tag:blogger.com,1999:blog-12370951304920973312024-01-02T03:36:04.311+05:30शंका-समाधानरामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.comBlogger168125tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-57576000390291404412012-06-28T19:25:00.000+05:302012-06-28T19:25:18.224+05:30वास्तु के अटल नियम<body onmousedown="return false" oncontextmenu="return false" onselectstart="return false">
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<ol style="text-align: left;">
<li>सूर्योदय की पहली किरण का अवरोध मकान के लिये विध्वंशकारी होता है,मन्दिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारा के दक्षिण पश्चिम में जगह खाली होती है या वीराना होता है भूल से कोई मकान होता भी है तो मकान मे रहने वाले नही होते है.</li>
<li>दक्षिण का कुआ घर मे उपरत्व के प्रभाव को पैदा करते है या तो घर मे पुरुष संतति होती ही नही है और होती भी है तो नकारा होती है.</li>
<li>घर के ईशान में गन्दगी घर के सदस्यों के अन्दर चरित्र की स्थिति को संदिग्ध रखते है पिता पुत्र के बीच भी वैमनस्यता का होना जरूरी हो जाता है पति पत्नी के बीच रिस्तो में दरार आना और बेकार के रिस्ते बनना भी देखा जाता है.</li>
<li>दलाली के काम करने वाले अक्सर जीवन के किसी भी एक भाग मे अपंगता को ग्रहण कर लेते है और उनकी पहिचान उनके दक्षिण पश्चिम में खिडकी या रोशनदान से होती है.</li>
<li>मकान का अग्नि मुखी दरवाजा आग और चोरी का कारक होता है,यह सब स्त्रियों के कारण ही होता है या तो स्त्री अपने घर के भेद को बाहर देती है या स्त्री के अन्दर बेकार की हवाये आकर मन को उद्वेलित करती है.</li>
<li>घर के वायव्य में झूला का होना किस्मत और प्रसिद्धि को हवा मे झुलाने के लिये माना जाता है,यहां तक कि खुद के रिस्तेदार भी कभी तो अच्छा बोलने लगते है और कभी बुराई करने लगते है.</li>
<li>दक्षिण पश्चिम मुखी मकान मे कोई एक व्यक्ति अपंग जरूर होता है और अपंगता भी खुद के व्यसनो के कारण ही होती है.</li>
<li>घर के दरवाजे पर लकडी या अन्य प्रकार की काटने वाली मशीन से घर में घर के सदस्य ही एक दूसरे को अपने अपने स्वार्थ के लिये काटने लगते है.</li>
<li>जन्म स्थान से पूर्व दिशा की ससुराल पुत्र सन्तान मे कमी देती है पश्चिम की ससुराल पुत्र सन्तान मे बढोत्तरी करती है उत्तर की ससुराल कन्या और पुत्र सन्तान को सन्तुलित रखने वाली होती है जबकि दक्षिण की ससुराल हमेशा कामी और नाम को बदनाम करने वाली सन्तान को ही देती है.</li>
<li>शहर के उत्तर का पानी शहर को धनी बनाता है पूर्व का पानी धर्म को बढाने वाला होता है पश्चिम का पानी शहर को ऊंची इमारतो को देने वाला होता है जबकि दक्षिण का पानी शहर को डाक्टरी और तकनीकी क्षेत्र मे विकास को देने वाला होता है.</li>
<li>ईशान की रसोई घर के मालिक को चिन्ता देने वाली होती है और किसी न किसी कारण से ग्रह स्वामी का मन जलता रहता है अग्नि की रसोई भोजन को देने वाली और घर के सदस्यों की बुद्धि को ठीक रखने वाली होती है नैऋत्य कोण की रसोई घर मे बीमारी को पैदा करने वाली और वायव्य की रसोई भोजन के मदो मे अधिक खर्च करने वाली होती है.</li>
<li>जिस मकान की छत पर पताका स्त्रियों के पैरो में पाजेब और पुरुषों को अपने कान ढककर रखने का चलन होता है उन घरो में बुरी शक्तियां प्रवेश नही कर पाती है.</li>
<li>छत पर शाम के समय स्त्री अगर बाल सुखा रही होती है कंघी कर रही होती है राहु उस स्त्री को मानसिक बीमारी से परेशान किये रहता है.</li>
<li>जिस घर मे अप्राकृतिक शक्तियों का निवास होता है उस घर मे एक्वेरियम में मछलियां अधिक मरती है.</li>
<li>रसोई मे अपने आप बर्तन गिरने लगें तो समझ लेना चाहिये कि किसी प्रकार की कलह होने वाली है यही बात दूध के उफ़न कर गिरने से भी मानी जाती है.</li>
<li>घर मे शाकिनी स्त्री के प्रवेश के पहले ही घर के आंगन को ढक दिया जाता है.</li>
<li>घर के नैतृत्य में रोशनदान तभी खोला जाता है जब घर मे भान्जे भतीजे या साले या मामा का निवास होना शुरु होता है.</li>
<li>घर मे पुत्र संतान के नही होने से अक्सर कुत्ते पालने की प्रथा परिवारों मे होती है जैसे ही पुत्र संतान का आगमन होता है कुत्ता मर जाता है,लेकिन पुत्र के पैदा होने के तेरह महिने के अन्दर दूसरा कुत्ता जरूर पाल लेना चाहिये.</li>
</ol>
</div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-51932874280486391082012-06-23T17:38:00.000+05:302012-06-23T17:38:40.672+05:30जीवन में नम्बर का महत्व<body onmousedown="return false" oncontextmenu="return false" onselectstart="return false">
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जैसे हम जीवन की शुरुआत मे शब्दो को प्रयोग मे लाने के लिये अक्षरों का ज्ञान करते है वैसे ही जीवन मे गिनती करने के लिये नम्बरों को सीखते है। जीरो से लेकर नौ के अंक तक सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड समाया हुआ है। हर व्यक्ति एक नम्बर के आधार पर चला करता है उस नम्बर के बिना उसका जीवन अधूरा सा रहता है,कोई नम्बर भाग्य को देने वाला होता है और कोई नम्बर बहुत ही दुर्भाग्यशाली भी होता है। जन्म के नम्बर से ही पता लग जाता है कि जीवन कितने समय का है और जीवन मे किस किस वक्त कौन सी आफ़त आयेगी या जायेगी साथ ही अगर सूक्ष्म रूप से भी देखा जाये तो हर साल महिना दिन और दिन का एक एक घंटा अपनी गति को प्रदान करता है। नम्बर का जो रूप जीवन मे काम आता है वह इस प्रकार से है :-<br />
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<b>जीवन को चलाने वाला नम्बर</b></div>
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जीवन जिस दिन से शुरु हुआ होता उस दिन के नम्बर से ही गति का पता लग जाता है जीवन को चलाने के लिये माता के गर्भ मे आने से ही इस नम्बर की शुरुआत हो जाती है और महिने दिन तथा घंटे से इस नम्बर का पता लगाया जाता है,पैदा होने का समय भी इसी नम्बर से प्राप्त किया जाता है।</div>
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<b>ह्रदय की चाहत वाला नम्बर</b></div>
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समय समय पर मनुष्य की चाहत बदलती रहती है और जीवन मे अगर एक ही चाहत बनी रहे तो जीवन का चलना दूभर हो जाता,जब हम जन्म लेते है उसी दिन से गणना शुरु हो जाती है और इस नम्बर के लिये यह भी कहा जाता है बच्चा भी अपने दिल मे चाहत रखता है लेकिन शरीर के परिपक्वता पर आधारित होने के कारण इस नम्बर का एक प्रभाव हमारे दिल मे हमेशा रहता है अगर हमे पता लग जाये कि किस नम्बर के दिन मे हमारी चाहत बदलेगी और इस चाहत के बदलने का समय क्या होगा तो हमे काफ़ी आसानी हो सकती है.</div>
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<b>एक नम्बर जो हमेशा मन मे रहे</b></div>
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कहा जाता है कि मन हमेशा चलायमान है लेकिन मन का क्षेत्र भी एक केन्द्र पर जुडा होता है जब तक केन्द्र का संचालक मन के अन्दर भाव नही भरेगा तब तक मन का चलायमान होना हो ही नही सकता है। इस नम्बर के लिये यह भी कहा जा सकता है कि जब भी कोई बात अच्छी या बुरी मन के अन्दर आयेगी उसी नम्बर के अनुसार ही आयेगी.</div>
