित होने पर जातक जीवन उपयोगी वस्तुओं केव लिये तरस जाता है,अभाव सौ अनर्थों का एक अनर्थ होता है,जहां भी देखो टोटे की लडाइयां ही मिलती है,जीवन दुख और दैन्य से भर जाता है.सप्तम भाव विवाह,दाम्पत्य सुख,सन्तान और परिवार की बढोत्तरी का कारक है,साझेदार से भी जुडा हुआ है,विवाह की द्रिष्टि से यह भाव बहुत ही महत्व पूर्ण माना जाता है,इस भाव में अगर पापी ग्रह बैठे हों,या इस भाव को पाई ग्रह देखते हो,तो विवाहित जीवन सुख मय नही होता है,पति पत्नी को एक दूसरे से सन्तुष्टि नही मिलती है,परिवार में तरह तरह के अमंगल होते रहते है,इन सबसे पारिवारिक जीवन नर्क मय हो जाता है.अष्टम भाव उम्र और शान्ति का कारक है,यह मोक्ष का भाव भी कहा जाता है,अन्तिम प्रणित का कारण भी माना जाता है,इसके पीडित होने पर जातक की उम्र चिन्ताओं में ही कट जाती है,उसे किसी प्रकार की शान्ति नही मिल पाती है,बारहवें भाव को व्यय और यात्रा का भाव भी बोला जाता है,इसे अगर कोई पापी ग्रह देखते हों तो व्यय अधिक होता है,यात्रा और घर से बाहर ही मन लगता है,हर समय दिमाग में आगे के जीवन की कल्पनायें ही दिमाग खराब करती रहती है,इन सबसे मानसिक परेशानिया तब और बढ जाती है,ज्योतिष में मांगलिक दोष की शुरुआत कब हुई किसी को पता नही है,समय समय पर लेखकों और विद्वानो ने अपने अपने विचारों से इसे अपने अपने अनुसार लिखा है,महर्षी पाराशर,मणित्थ बैद्यनाथ,और वराहमिहिर जैसे और आचार्यों ने इस विषय को कोई मायने नही दिया,लेकिन बाद के ज्योतिषियों ने इस मंगलीक दोष का हौआ खडा कर दिया,किसी ने लिखदिया,"लग्ने च व्यये पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे,कन्या भर्तुर्विनाशाय भर्तुर कन्या विनाशक:",इसका मतलब होता है कि १,४,७,८,१२ भावों में मम्गल हो तो कन्या अपने होने वाले पति का विनाश करती है,और वर अपनी होने वाली पत्नी का विनाश करता है,सामान्य बोलचाल की भाषा में "नाश कर देना",का मतलब है मार देना या नष्ट कर देना होता है,जैसे किसी ने दरवाजे के कपाट बनाये और एक पल्ला बडा और एक छोटा कर दिया तो हम कहेगे कि किवाड का नाश कर दिया,लेकिन जो नाश करदेना का मतलब मम्गल के लिये व्याख्याकारों ने दिया वह संसय से भरा ही कहा जायेगा,एक महिला की कुन्डली में मंगल,शुक्र और चन्द्र तीनो लगन में विराजमान थे,कन्या के पिता ने जितने लोगों को कुन्डली दिखाई सभी ने मंगली का दोष उस बेचारी कन्या के सिर पर थोप दिया,लेकिन किसी ने भी जरा सी मेहनत करने के बाद कुन्डली को देखा होता तो देख लेते कि कन्या के सप्तम में मंगल और ग्यारहवें भाव में गुरु केतु भी विराजमान है,कन्या का भाग्य प्रबल था,और वह पुलिस की एक ट्रेफ़िक एस.पी.बन कर जब सामने आयी तो कन्या के पिता को भी संतोष हुआ,और उसके लिये हजारों रिस्ते खुद ब खुद चलकर सामने आने लगे,आखिर में उसकी शादी एक अच्छे होनहार जज के साथ हुई और वह बडे आराम से अपने दो बच्चों के साथ नौकरी भी कर रही है,और घर भी सम्भाल रही है,मंगल का कारक पराक्र्म से होता है,मंगल के बारे में इतने बुरे व्याख्यान देना एक बेकार सी बात ही कही जायेगी,मंगल स्त्री की कुन्डली में पति का कारक होता है,और पति की कुन्डली में भाई का कारक होता है,कार्य के अन्दर बिजली और होस्पिटल से अथवा इन्जीनियर से जुडा होता है,शरीर में खून का कारक होता है,अगर सही तरीके से लग,सूर्य लग,चन्द्र लगन,और नवांश को देखा जाये तो संसार के निन्न्यानबे प्रतिशत लोग मंगली मिलेंगे,बाद में कुछ लोगों ने पापी ग्रहों में सूर्य और चन्द्र को भी शामिल कर लिया,सूर्य अगर पिता है,सूर्य अगर व्यक्ति का नाम है,सूर्य अगर व्यक्ति का ढांचा है तो सूर्य के पापी होने से सब कुछ बेकार ही हो जायेगा,शुक्र को पापी कहा है,इस ग्रह की सिफ़्त भौतिकता और लक्षमी से मानी जाती है,घर की लक्ष्मी पत्नी से मानी जाती है,जमीन और जमीन से पैदा होने वाली फ़सल से मानी जाती है,तो किस प्रकार से शुक्र पापी हो सकता है,इस प्रकार से नौ ग्रहों में से छ: मंगली दोष के दाता हों तो बताइये कितने लोग इस संसार में मंगली दोष से बाहर हो सकते है,इस बात के लिये मंगलीक की काट खोजी गयी तो कन्या के लिये वर को मंगलीक होना अनिवार्य माना गया,और वर के लिये कन्या को मंगलीक होना उचित बताया गया,और बताया गया कि इस प्रकार से मंगलीक का दोष समाप्त हो जायेगा.