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<b>जन्म दिनांक</b></div>
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जिस दिन जातक का जन्म होता है अपनी अपनी भाषा और संस्कृति के अनुसार उस दिन का एक नम्बर भी होता है जैसे अंग्रेजी मे अगर तारीख को दिन का नम्बर मानते है तो हिन्दी मे तिथि को नम्बर के रूप मे प्रयोग किया जाता है उसी प्रकार से मुसलमानी कलेण्डर मे चन्द्रमा की तारीख को ही मान दिया जाता है.वैसे दिन की मान्यता भी दी जाती है और जातक के जन्म के दिन के अनुसार ही उसका नम्बर काम मे लिया जाता है जैसे केरल मे जिस दिन व्यक्ति का जन्म होता है उसी दिन के नम्बर के अनुसार उसका फ़लादेश दिया जाता है।</div>
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<b>मिलने वाले चेलेंज का नम्बर</b></div>
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जीवन मे जो भी काम करना पडता है उन सभी के लिये एक चेलेन्ज मिलता है जिस दिन काम करने का वह अच्छा हो या बुरा चेलेन्ज मिल जाता है उसी दिन से उस काम के लिये मानसिकता बन जाती है कई नम्बर तो इतने ओड होते है कि उनके लिये आजीवन एक ही प्रकार का चेलेंज स्वीकार करने के लिए व्यतीत करना पडता है।</div>
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<b>व्यक्तिगत साल का नम्बर</b></div>
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हिन्दी मे हिन्दी महिनो का नम्बर और अंग्रेजी मे अंग्रेजी महिनो का नम्बर प्रयोग मे लाया जाता है। इसी प्रकार से अलग अलग देशो मे अपने अपने अनुसार महिनो की गणना के अनुसार नम्बर का प्रयोग किया जाता है। नम्बरो के आधार से ही किसी भी अल्प मध्य और उच्च गति का विश्लेषण साल के नम्बर से किया जाता है.</div>
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<b>व्यक्तिगत महिने का नम्बर</b></div>
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साल के बाद महिने का नम्बर केवल शरीर की बारह गतियों पर निर्भर करता है जो गति छ: महिने पहले अच्छी थी वही गति छ: महिने बाद खराब हो जाती है जो इन गतियों को पहिचानते है वह अपने लिये पहले से ही इन्तजाम कर लेते है और वे आने वाली मुशीबत से बचकर अपने कार्य को उस मिलने वाली आफ़त से भी अपने को फ़ायदा मे ले जाते है। <br />
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<b>व्यक्तिगत दिन का नम्बर</b><br />
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सूर्य का रोजाना एक अंश का मान देखा गया है चाहे साल का समय या महिने का समय एक बार गडबडा जाये लेकिन दिन का मान उतना ही रहेगा और निश्चित समय मे ही दिन का मान बदल जायेगा,यह मान अच्छे के लिये भी और बुरे के लिये भी माना जाता है। दिन के नम्बर से अक्सर रोजाना के किये जाने वाले कामो की सफ़लता असफ़लता के लिये देखा जाता है और जिस दिन का नम्बर खराब होता है या धोखा देने वाला होता है उसी के अनुसार सम्भाल लेने पर गति के अनुसार नम्बर का प्रयोग कर लिया जाता है। </div>
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<b>जीवन की शुरुआत का नम्बर</b><br />
जीवन की शुरुआत का मतलब पैदा होने से नही है जब व्यक्ति जीवन की प्रोग्रेस मे अपने को ले जाने के लिये आगे जाना शुरु होजाता है वह ही जीवन की शुरुआत मानी जाती है कभी कभी यह भी देखा गया है कि व्यक्ति पैदा होता है खाता पीता सोता जागता है और एक दिन वह चला जाता है लेकिन उसके जीवन मे किसी प्रोग्रेस का अध्याय जुड ही नही पाता है वह दूसरो के भरोसे रहकर ही पूरे जीवन को निकाल जाता है। </div>
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<b>जीवन के परिपक्व होने का नम्बर</b><br />
जीवन के तीन प्रकार माने गये है एक कच्चा जीवन होता है जिसका मान न के बराबर होता है कि कब कहां किस मोड पर जीवन जाकर रुक जाये या किस मोड पर जाकर जीवन का अन्तिम सफ़र ही पूरा हो जाये दूसरा प्रकार अल्प परिपक्व होता है जो जीवन को आगे भी चलाता है और जब चलाने के लिये शुरु हुआ जाये तो वह कार्य या व्यवहार से अपने को नेस्तनाबूद कर ले,तीसरा प्रकार वह होता है कि जीवन पूरी तरह से हर क्षेत्र की जानकारी से पूर्ण हो गया है व्यक्ति के सामने कोई भी बात अच्छी या बुरी आये वह उसे पूरी तरह से निपटाने के लिये अपने व्यवहार को सामने कर देगा इसके लिये भी एक नम्बर होता है जो निश्चित समय का बखान करता है।</div>
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<b>अपने को प्रदर्शित करने का नम्बर</b><br />
व्यक्ति को एक नाम जन्म के बाद दिया जाता है जो नाम पूरे जीवन साथ रहता है और मरने के बाद भी कुछ काल तक भी बना रहता है और मरने के कुछ समय बाद भी समाप्त हो जाता है,नाम का पहला शब्द जीवन को प्रदर्शित करने के लिये माना जाता है इस शब्द के अक्षर और उन अक्षर से बनने वाले नम्बर के बाद ही इस कारण को जाना जाता है। </div>
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<b>किये जाने वाले कार्यों का नम्बर</b><br />
जीवन मे कितने ही कार्य किये जाते है हर कार्य का एक नम्बर होता है जो नम्बर जीवन की शुरुआती हालत मे होता है उसे जीवन के कुछ क्षेत्र के लिये मानते है फ़िर आगे बढने पर दूसरा कोई नम्बर साथ हो जाता है उस नम्बर को भी देखना जरूरी हो जाता है,जितने भी कार्य जीवन मे किये जाने है वह कार्य एक सम्बन्धित नम्बर से जुडे होते है उस नम्बर के आसपास घूमने वाले नम्बरो के आधार पर गिना जाता है कि व्यक्ति कितने प्रकार के कार्य करने के लिये समर्थ है और कितने कार्य वह नही कर सकता है। </div>
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<b>किसलिये कार्य करने है का नम्बर</b><br />
कोई भी कार्य करने का एक कारण होता है और जो कारण बनता है उसका भी एक नम्बर होता है जब तक कार्य के लिये कारण नही बनेगा तब कार्य किया जाना या उसके अच्छे बुरे होने का कोई प्रभाव भी नही जाना जा सकेगा,जीवन मे अलग अलग समय जो कारण बनेगा उसके लिये भी एक नम्बर का प्रकार बनेगा लेकिन उस कारण वाले नम्बर को जानने के लिये बाकी के नम्बरो के अनुसार ही कारण का होना माना जायेगा. </div>
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<b>दिमागी बेलेंस बैठाने का नम्बर</b><br />
कार्य करने है और कारण का नम्बर नही बना है तथा कारण का नम्बर बन भी गया है लेकिन कार्य करने का बेलेन्स दिमाग मे नही बैठ पाया है तो भी काम पूरा नही हो पायेगा या तो कार्य और जीवन की एक ही दिशा बनती चलती जायेगी और दूसरी दिशा का खातमा होता चला जायेगा,हर कारण और कार्य के बीच के लिये एक बेलेन्स करने के लिये भी नम्बर की जरूरत पडती है,जो बेलेन्स दिमाग के लिये माफ़िक दिन के समय के साल के प्रभाव वाले नम्बर के साथ बेलेन्स करने से दिमागी बेलेन्स का कारण बन जाता है. </div>
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<b>दिमाग को स्थिर रखने का नम्बर</b><br />
समय काल और दूरी के नियम के अनुसार दिमाग को स्थिर रखने का भी एक नम्बर होता है जैसे समय है लेकिन काम करने का कारण नही बना है काम करने का कारण भी बना है लेकिन काम मे कठिनता आ रही है इन तीनो से तभी फ़ायदा मिलना माना जा सकता है जब दिमाग मे काम करने की स्थिरता है यह स्थिरता भी नम्बर के अनुसार ही आ पाती है।</div>
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<b>आत्मीय नम्बर</b><br />
कभी कभी देखा होगा कि किसी फ़ोन के आने से उसके साथ नया होने के बाद भी मन जुड जाता है और उस नम्बर से बात करने वाले से लगातार बात करने का मन करता है भले ही वह बात करने वाला किसी भी प्रकार से छ्ल कर दे,और कभी यह भी होता है कि कोई फ़ायदा देने वाला बात कर रहा है लेकिन उसके फ़ोन का नम्बर कुछ इस प्रकार का है कि उससे चाहते हुये भी बात नही हो पाती है आदि बाते आत्मीय नम्बर के बारे मे देखी जाती है जैसे फ़ोन का नम्बर घर का नम्बर वाहन का नम्बर और घर मे रहने वाले लोगो का नम्बर आदि. </div>
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<b>जीवन के प्रति योजना बनाने का नम्बर</b><br />
जिस समय कोई कार्य करना होता है वह चाहे घर से सम्बन्धित हो या बाहर से सम्बन्ध रखता हो वह शादी विवाह के लिये हो या किसी प्रकार के इलाज आदि के लिये किसी शिक्षा से जुडा हो या किसी प्रकार से अन्य कारण से उस समय के नम्बर पर आधारित होता है कि जो योजना कार्य के लिये बनायी जा रही है अगर वह योजना ही गलत नम्बर के समय मे बना दी गयी है तो योजना के लिये भले ही सभी साधन मिल जाये लेकिन वह योजना चाह कर भी पूरी नही होती है,यही बात अक्सर प्रेम करने वाले लोगो के लिये भी देखी जाती है प्रेम का अन्त शादी से होता है और प्रेम करने के समय से अगर शादी के समय मे फ़ेर है और बिना विचार के किये गये ही किसी गलत नम्बर के समय मे शादी की बात चलायी जाती है तो प्रेम होने के बावजूद भी शादी नही हो पाती है आदि बाते इस नम्बर से देखी जाती है। </div>
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<b>छुपे रूप में की जाने वाली घात का नम्बर</b><br />
हम अपने जीवन के प्रति सुरक्षा को लेकर चलते है और कभी कभी यह भी होता है कि हम जिस व्यक्ति से अपना सम्पर्क बना रहे होते है या जिसके ऊपर भरोसा करके चल रहे होते है वह व्यक्ति गुप्त रूप से घात करके चला जाता है या किसी प्रकार से हमने गलत नम्बर का मकान खरीद लिया है और अपनी घात का नम्बर नही पता है तो किसी न किसी प्रकार से वह मकान या वाहन हमारे लिये गुप्त रूप से हानि देने के लिये माना जायेगा चाहे वह वाहन के रूप मे एक्सीडेंट करवाये या घर के नम्बर के रूप मे आजीवन कमाने के बाद भी एक दिन डकैती डलवा दे या वह शिक्षा की शुरुआत करने के बाद ही अपनी योजना को हटाकर शिक्षा के बाद भी काम धन्धे के लिये भटकाव पैदा हो जाये. </div>
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<b>हमेशा कष्ट देने वाला नम्बर</b><br />
कई नम्बर हमारे जीवन मे ऐसे भी होते है जो बिना कारण के ही कष्ट दिया करते है,अक्सर देखा होगा कि जब हम अपने वाहन से आगे जा रहे होते है तो जिस वाहन को कष्ट देना वह किसी भी तरह से आगे जाने की प्रतिस्पर्धा मे सामने आने की कोशिश करेगा,या यह भी देखा होगा कि मकान का नम्बर अगर सही नही है तो गलत नम्बर वाला पडौसी बेकार मे ही परेशान करने लगेगा या कोई फ़ोन का नम्बर ही बेकार मे ही परेशान करने के लिये अपनी काल करने लगेगा आदि इस नम्बर को पहिचान कर पता की जाती है. </div>
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</div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-54327583562351152532012-05-17T08:46:00.003+05:302012-06-23T17:32:37.595+05:30विशेषज्ञ की राय (एक कानूनी पहलू)<body onmousedown="return false" oncontextmenu="return false" onselectstart="return false">
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अन्जान स्थान पर जाते समय रास्ता पूंछना जरूरी होता है,जाने वाले स्थान पर पहुंचने के लिये हम अपने अनुभव के अनुसार साधनो का प्रयोग करते है,जितना अच्छा अनुभव होता है उतनी जल्दी हम अपने गन्तव्य पर पहुंचते है,जितनी अज्ञानता होती है उतनी ही देर हमे गन्तव्य पर पहुंचने मे लगती है। अन्जान रास्ते पर जाते समय आशंकाये मन मे रहती है,कौन सा रास्ता होगा कौन सी मोड आयेगी कौन कौन से खतरे के कारण रास्ते मे आ सकते है,सुरक्षित पहुंचने के लिये कौन सा उपाय सही काम करेगा आदि बाते सामने आती है। गाइड का काम करने वाले इसी प्रकार की सलाह से अपने जीवन यापन को करते है। लेकिन जरूरी नही है कि हमे हमारे जाने वाले रास्ते के लिये गाइड मिल ही जाये,हमे उपयोग करने वाले रास्ते के लिये स्थानीय मदद भी लेनी पडती है। स्थानीय मदद मे उस स्थान के बारे मे सभी कुछ जानने वाले लोगो की मदद ली जाती है। जैसे किसी विशेष स्थान पर जाते समय चौराहे के पान वाले से पूंछा जाता है,वह जैसा भी उत्तर देता है उसी के निर्देशानुसार रास्ता प्रयोग किया जाता है,जितने समय तक रास्ता तय किया जाता है पान वाले की बातो पर ध्यान रखकर चलना पडता है,ध्यान केवल इसलिये रखना पडता है क्योंकि हमे गन्तव्य पर पहुंचना होता है और बताने वाला एक पान वाला होता है,पान वाले से हमारी कोई जान पहिचान नही होती है,फ़िर भी हम उसकी बात का विश्वास करने के बाद चलते है।गन्तव्य पर अगर हम सही सलामत पान वाले की राय से पहुंच जाते है तो हमारे मन मे उस पान वाले के प्रति विश्वास और अधिक गहरा हो जाता है,और हम किसी प्रकार से गन्तव्य पर नही पहु़ंच पाते है तो उस पान वाले के प्रति एक दुर्भावना मन के अन्दर पैदा हो जाती है उसने गलत रास्ता बता दिया था इसलिये समय पर गन्तव्य पर नही पहुंच पाये। सूक्ष्म रूप से अगर इस बात को देखा जाये तो भले ही हमने जब गन्तव्य स्थान का रास्ता पूंछा था उस समय कोई पूंछने मे गल्ती की हो लेकिन दोष उस पान वाले पर चला गया कि रास्ता उसने गलत बताया था। जब दिमाग मे गहराई से सोचा तो पता लगा कि हमने ही उस पान वाले से गलत रूप मे पूंछा था जिससे उसने बताई जाने वाली रास्ता गलत बताई थी। पान वाले ने राय देते समय कोई राय देने की कीमत नही बताई थी,हमने राय लेने के लिये कोई कीमत नही चुकाई थी,अगर पान वाला दोषी है तो उसे दण्ड भी नही मिलना चाहिये और हमने अगर कीमत नही चुकाई है तो हमे अपने मन से पान वाले के दोषी होने का ख्याल नही रखना चाहिये प्रकृति यही कहती है। हमारे जीवन मे दूसरो की दया का होना जरूरी है हर दया की कीमत चुकाना हमारे वश की बात भी नही है,कितनी ही कोशिश की जाये कि हम किसी भी व्यक्ति की दया नही ले,लेकिन बिना दया के लिये हमारा जीवन रुक जायेगा,हमे जहां पहुंचना है वहां हम पहुंच ही नही पायेंगे चाहे वह शरीर के विकास से जुडा रूप हो या ज्ञान की सीमा मे आने वाला क्षेत्र हो,जो भी दया हमे मिलती है वह प्रकृति की दी जाने वाली दया होती है,जैसे हमे धूप से गर्मी रोशनी हवा से सांस लेना पानी से प्यास बुझाना प्रकृति की दी गयी वस्तुओ से अपनी भूख को समाप्त करना आदि।<br />
<b>प्रकृति देती है दया</b><br />