मेष लगन के लिये मंगल लगन का किस प्रकार से दोषी बना सकता है,जब कि वह लगन का मालिक ही है,वृष लगन के लिये मम्गल खुद ही सप्तमेश का भाव पैदा करता है,और मिथुन लगन के लिये लाभ भाव का स्वामी और कर्जा दुश्मनी काटने का कारक माना जाता है,कर्क लगन के लिये पंचम और कर्म का कारक मंगल भी दोषी नही हो सकता है,सिंह लगन के लिये माता के भाव का मालिक और भाग्यविधाता ही क्या दोषी हो सकता है?,कन्या के लिये पराक्रम भाव और छोटे भाई बहिनो का मालिक,और आठवें भाव से अपमान मृत्यु और जानजोखिम को समाप्त करने वाला कभी खराब हो सकता है,तुला लगन के लिये धन और जीवन साथी के भाव का मालिक किस प्रकार से गलत कर सकता है,वृश्चिक लगन के लिये खुद शरीर का मालिक और कर्जा दुश्मनी और बीमारी को खत्म करने वाला भी खराब नही हो सकता है,धनु लगन के लिये व्यय और यात्राओं पर अंकुश लगाने तथा,शिक्षा तथा परिवार को सम्भालने वाला भी खराब नही हो सकता है,मकर लगन के लिये ग्यारहवें भाव और सुखों का मालिक भी खराब नही हो सकता है,कुम्भ लगन के लिये छोटे भाई बहिनो का मालिक और कर्म का कारक भी खराब नही होता,मीन लगन के लिये धन और भाग्य का कारक मंगल किस प्रकार से खराब हो सकता है.इन सब बातों से पता लगता है,कि गुरु यानी जीव और सूर्य यानी आत्मा अगर किसी प्रकार से राहु,केतु,और शनि के साथ किसी प्रकार से कलुषित हो रही है,तो मंगल खराब हो सकता है,सूर्य और शनि की युति से मंगल बद हो जाता है,उस मंगल को खराब मान सकते है,सूर्य पिता और शनि किसी प्रकार से तामसी वस्तुओं का भोजन और तामसी लोगों से उठक बैठक जातक के खून को खराब कर सकती है,केवल अकेला मंगल तो इस प्रकार के भाव नही पैदा कर सकता है,नवांश नौ मिनट का प्रभाव देता है,लगन सवा दो घन्टे का प्रभाव देती है,सूर्य लगन महिने भर का प्रभाव देता है,और चन्द्र लगन सवा दो दिन का प्रभाव देता है,गुरु का प्रभाव साल भर का होता है,बुध का कभी महिने भर का और बक्री हो जाये तो सवा महिने का प्रभाव देता है,मंगल की चाल भी औसत एक महिने की ही होती है,तो फ़िर किस प्रकार से गलत प्रभाव मिलते है?गलत प्रभाव देने के लिये राहु,शनि और केतु ही जिम्मेदार होते है,मंगल नही.अगर कुन्डली में मंगली दोष है,और पति पत्नी का निर्वाह किसी प्रकार से नही हो पा रहा है,तो जातक के अन्दर से निम्न लिखित दोष दूर करने की कोशिश करने पर मंगली दोष खत्म हो जायेगा और किसी प्रकार की पूजा पाठ करने की आवश्यकता नही पडेगी,यह मेरे द्वारा अनुभूत और पूरी तरह से अंजवाया हुआ है.-सदाचार का पालन करवाना,झूठ नही बोलने देना,झूठी गवाही नही देना,गाली नही देना,शराब का नही पीना,मांस मछली का नही खाना,किसी से भी मुफ़्त में कुछ नही लेना,नि:संतान की सम्पत्ति नही खरीदना,दक्षिणी मुख वाले घर में नही रहना,काले कांणे और गंजे से दूर रहना,सुबह सुबह शहद का सेवन करना,मीठा भोजन खुद खाना और दूसरों को खिलाना,जन्म दिन पर मिठाई खिलाना,घर आये हुए मेहमान को सौंफ़ और मिश्री खरीदना,पत्नि की देखभाल करना,भाई की संतान की पालना करना,विधवा स्त्रियों की सेवा करना,हाथी दांत और जानवरों के अंगों को घर में नही रखना,जंग लगा हुआ हथियार और बारूदी हथियार घर में नही रखना,आदि सहायक होते है,अगर ऊपर लिखे किसी प्रकार के साधन को त्यागने में परेशानी होती है,तो रोजाना हनुमानचालीसा का पाठ करना चाहिये,हनुमानजी को प्रसाद चढाकर बांटना चाहिये,हनुमानजी को सिंदूर का चोला चढाना चाहिये,रामायण का सुन्दर काण्ड का पाठ करना चाहिये,लाल रूमाल पास में रखना चाहिएय,चांदी का छल्ला बिना जोड का पहिनना चाहिये,तांबे या सोने की अंगूठी में मूंगा धारण करना चाहिये,स्त्रियां चांदी के कडे में मेख जडवा करवा कर पहिन सकती है,बन्दरों को भोजन देना चाहिये,तन्दूर पर पकी मीठी रोटी कुत्तो को खिलानी चाहिये,मन्दिर में मीथा प्रसाद चढाना चाहिये,चीनी को बहते पाने में बहाना चाहिये,शहद और सिन्दूर को पानी में बहाना चाहिये,कच्ची दीवार बनाकर गिरानी चाहिये,घर और दफ़्तर में सहायक कर्मचारी रखने चाहिये.