प्रकृति का नियम है कि वह अपने द्वारा पैदा करने वाले जीव को अपनी दया देती है। उस दया को हम ससम्मान ग्रहण भी करते है लेकिन कुछ मायनो मे हम उसी दया को अधिक मूल्य देते है जो दया हमने खरीद कर प्राप्त की हो,यह हमारे प्रयास और हमारी मेहनत से मिलने वाली दया का रूप होता है जैसे गर्म पानी को ठंडा करने के लिये हमने मशीन को खरीदा और पानी को ठंडा करने के बाद उसे प्रयोग मे लिया तो वह पानी रूप की दया तो प्रकृति की थी लेकिन उस पानी की तासीर बदलने की क्रिया को हमने अपनी क्रिया के अनुरूप बना लिया और हमने घमंड कर लिया कि पानी को हमने ठंडा किया है। हम पानी को कीमत लगाकर बेचना शुरु कर देंगे,उसी पानी को साफ़ करने के बाद उसे एक रूप देकर उसका मूल्य प्राप्त करने लगेंगे और प्रकृति की दी जाने वाली दया को हम बेच कर अपने जीवन को आगे बढाने की कोशिश करने लगेंगे। लेकिन सोचना हमे यह चाहिये कि पानी अगर प्रकृति ने नही दिया होता तो हम पानी को ठंडा भी नही कर सकते थे पानी को साफ़ भी नही कर सकते थे,पानी पर हम अधिकार भी नही जमा सकते थे। यह बात दया को खरीदने बेचने की क्रिया के अन्दर शामिल कर लिया गया और उसे अगर हमारे पास अधिक पानी है तो हमे पानी का मालिक बना दिया गया और उस पानी को अगर कोई दूसरा प्रयोग मे लाता है तो उसकी कीमत वह चुकाकर या हमारी दया के आधीन होकर वह पानी को प्रयोग मे लाता है वहां पर हम और वह प्रयोग करने वाला यह भूल जाता है कि पानी तो प्रकृति ने दिया है। फ़िर एक दूसरे की दया और कीमत का प्रयोग करना ही बेकार की बात है।<br />
<b>राय लेने की कीमत और उसका महत्व</b><br />
माँ बच्चे को राय बिना कीमत के देती है पिता अपने पुत्र को बिना किसी कीमत के पालन पोषण करता है,परिवार के लोग भाई बहिन आदि सभी बिना कीमत के आगे बढने की राय को देते है। लेकिन जैसे ही शिक्षा के क्षेत्र मे प्रवेश किया जाता है वैसे ही अजनबी लोगो की श्रेणी शुरु हो जाती है और मिलने वाली सांसारिक शिक्षा के लिये फ़ीस के रूप मे कीमत चुकाना जरूरी हो जाता है। इस रूप मे जो कीमत दी जाती है वह दी जाने वाली शिक्षा की श्रेणी के अनुसार होती है,भले ही विद्यार्थी मे ग्रहण करने की शक्ति नही हो लेकिन उसे कीमत तो चुकानी पडती है,कारण कीमत चुकाना कानूनी अधिकार मे आजाता है और कीमत नही चुकाई गयी तो शिक्षा की श्रेणी मे आगे नही बढने दिया जायेगा। यहां पर दया का रूप समाप्त हो जाता है उस रूप के समाप्त होने का कारण भी है कि हम अपने अनुसार यह व्यक्त करना चाहते है कि अजनबी जो शिक्षा को दे रहा है वह उस शिक्षा की बदौलत अपने जीवन के निर्वाह को कर रहा है। लेकिन हम जो उस शिक्षा से प्राप्त कर रहे है या ग्रहण कर रहे है उसके अन्दर कीमत लेकर शिक्षा उचित रूप मे नही देने के कारण शिक्षा को देने वाला दोषी नही माना जाता है वहां पर दोष हमे दिया जाता है और परीक्षा के रूप मे हमे पास या फ़ेल कर दिया जाता है। अगर कानून यह कहता है कि अजनबी व्यक्ति से शिक्षा लेने के लिये कीमत चुकानी पडेगी तो कानून को यह भी कहना चाहिये शिक्षा के लिये जो कीमत ले रहा है उसे उसी श्रेणी की शिक्षा उसी कीमत मे प्रदान भी करनी चाहिये ? कानून यहां पर चुप हो जाता है इसका कारण है कि कानून हमे दोषी बना देता है कि हमारे अन्दर जितनी शिक्षा दी जाती है उसे ग्रहण करने की शक्ति नही है ? जब ग्रहण करने की शक्ति में समानता नही है तो कानून को भी समान भाव से नही देखना चाहिये ? अथवा कानून मे भी समानता का रूप नही होना चाहिये ? कानून को भी राय देने के मामले मे एक ही प्रकार का कारण प्रयोग मे नही लाना चाहिये। यह नही हो सकता है अगर एक व्यक्ति के लिये एक कानून बनेगा तो संसार मे अरबो खरबो कानून बन जायेंगे आदमी का कानून से चलना दूभर हो जायेगा? जब माँ अपने बच्चे को मुफ़्त मे पालन पोषण करती है पिता बच्चे को मुफ़्त मे धन आदि की सहायता देकर समर्थ होने तक अपनी शक्ति को व्यय करता है,पत्नी मुफ़्त मे बच्चे पैदा करने के बाद परिवार को आगे बढाने के लिये आगे आती है तो इसकी कीमत भी कानून के द्वारा चुकानी जरूरी होनी चाहिये ? ऐसा नही होता है क्योंकि यह प्रकृति के कानून के अन्दर आजाता है और यह सब दया पर निर्भर होता है,यह दया मर्सी आफ़ गाड कहलाती है,इस मर्सी को प्रयोग करने के लिये हम सब स्वतंत्र है,भले ही बच्चे को पालने पोषने के बाद बच्चा माता पिता को छोड कर चला जाये,भले ही बच्चे को पैदा करने के बाद माता पिता उसे कचरे के डिब्बे मे डाल आयें,यहां कानून काम करने लगेगा।<br />
<b>राय मशविरा और कानून का दायरा</b><br />
रास्ता बताने के लिये पान की दुकान वाला जिम्मेदार नही है वह रास्ता बताता है तो उसकी मर्जी है नही बताता है तो उसकी मर्जी है,उसे कानून परेशान नही करेगा। भिखारी को भोजन देना हमारी मर्जी पर निर्भर है हम भिखारी को भोजन दे भी सकते है और नही भी दे सकते है यहां कानून हमे भिखारी को भोजन देने के लिये परेशान नही करेगा। जब हम मुशीबत मे आजायें तब हम जो राय लेंगे वह राय कीमत मे बदल जायेगी। शरीर की तकलीफ़ की राय लेने के लिये डाक्टर को कीमत चुकानी पडेगी,भले ही डाक्टर की राय गलत हो जाये,डाक्टर को कीमत चुकाने के बाद भी डाक्टर को कोई दंड नही झेलना होगा,कारण वह अपनी बचाव की प्रक्रिया मे उसी कारण को पेश करेगा जो कारण सभी तरह से मान्य हो,मेडिकल कानून से जुडा हो। डाक्टर की राय कीमती इसलिये भी हो जायेगी क्योंकि उसने डाक्टरी की पढाई की है,उसे डिग्री देने के वक्त यह मान लिया जाता है कि उसे सभी प्रकार का सम्बन्धित क्षेत्र मे ज्ञान प्राप्त हो चुका है,भले ही शाम को डाक्टर ने अधिक शराब पी ली हो और वह सुबह को उसने अपने बन्द दिमाग से गलत राय दे दी हो,डिग्री धारक होने से कानून उसके पिछले कारको नही देखकर और दिमाग का मुआयना नही करवा पायेगा। उसने जो राय दी है वह ही मान्य होगी भले ही मरीज का ऊपर जाना निश्चित हो चुका हो ? सभी बोझ दवा कम्पनी पर डाल दिया जायेगा मरीज के भोजन और रहन सहन पर डाल दिया जायेगा,दूध की जगह पर छाछ पीकर मरजाना बता दिया जायेगा आदि। एक साधारण आदमी अगर अपने जीवन मे उचित मात्रा मे उसी शिक्षा को प्राप्त करने के बाद मरीज को बचाने के लिये आगे आयेगा तो उसे कानून यह कहकर काम नही करने देगा कि उसके पास डिग्री नही है,वह राय देने के काबिल नही है। पान वाले को नही डिग्री नही दी गयी है तो वह रास्ता बता सकता है,दूध वाले को डिग्री नही दी गयी है वह दूध को पानी मे या पानी को दूध मे मिलाकर बेच सकता है बूट पालिस करने वाले को डिग्री नही दी गयी है,सडक पर कचरा बीनने वाले को डिग्री नही दी गयी है रिक्सा चलाने वाले को वजन ढोने वाले को बर्तन साफ़ करने वाले को व्यापार करने वाले को फ़ैक्टरी लगाने वाले को किसान को मजदूर को मिस्त्री को पत्थर तोडने वाले को मन्दिर के पुजारी को पूजा करने वाले को किसी को भी डिग्री नही दी गयी है यह सब बिना डिग्री के काम कर सकते है ?</div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-33204330103019933352012-04-26T17:41:00.000+05:302012-06-23T17:33:56.454+05:30शिरडी की माटी (भाग 5)<body onmousedown="return false" oncontextmenu="return false" onselectstart="return false">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRlH5MClle16rezV54tgOuv8LmTo_-YglhOrmPBKoGSDiFCBJdvj8B4n2xz-SZuwM2S8AMV1gMAzeTBSYpMf73qNmXT4s95uiACpm744xeOA_VpJxemVeBzOBRkPH8y1bkFCEpvaemyP_c/s1600/kundli.gif" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="211" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRlH5MClle16rezV54tgOuv8LmTo_-YglhOrmPBKoGSDiFCBJdvj8B4n2xz-SZuwM2S8AMV1gMAzeTBSYpMf73qNmXT4s95uiACpm744xeOA_VpJxemVeBzOBRkPH8y1bkFCEpvaemyP_c/s400/kundli.gif" width="400" /></a></div>
सूर्य और चन्द्रमा के लिये केवल शनि ही पल्ले पडा है। जैसे कर्क और सिंह के सप्तम के स्वामी शनि होता है एक सकारात्मक होता है एक नकारात्मक होता है वैसे ही शनि की दोनो राशियों के लिये भी सूर्य और चन्द्रमा ही सप्तम के स्वामी भी होते है और सकारात्मक और नकारात्मक का प्रभाव देते है। चन्द्रमा का रूप जब शनि की राशि मकर से सप्तम का होता है तो वह केवल सोच को पैदा करने के लिये ही अपना फ़ल देता है तथा सप्तम का स्वामी जिस भाव मे होता है उसी भाव का फ़ल भी प्रदान करता है। राशि भी अपना फ़ल प्रदान करती है और सप्तम के स्वामी पर जो भी ग्रह अपनी नजर देते है उन ग्रहों का असर भी सप्तम के स्वामी पर पडता है आगे पीछे के ग्रहो का प्रभाव भी बहुत अदर देता है इसके अलावा एक सिद्धान्त भी है कि राहु से आगे जो भी ग्रह होता उसे राहु के लिये खर्च करना पडता है और राहु से जो ग्रह बारहवा होता है उसके लिये राहु खर्च करता है। लेकिन जो ग्रह राहु के बारहवे होते हुये भी बक्री होता है वह राहु से न लेकर राहु को देने के लिये माना जाता है। धर्म और रोजाना के कार्यों का मालिक बुध है जो बक्री होकर सप्तम मे विराजमान है,जिन कारको के लिये इस ग्रह का प्रभाव देखा जायेगा वह राहु के लिये खर्च करने वाला माना जायेगा। शनि राहु जब एक जगह पर स्थापित हो जाये तो काली मिट्टी की आन्धी की तरह अपना असर प्रदान करते है। यह असर शनि की द्रिष्टि से भी देखा जायेगा और राहु की द्रिष्टि से भी देखा जायेगा। कुन्डली मे धर्म और भाग्य का कारक ग्रह बुध है बुध के वक्री होने का मतलब है कि जो भी भाग्य से सम्बन्धित बाते है धर्म से सम्बन्धित बाते है वह खुद न करके दूसरो के लिये करना,जब कोई बात खुद के लिये प्रयोग नही की जाती है तो यह माना जाता है कि जो लोग खुद तो मन्दिर मे रहते है और दूसरो के लिये पूजा पाठ धर्म कर्म आदि करवाते उनके लिये भाग्य केवल उतना ही काम करता है जितने से वह अपना पेट भर सकते है और अपने परिवार की गाडी धीमी गति से चलाते रहते अगर यह बुध राहु जैसे चालाक ग्रह एक साथ हो जाता तो उन्ही लोगो की तरह से हो जाता जो लोग अपने जीवन मे तो दुखी होते ही और और दूसरे को भी अपनी चालाकी से झूठ बोलकर दुखी करने के लिये माने जाते है। यह बात इस कुंडली से नही मिलती है। यह भी कहा जाता है कि राहु जब अष्टम मे होता है तो गूध ग्यान का कारक भी बन जाता है लेकिन जातक का गुरु अगर राहु के घेरे मे आजाता है तो वह अपने गूढ ग्यान को प्राप्त करने के चक्कर मे अपनी खुद की औकात को राख बना डालता है लेकिन इस राहु के घेरे मे अगर शनि आजाता है तो जातक अपने गूढ ग्यान से लोगो के जीवन मे एक प्रकार से रोशनी कर जाता है। राहु अपनी बुद्धि से अपनी गूढता को केतु को देता है और केतु को बल लेने के लिये अपने परिवार के बडे लोगो की हैसियत पर निर्भर रहना पडता है। इस बात को भी उपरोक्त कुंडली के अनुसार माना जा सकता है। इस कुंडली का मुख्य ग्रह शनि है जिसने अपने बल से सूर्य को भी घेरे मे ले रखा है इस कारण से जीवन साथी का व्यवहार अपने खुद के परिवार से सही नही रहना माना जाता है बुध वक्री से युति लेने के कारण जो भी कार्य होते है उन कार्यों मे खुद की मानसिक स्थिति से बार बार बदलने वाली पोजीशन भी मानी जाती है अक्सर यही मन मे लगा रहता है कि अमुक अपने काम को करने के बाद कितना आगे बढ गया है और वह अपने कार्यों को करने के बाद भी आगे नही बढ पा रहा है इस प्रकार को अधिक असरकारक करने के लिये शनि का प्रभाव जब जन्म के चन्द्रमा पर भी जाने लगता है तो जातक अपने बनाये प्लान कभी भी सफ़ल नही कर पाता है अगर वह अपने काम रास्ता चलते करने लग जाता है तो उसके सभी काम बडी आसानी से पूरे हो जाते है। सप्तमेश का धर्म भाव मे होना तथा इस भाव का कालेज शिक्षा आदि से भी सम्बन्ध रखना माना जाता है इस मे सूर्य की युति शनि से होने के कारण बहुत मेहनत करने के बाद यानी भटकाव के बाद ही सरकार की कृपा मिल पाती है। ऐसा भी होता है कि जब लोग बहुत ही परेशान हो जाते है और थकर बैठ जाते है तो यह शनि चन्द्र सूर्य का सहारा लेकर अपनी शक्ति को दे देता है और जातक अपने जीवन पीछे किये गये परिश्रम के आधार पर आगे बढ जाता है। वर्तमान मे गुरु का गोचर चौथे भाव मे होने से और गुरु का योगात्मक प्रभाव अष्टम के शनि से होने के कारण अक्सर जातिका ठगी का शिकार भी हो जाती है कारण गुरु जब अष्टम शनि राहु के घेरे मे आजाता है तो धन की और घर की बातो मे दिक्कत का आना हो जाता है यही बात सन्तान के मामले मे भी मानी जाती है कारण शनि का प्रभाव भी धार्मिक रूप से लेकिन राहु का रूप पूर्ण रूप से मिलने के कारण जातिका आगे अपने कार्यों मे सरलता से सफ़ल हो जाती है। </div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-57841460227153556412012-04-22T18:35:00.000+05:302012-04-22T18:35:34.192+05:30चौसठिया कौडी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi7FL0PDAZKHeLSjlussDWzZ4K6KjsilhdtzQlvnhdzcNsiYNW1cyHK7OhQkKNWjfitUai6JoVd8th6cLFw5NhxGUpJF4X0z83JDk0LdEeuHpANajfLzySauwxpDCrrZENyIU93TPf64rCK/s1600/22042012005.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi7FL0PDAZKHeLSjlussDWzZ4K6KjsilhdtzQlvnhdzcNsiYNW1cyHK7OhQkKNWjfitUai6JoVd8th6cLFw5NhxGUpJF4X0z83JDk0LdEeuHpANajfLzySauwxpDCrrZENyIU93TPf64rCK/s400/22042012005.jpg" width="400" /></a></div>
पुराने जमाने मे मुद्रा के चलन मे नही होने पर कौडी का प्रयोग किया जाता था और वस्तुओ की खरीददारी आदि कौडी से की जाती थी,कौडी से गिनती की क्रिया भी पूरी की जाती थी तथा कौडी के अनुसार ही एक दूसरे को सन्देश भेजने की क्रिया की जाती थी। आज भी एक कहावत बडे रूप से कही जाती है कि "दो कौडी की औकात है" या कौडी की औकात नही है फ़िर भी आगे आगे फ़िरने की कोशिश करते हो। कौडी समुद्र और नदियों मे पायी जाती है। सबसे उत्तम समुद्र की कौडी मानी जाती है,तथा नर्मदा के समुद्र मे मिलने के स्थान की कौडी भारी भी होती है और काम की भी मानी जाती है। कौडी का प्रयोग बुध ग्रह के तंत्रो मे किया जाता है। जब बुध ग्रह परेशान करने लगता है तो लोग कौडी को उपाय के रूप मे प्रयोग करते है,तांत्रिक लोग बिना कौडी के कभी तंत्र विद्या का प्रयोग नही करते है। बुध कमन्यूकेशन का ग्रह है जब भी लोग अन्जान लोगो से मुलाकात करने जाते है सिद्ध कौडी को अपने साथ ले जाते है,शमशानी क्रियाओं मे भी कौडी का इस्तेमाल किया जाता है। जहां शिव लिंग पर भस्म का प्रयोग किया जाता है वहां कौडी की भस्म अपनी मान्यता अलग ही रखती है,कई बार कौडी को सजाने के काम मे भी लिया जाता है और इसे मंत्र से अभिषिक्त करने के बाद लोग अपने घर मे भी रखते है भारत मे कई जातिया कौडी को अभिमंत्रित करने या करवाने के बाद बच्चो और पशुओं के गले मे भी बांधते है,कौडी का प्रयोग जुआ आदि खेलने के काम भी लिया जाता है जहां चित्त पट्ट कौडी के रूप मे हार जीत का फ़ैसला किया जाता है,जैसे चार कौडी को उछाला गया और चारो ही पट्ट पड गयी तो बडी जीत या बडी हार मानी जाती है वैसे ही एक दो तीन आदि के लिये भी माना जाता है। चौपड खेल मे कौडी का बहुत महत्व है यह रजबाडो के जमाने मे खेला जाता था तथा आज भी कहीं कहीं चंगा पो नामक खेल खेला जाता है।<br />
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कौडियों मे चौसठिया कौडी की अधिक मान्यता है यह अधिकतर समुद्र मे ही मिलती है और गहरे सरोवरो मे भी कभी कभी मिल जाती है।इस कौडी का रूप भी बडा होता है और यह अक्सर दीपावली ग्रहण आदि के समय लोगो की तिजोरियों से बाहर आती है,अन्यथा यह अद्रश्य ही रहती है,किसी को भाग्य से यह किसी समुद्री आइटम बेचने वाले की दुकान पर मिल जाये तो भाग्य वाली बात भी मानी जाती है.<br />