3 comments:

tina said...

excellent theory.

Nitin said...

Guruji aapka dil our dimakh ekdam saf hai/isliye aapki bate pardarshi lagti hai/log sukhme sonar ke pass our dukhme jyotish kr pass jake hai/our aise dukhi logonko our darakar ya gumrah karke bahotse jyotishi thagte hai/mangal ke bareme jis ke lagna me mangal hai, us ko shant raheneko kahena chahiye na ki mangalki shanti karke lutna chahiye/ ha hindu dharm me kuch puja shanti ka udyesh achha hai lekin us e koun samazta hai/ jaise satynarayan ki puja ek achha positive mental attitudi porgram hai/ us katha me kaha jata hai, raja ne ye puja ki uska achha huva/ sadu vani ne puja ki uska achha huva/ kalawati ne puja ki uska achha huva/prsad nahi liya to bura huva/phir prasad liya achha huva/ to jo aadmi ye puja kar raha ho us ko bhi lagta hai ke maine bhi ub ye puja ki hai ub mera bhi achha hoga / lekin lekin log satyanarayan pjua bhi thikse nahi karte katha me dhyan hi raheta nahi / panditko hi jaldi se puja sampanna kare ko kahete hai/bechara pandit bhi gharse yajman ke ghar tak aate aate hi aadhi puja nipat leta hai/ aise sub lakir ke fakir hai/ koi bat hum kyo kar rahe hai pata nahi /kaise karni hai pata nahi/ aage wale ne ki is liya humne ki itnahi karte hai/ aise me aao jaise gyani ke sampark me aaya to sachme bahut hi achha lag raha hai/ Guruji pranam

ज्योतिषाचार्य ललित मोहन कगड़ियाल,, said...

मंगल का सीधा सम्बन्ध रक्त से होता है.कुछ विशेष स्थानों में मंगल रक्त में उग्रता और कुछ मामलों में रक्त की अशुद्धि देता है.अपने ध्यान दिया होगा की मांगलिक अथवा मंगल से संभंधित लग्न के जातक खुजली ,फोड़े -फुंसियों आदि से अधिकतर प्रभावित होते हैं.साथ ही कुछ जातक असाधारण रूप से उग्र होते हैं.ऐसे में मैं व्यक्तिगत रूप से जब भी कुंडली मिलान करता हूँ ,तो इस पहलु को विशेष ध्यान रखता हूँ.मेरा मानना है की यदि एक कुंडली में मंगल दोषकारक हो रहा हो तो कम से कम दूसरी कुंडली में मंगल अपनी शुद्धता के साथ होना चाहिए.या किसी अन्य शुभ गृह की दृष्टि सम्बंधित भाव पर अवश्य होनी चाहिए.

मांगलिक वर के लिए मांगलिक कन्या का क्या अर्थ है मेरी समझ से बाहर है. क्या ऐसी अवस्था में हम मंगल से होने वाले सम्बंधित भाव को अधिक खराब नहीं कर देते?यदि किसी कुंडली में मंगल अपनी नकारात्मक उग्रता किसी जातक को दे रहा है तो ये आवश्यक हो जाता है की जातक का जीवन साथी सौम्य स्वाभाव ,व उग्रता में कम हो.ताकि जीवन में कभी यदि एक गुस्से में अपना नियंत्रण खो देता है तो कम से कम दूसरा स्तिथि को सम्हालने का प्रयास करे.साधारण सा नियम है की किसी भी प्रभाव को कम करना हो तो उसके विपरीत कारक को मजबूत करने का प्रयास करें.यदि गर्मी कम करनी है तो ठण्ड को प्रभावी होने दें,यदि अँधेरा कम करना है तो प्रकाश की मात्रा को अधिक करें.इसी प्रकार यदि मंगल कहीं किसी भाव को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है तो ,मंगल के व्यवहार के विपरीत गृह द्वारा उस भाव को सम्हालने वाली कुंडली को तलाश कीजिये.यही सुखी वैवाहिक जीवन का मन्त्र है.मंगल से मंगल को काटने वाली बात बेतुकी है.