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इस कोडी का प्रयोग लोग अपने व्यवसाय स्थान मे बिक्री आदि के बढाने के लिये रखते है किसी खतरनाक काम को करने के लिये यह अपने साथ जेब मे रखकर ले जायी जाती है,अक्सर बीमारी की अवस्था मे इसे सिरहाने रखा जाता है। चौसठिया का रूप अक्सर व्याधि नजर तंत्र आदि को खाने के लिये माना जाता है,इस कौडी की विशेषता होती है कि किसी भी कमरे आदि मे खुले मे रखने के बाद जब इसे साफ़ पानी से धोया जाता है तो इसके अन्दर से पीले रंग का पानी निकलता है साथ ही जब किसी बन्द बक्से और तिजोरी आदि मे रखा जाता है तो धोने पर पानी का रंग कालिमा लिये होता है,बीमारी की अवस्था मे सिरहाने रखने के बाद धोने पर इसके धोने का पानी हल्की लालिमा लिये होता है,कोई दोष नही होने पर यह साफ़ पानी ही दिखाती है।</div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-14338749939235403882012-04-20T19:13:00.001+05:302012-04-20T19:13:22.704+05:30कल था वह आज नही,आज है वह कल नही !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बचपन मे धरती के घूमने का सिद्धान्त पढा था,जब तक इस सिद्धान्त को नही पढा था तब तक यही बात दिमाग मे रहा करती थी कि सूर्य और तारे घूम रहे है धरती अपने स्थान पर स्थिर है,लेकिन जब पता चला कि धरती भी घूम रही है और सितारे भी घूम रहे है,सूर्य अपने स्थान पर स्थिर है,बहुत बडा अचम्भा हुआ था,कि वाह ! जो सूर्य कल तक हमारे चारो ओर घूम रहा था,आज पता लगा कि हम ही सूर्य के चारो ओर घूम रहे है,खैर यह बचपन की बातें थी,जो बचपन मे था वह आज नही है आज है वह कल नही रहेगा।<br />
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एक ज्योतिषी जी पास मे बैठे थे किसी व्यक्ति को ज्ञान दे रहे थे,तुम्हारा जन्म से सूर्य खराब है इस सूर्य की आराधना कर लो और सूर्य का रत्न पहिन लो फ़िर तुम्हारी जिन्दगी सही चल उठेगी। उनकी बात पर अचम्भा भी हुआ और मन ही मन हंसी भी आयी,सूर्य यानी पिता ने अपने कर्तव्य को पूरा नही किया होता तो यह शरीर नही होता और शरीर का पालन पोषण उनके द्वारा नही हुआ होता शिक्षा दीक्षा नही दी गयी होती तो यह शरीर आज इस लायक ही नही था कि वह व्यक्ति ज्योतिषी जी तक पहुंच पाता,यह तो बात दुनियादारी से सोचने के लिये है इसी प्रकार से जब व्यक्तिगत रूप से सोची जाये तो शरीर में तकलीफ़ है हड्डियों मे बीमारी है क्षरण होने लगा है चेहरे पर दाग बन गये है सरकार से परेशानी होने लगी है पिता बीमार है लोग उल्टी सीधी बाते करने लगे है घर के अन्दर ही राजनीति बनने लगी है,हर बात पर घर मे तू तू मै मै होने लगी है,बाते अधिक और काम कम होने लगा है हर बात पर तर्क किया जाने लगा है,आंखो की रोशनी कम होने लगी है चशमा भी कम पडने लगा है तो माना जा सकता है कि सूर्य को खराब कर लिया गया है सूर्य खराब नही हुआ है,नमक अधिक खाया होगा स्त्री संगति अधिक की होगी गलत लोगो की संगतिमे आकर गलत स्त्री संगति की होगी पिता को शराब कबाब और उल्टी सीधी बातो से परेशान किया होगा जिससे वह चिन्ता मे चले गये और बीमार हो गये घर के लोगो के लिये उल्टा सीधा पैसा लाकर दिया होगा जिससे वह हराम खाऊ हो गये और जब नही मिल रहा है तो आपस मे ही लडने झगडने लगे है खुद ने भी चिन्ता मे रहकर भोजन और नीन्द से दूरी बना ली होगी इसलिये आंखो की रोशनी पर फ़र्क पडने लगा होगा अगर इन्ही बातो पर ध्यान दिया जाता तो सूर्य खराब क्यों होता। रोजाना व्यायाम किया जाये रोजाना के काम पूरी लगन से पूरे किये जाये कोई भी काम करने से पहले उसे सोचा जाये जिस भोजन से पाचन क्रिया सही रहे उस भोजन को नियम से लिया जाये स्त्री संगति को कन्ट्रोल मे रखा जाये गलत लोगो की संगति को त्याग दिया जाये,रात की नींद पूरी की जाये तो अपने आप ही शरीर का सूर्य सम्भल जायेगा,यह सब होना नही तो ज्योतिषी तो क्या भले ही जिन परमपिता परमात्मा ने इस जमीन पर भेजा है वह भी आ जायें तो भी कुछ नही होने वाला है। सूर्य राजनीति है और यह सभी के पास मौजूद है अच्छे के लिये अच्छा देखेगी और बुरे के लिये बुरा देखेगी जो सूर्य की रोशनी मे रहकर कार्य किया जाता है वह सभी के सामने होता है जो गुप्त रूप से किया जाता है उस पर तो सभी अपना अपना अन्दाज लगायेंगे कोई सही अन्दाज भी लगा सकता है कोई गलत अन्दाज भी लगा सकता है और जब गलत और सही अन्दाज लगाने की नीति मे फ़ंसना होगा तो बुरा भी लग सकता है भला भी लग सकता है,पुराने जमाने मे केवल अन्दाज कुछ लोगो तक ही सीमित रहता था आज के जमाने मे अभी करो थोडी देर मे संसार को पता लग जायेगा। तो वही काम करो जो लोगो के लिये फ़ायदा देने वाले हो वही कमाई करो जो शाम को नीन्द भी अच्छी दे और भूख भी खूब लगाये,जो सन्तान और घर के लोग है वे भी समझे कि घर मे जो आ रहा है वह मेहनत करने के बाद और सच्चे रूप से आ रहा है उन्हे भी कोई गलत लत नही लगेगी,राजनीति भी नही होगी,सच्चे को लोग सच्चा ही कहेंगे अपने आप सूर्य काम करने लग जायेगा। जो कल था वह आज नही है और जो आज है वह कल नही रहेगा।<br />
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चन्द्रमा खराब होने की निशानी होती है कि मन की सोच बदल जाती है झूथ बोलना आजाता है,चलता हुआ रास्ता भूला जाता है माता बीमार रहने लगती है जुकाम और ह्रदय वाली बीमारिया शुरु हो जाती है वाहन जो भी पास मे है सभी किसी न किसी कारण से बन्द हो जाते है बडी या छोटी बहिन भी दिक्कत मे आजाती है घर मे पानी मे कही न कही से गन्दगी पैदा हो जाती है भोजन करते समय पसीना अधिक निकलने लगता है किसी भी काम को करते समय खांसी आने लगती है गले मे ठसका लगने लगता है चावल को मशाले वाले पदार्थो मे मिलाकर खाने का जी करने लगता है। घर मे कन्या संतति की बढोत्तरी होने लगती है,कोई बहिन बुआ बेटी विधवा जैसा जीवन जीने लगती है,पडौसी नाली के लिये और घर मे आने वाली पानी के लिये लडने लगते है,मूत्र रोग पैदा हो जाते है,घर मे सुबह शाम की सफ़ाई भी नही हो पाती है,पानी का सदुपयोग नही किया जाता है घर मे पानी का साधन खुले मे नही होकर अन्धेरे मे कर दिया जाता है,पानी को बेवजह बहाना शुरु कर दिया जाता है,लान मे लगी घास सूख जाती है अधिक पानी वाले पेड नही पनप पाते है घर के एक्वेरियम मे मछलिया जल्दी जल्दी मरने लगती है,जुकाम वाले रोगो से पीडा होने पर सिर हमेशा तमकता रहता है अच्छे काम को करने के समय भी बुरा काम अपने आप हो जाता है मन की गति कन्ट्रोल नही होने पर एक्सीडेन्ट हो जाता है पुलिस और कानूनी क्षेत्र का दायरा बढने लगता है घर के अन्दर दवाइयों का अम्बार लगने लगता है। आंखो से अपने आप ही आंसू आने लगते है,आसपास के लोग तरह तरह की बाते करने लगते है हितू नातेदार रिस्तेदार सभी कुछ न कुछ कहते हुये सुने जाते है जिन लोगो के साथ अच्छा काम किया है वह भी अपनी जीभ से उसे उल्टा बताने लगते है जो अधिक चाहने वाले होते है उनके अन्दर भी बुराइया आने लगती है आदि बाते देखने को मिलती है।ज्योतिषी जी से पूंछो तो वह कहने लगेंगे कि मोती की माला पहिन लो चन्द्र मणि को पहिन लो चांदी को पहिन लो चांदी को दान मे दे दो,चन्द्रमा के जाप कर लो,यह सब खूब करो लेकिन जो कल किया है उसे आज भुगतने के लिये ज्योतिषी जी अपने सामान के साथ सहायता नही दे पायेंगे,कितने ही मंत्र बोल लो लेकिन मंत्र भी तब तक काम नही करेगा जब तक चित्त वृत्ति सही काम नही करेगी,घर मे रखी चांदी को या खरीद कर दान मे देने से किसी और का भला हो सकता है बिना चित्त वृत्ति बदले खुद का भला तो हो नही सकता है,मोती की माला भी तभी काम करेगी जब चित्त वृत्ति बदलेगी,अगर आज से चित्त वृत्तिको बदलने की हिम्मत है तो कल अपने आप ही सही होने लगेगा नही मानो तो अंजवा कर देख लो। चन्द्रमा का काम तुरत फ़ल देना होता है वह आज धन के भाव मे रहकर धन को देगा लेकिन जैसे ही वह खर्चे के भाव मे जायेगा तो धन को खर्च भी करवा लेगा,जो भी कारक उसके साथ होगा उसी के अनुसार वैसे ही काम करने लगेगा जैसे पानी मे मिठाई मिला दो तो मिठाई जैसा काम करने लगेगा गर्मी मे रख तो गर्म हो जायेगा फ़्रिज मे रख तो ठंडा हो जायेगा,मिर्ची मिला तो कडवा हो जायेगा जहर मिला तो जहरीला हो जायेगा,लेकिन चित्त वृति नही बदलती है तो वह जहरीला पानी मार सकता है और चित्त वृत्ति बदली है तो वह किसी जहरीले जानवर के काटने पर उसे बचा भी सकता है,मिर्ची वाला पानी सब्जी मे दाल मे भोजन के काम आ सकता है गर्म पानी चाय मे काम आ सकता है और ठंडा पानी शर्बत मे काम आ सकता है,लेकिन यह सब होगा तभी जब चित्त वृत्ति को बदल लो,बिना चित्त वृत्ति को बदले कुछ भी नही हो सकता है। चन्द्रमा भावुकता कारक है,अधिक भावना मे आकर यह रोना भी शुरु कर देता है और जब प्रहसन पर आये तो हँसना भी चालू कर देता है,जब गम की श्रेणी मे आजाये तो अकेला बैठ कर सोचने के लिये भी मजबूर कर सकता है,डरने की कारकता मे चला जाये तो थरथर कांपने भी लगता है। यह सब कारण अच्छी और बुरी भावना को साथ लेकर चलने से ही होता है,अन्यथा नही होता है।जब मन के अन्दर बदले की भावना नही पैदा होगी तो किसी से बैर भाव भी नही होगा और जब बैर भाव नही होगा तो लोग अच्छा ही सोचेंगे जो मन की भावनाये है उनका अच्छा और बुरा रूप दोनो सोच कर निकालेंगे तो हो ही नही सकता है कि कोई बुराई मान ले। लेकिन यह भी ध्यान रखना है कि फ़ूल और तलवार का रूप भी दिमाग से समझना पडेगा अन्यथा तलवार का काम काटना होता है और फ़ूल का काम सुन्दर भावना को देना होता है,कसाई तलवार की भाषा को समझता है और सन्त फ़ूल की भावना को समझता है।जैसे ही मन की भावना बदली मोती की माला भी काम करने लगेगी,लोगो को एक गिलास पानी पिलाने से भी चांदी के दान से बडा फ़ल मिलने लगेगा,एक सफ़ेद कपडा पहिनने से भी चन्द्रमणि का फ़ल मिलने लगेगा। यह सब कल की बुराई को आज निकालने पर कल अच्छाई से ही मुकाबला होगा इसमे कोई दोराहा नही है,नही मानो तो अंजवा कर देख लो।</div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-31172282660868432792012-04-20T12:31:00.000+05:302012-04-20T12:31:11.109+05:30शिरडी की माटी (भाग 4)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjFLZZUvvwh7dtmiq-G5aQrLwsQLLRgDL8o0guD9bFYowLYhwUhGDNJOD2MglrzFOFKHYccAqtMkrdRfL_RmTqbsShrHl8SdUskOiiT6TicaMAhyfsbaRwApLilsNReRtCt1jnn5YS0ao5T/s1600/kundli.gif" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="231" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjFLZZUvvwh7dtmiq-G5aQrLwsQLLRgDL8o0guD9bFYowLYhwUhGDNJOD2MglrzFOFKHYccAqtMkrdRfL_RmTqbsShrHl8SdUskOiiT6TicaMAhyfsbaRwApLilsNReRtCt1jnn5YS0ao5T/s400/kundli.gif" width="400" /></a></div>
एक कहावत है कि जो समय आज और अभी है उसे कभी प्राप्त नही किया जा सकता है। उसका प्रभाव रूप और शक्ति का परिवर्तित रूप ही आगे प्राप्त होगा,बिलकुल वैसा तो कभी प्राप्त नही हो सकता है। ज्योतिष का एक नियम और भी है जो किसी भी प्रकार से हर समय हर जगह और हर प्रकार से प्रयोग मे लाया जाता है वह होता है जब सूर्य देखता है तो चन्द्र सोचता है और देखने और सोचने की क्रिया को भौतिक रूप मे बदलने के लिये शनि अपने कार्य को करता है,बाकी के ग्रह नक्षत्र योग संयोग सभी अपने अपने अनुसार सहायक शक्तियों के रूप मे देखे जाते है। ऊपर दो कुंडली आपके सामने है एक कुंडली शिरडी की प्राचीन आत्मा की है और दूसरी शिरडी की एक दूसरी आत्मा की है। दोनो के पैदा होने की लगन एक ही है समय बदल गया है,पहली कुंडली मे चन्द्रमा लगन मे ही विराजमान है दूसरे मे चन्द्रमा ग्यारहवे भाव मे विराजमान है,पहले मे सूर्य की स्थिति कार्य भाव मे है और दूसरे के सूर्य की स्थिति धन भाव मे है,पहली कुंडली मे शनि की स्थिति बारहवे भाव मे है और दूसरे की स्थिति छठे भाव मे है,यह क्रिया देखने सोचने और करने के लिये मानी जा सकती है। इसी प्रकार से बाकी की शक्तियां जो सहायक शक्तियों के रूप मे काम करने वाली है,वे अपने अपने अनुसार कार्य मे है।<br />
<ul style="text-align: left;">
<li>धनु राशि का मूल्य समझने के लिये पहले धर्म का मूल्य समझना पडेगा,मेष सिंह और धनु धर्म की राशिया है,धर्म का मतलब कोई पूजा पाठ तीर्थ यात्रा या संस्कार से ही नही माना जाता है धर्म का मुख्य रूप समाज मर्यादा कानून न्याय स्थान और स्थान के इतिहास से माना जाता है,धनु लगन मे पैदा होने वाला जातक उपरोक्त कारणो मे ही अपने जीवन को लेकर चलता है.इस राशि वाले जोखिम को लेकर ही आगे बढने वाले होते है,वह जोखिम पहली कुंडली के अनुसार बारहवे शनि को देखने से पैदा होने वाले स्थान को छोड कर शमशानी स्थान जिसे वीराना भी बोलते है,मे जाकर अपनी स्थिति को दर्शाने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर करता है तो दूसरी कुंडली का जातक छठे भाव के शनि के अनुसार अपने को सेवा वाले कामो मे ले जाकर अपनी स्थिति को दर्शाने का काम करता है.शनि के बाद वाला ग्रह या राशि व्यक्ति को अपने स्थान से दूर जाने के लिये बाध्य करती है.धनु राशि मृत्यु की राशि के बाद की राशि है,इस लगन मे पैदा होने वाला जातक एक ऐसे परिवार मे जन्म लेता है जिसके पूर्वज पहले अपना सब कुछ बरबाद करने के बाद या तो दूसरे स्थान पर आकर बसे होते है या उन्हे अपने परिवार को त्याग कर दूर जाकर बसने के बाद ही अपने जीवन को चलाने के लिये मजबूर होना पडता है.</li>
<li>धनु राशि का चौथा भाव मीन राशि होने के कारण दिमाग मे जो सोच बनती है वह मोक्ष के लिये ही बनती है,मोक्ष का दूसरा नाम शांति से है,जिस कारक से शांति मिलती है वही कारक इस लगन के जातक को अपनाने मे अच्छा लगता है। </li>
<li>मीन राशि का मालिक हकीकत मे राहु होता है,राहु का कार्य अचानक सोच को देना होता है जो कहा जाये उसे पूरा करने की योग्यता को भी देना होता है,पहली कुंडली मे राहु का स्थान इसी राशि मे है,राहु की नजर मीन राशि के अलावा वृष राशि पर भी है कर्क राशि पर भी है कन्या राशि पर भी है,और बारहवे भाव की वृश्चिक राशि पर भी है.चौथे भाव मे होने से सोच का रूप आसमानी शक्तिओं के अनुसार बन जाता है,जो भी सोचा जाये जो भी मन मे लाया जाये उसे अपने दिमागी असर से नही बल्कि आसमानी सोच के प्रभाव से ही माना जा सकता है.यह सोच मनुष्य को मनुष्य के जीवन मे भी रखकर सोच ईश्वरीय शक्ति की ही देती है.इस सोच मे चौथे भाव मे होने पर जो भी मानसिक लगाव होता है वह शांति को प्रदान करने के लिये ही माना जा सकता है ऐसा व्यक्ति एक स्थान पर बैठा जरूर होता है लेकिन उसका विचरण अन्य दुनिया मे होता है वह एक स्थान पर बैठ कर किसी भी स्थान के बारे मे वर्णन केवल इसलिये कर सकता है क्योंकि यह राहु उसके सामने अन्तर्मन से घटनाओ को उजागर करने के लिये अपने बल को देता है.</li>
<li>इस राहु का दूसरा प्रभाव उन कारणो को जान लेने का होता है जो कर्जा दुश्मनी बीमारी और दैनिक जीवन मे मिलने वाली दिक्कतो के लिये माना जा सकता है,छठे भाव मे राहु की पहुंचने वाली शक्ति से इस लगन का जातक अपने मन के अनुसार वही बात सोचता है जो लोगो के प्रति उनकी आगे की संतति मे मिलने वाली बाधा (वृष राशि कुटुम्ब की राशि भी है) लोगो के निर्धन होने पर उन्हे दी जाने वाली आर्थिक सहायता (वृष राशि धन की राशि भी है) तथा जो लोग धन से दुखी है परिवार से दुखी है आगे की संतति से दुखी है उनकी व्यथा को दूर करने के लिये यह राहु अपना काम करता है। इसी प्रकार से राहु की पंचम द्रिष्टि का अष्टम मे विराजमान मंगल पर होने के कारण मंगल जो पैशाचिक शक्तियो का मालिक अष्टम मे जाने से हो सकता है और वे शक्तियां जब जन सामान्य के ऊपर हावी हो जाती है तो लोगो की सोच इंसानियत से बदल कर हैवानियत मे बदल जाती है,इस राहु के द्वारा जब मानसिक बल मिलता है तो वह शक्तियां अपने रूप को बदलकर मानवीय हितो के लिये काम करना शुरु कर देती है,जैसे महामारी के फ़ैलने पर इस राहु की शक्ति के द्वारा रोका जाना,भयंकर बीमार लोगो को अपनी सोच से ही ठीक कर देना,आपसी रंजिस को जो मारकाट से सम्बन्धित हो उसे दया के भाव मे बदल देना आदि। </li>
<li>इस राहु की सप्तम द्रिष्टि कन्या राशि पर है और जब कन्या राशि मे इस राहु का प्रभाव जाता है तो जातक की सोच लोगो की सेवा भावना मे जाने का प्रमाण मिलता है यानी धनु लगन मे पैदा होने वाला जातक उन्ही कामो को करेगा जहां से लोगो की सेवा की जा सकती है,वह सेवा धन से भी हो सकती है अस्पताल से भी हो सकती है बैंक आदि के कार्यों से भी हो सकती है और रोजाना की सेवा श्रुषूसा से भी हो सकती है। केतु के इस भाव मे होने से कार्य और सेवा मे जो लोग अपंग होते है जो लोग साधनो से हीन होते है जिन लोगों की जिन्दगी किसी भी कारण से अपंग हो चुकी होती है उनकी सेवा करने की भावना भी होती है,इसी राहु की नजर जब बारहवे मे विराजमान वृश्चिक राशि मे जाती है तो जातक की नजर उन्ही स्थानो पर शांति के लिये जाती है जहां उजाड हो और उस उजाड मे रहने से उन्हे एक प्रकार की अजीब सी शांति मिलती है,उस शांति का प्रयोग वह दैनिक जीवन मे लेना शुरु कर देते है। इस भाव मे शनि के होने से जातक को ध्यान समाधि स्थान परित्याग और किये जाने वाले कार्यों मे उन्ही लोगो के प्रति उद्धार की भावना होती है जो समाज परिवार देश और स्थितियों से शमशानी कारणो मे पहुंच गये होते है।</li>
<li>दूसरी कुंडली मे यही राहु जातक के दूसरे भाव मे है,यह भाव कहने के लिये तो धन का भी कहा जाता है कार्य का भाव इसलिये बन जाता है क्योंकि इस भाव मे मकर राशि आजाती है और इस भाव मे जब राहु सूर्य के साथ होता है तो वह दैनिक जीवन के आधार को बनाने के लिये सरकारी कार्यों की तरफ़ भी चला जाता है बुध से युति होने के कारण जो भी वह कहना चाहता है उसके लिये किसी प्रकार की गणित विद्या जैसे ज्योतिष आदि के साधन सामने करने के बाद बोलता है लेकिन साधन जरूर सामने होते है और तरीके भी गणित के होते है लेकिन ऐसा भी होता है कि जातक जब अपने मे नही होकर अचानक बोलता है तो वह सत्य हो जाता है,यह बात कभी कभी जातक को सोचने के लिये मजबूर भी करती है कि यह किसी भी सिद्धान्त मे नही था लेकिन उसने जो कहा वह सत्य कैसे हो गया ? यही राहु सूर्य बुध को साथ लेकर कुटुम्ब की शक्ति के रूप मे देखा जा सकता है,इस राहु की तीसरी नजर मीन राशि पर होने से जातक जहां भी निवास करता है वहां का माहौल एक प्रकार से ईश्वरीय शक्तिओं से पूर्ण हो जाता है,अगर वह जंगल मे भी जाकर बैठ जाये तो शुक्र पर राहु की द्रिष्टि होने पर भौतिकता का अम्बार लग जाता है,जातक को यह राहु जो प्राप्तिया देताहै वह किसी भी प्रकार से कम नही होती है। राहु बुध और सूर्य के साथ होने पर बुध और सूर्य की सीमा मे विस्तार कर देता है लोग कहते है कि राहु सूर्य के साथ होने से ग्रहण लगा देता है लेकिन यह बात बुध के साथ होने पर राहु के द्वारा नही मानी जा सकती है,कारण राहु और बुध मिलकर सूर्य की सीमा मे विस्तार देते है। सूर्य से तीसरा शुक्र भी इसी मान्यता को पूर्ण करता है कि जातक की माता घर मे बडप्पन लेकर आती है और मीन राशि का शुक्र अगर राहु बुध सूर्य से तीसरा होता है तो वह जातक की उत्पत्ति तीसरी माता से ही देता है,यह राहु माता के मामले मे तीसरी शक्ति से उत्पन्न होने की बात करता है तो जातक के लिये तीसरे स्थान पर जाने के बाद यानी पहले और दूसरे मकान भी जातक के लिये काम के नही रहते है लेकिन तीसरे मकान के अन्दर जाते ही जातक का भाग्य खुल जाता है और जातक किसी भी प्रकार से अपने को दुखी नही रख सकता है,यही बात तीसरे रहने वाले स्थान पर तीन प्रकार के शुक्र होने के कारण भी मिलते है जैसे पत्नी का होना शुक्र के रूप मे वाहन का होना और इसी शुक्र के रूप मे लक्ष्मी का स्थापित होना भी माना जा सकता है। इस राहु का स्थान धन स्थान मे होने के कारण जातक के द्वारा लोगो की धन से काफ़ी मदद की जाती है लेकिन इसी राहु के द्वारा अक्समात निर्णय लेने के कारण हानि भी मिलती है लेकिन यह राहु अपनी योग्यता से लोगो के लिये हित सोचने के कारण अक्समात ही धन की प्राप्ति भी कर लेता है।कार्य की राशि मे होने के कारण और कार्य की राशि का धन स्थान मे होने के कारण जातक जो भी कार्य के समय मे कह देगा वह सत्य होने के लिये भी जाना जा सकता है। इसी प्रकार से जातक अपनी शक्ति को ईश्वरीय शक्ति मे बदलने के लिये भौतिकता का भी सहारा लेकर चलेगा,यह बात केवल शुक्र के अनुसार ही मानी जाती है और तीन शक्तियां वह किसी भी रूप मे रहकर साथ देने के लिये भी सही मानी जायेंगी। वह तीन भाइयो और बहिन की संख्या मे भी हो सकता है पुत्र और पुत्रियो के साथ भी हो सकता है पत्नी और सहायक कार्य करने वाले लोगो के कारण भी हो सकता है। यह राहु छठे भाव पर भी अपनी नजर को दे रहा है जो लोग कर्जा मे होंगे दुश्मनी मे होंगे बीमारी से ग्रसित होंगे आधुनिक कला की जानकारी के अनुसार जातक उन्हे अपनी सहायता जरूर देगा और उस सहायता को लेकर लोग आगे बढते जायेंगे। इस राहु की नजर अष्टम के केतु पर होने पर जातक रिस्क लेकर अगर अपने लिये कोई कार्य ब्रोकर वाला करेगा तो उसे लाभ होना तो है लेकिन वह लाभ को सम्भाल नही पायेगा वह उस लाभ को दूसरे मदो मे लेकर लोगो की सहायता कर देगा। इसी बात को अगर पुरानी मान्यताओ से माना जाये तो जातक को भूत प्रेत और तांत्रिक क्रियाओ की जानकारी भी होगी लेकिन वह दूसरो की सहायता के लिये मानी जा सकती है। इस राहु की गति के कारण एक बार और भी मानी जा सकती है कि जातक अगर अचल सम्पत्ति को खरीदने बेचने मे अपनी मंशा को रखेगा तो धन कैसा भी हो फ़्रीज हो जायेगा इसी प्रकार से शनि से सम्बन्धित कारणो को अपने जीवन मे लाकर वह किसी प्रकार की अपनी धारणा को रखेगा तो भी उसके धन और मानसिक सोच का फ़्रीज होना माना जा सकता है। शनि की उपस्थिति सेवा की राशि मे होने के कारण जैसे ही जातक अपने को सेवा वाले भावो से ऊपर जाकर मालिक की हैसियत से देखने की कोशिश करेगा यह शनि अपनी शक्ति से नीचे बैठा देगा और वापस सेवा के कार्यों मे जाने के लिये मजबूर कर देगा, कार्य का बदलाव कभी भी दिक्कत को देने वाला हो सकता है,जैसे पहली वाली कुंडली मे शनि का स्थान बारहवे भाव मे है तो जातक बाहरी शक्तियों से अपने कार्य को करने वाला था और उन शक्तियो को ग्रहण करने के लिये जातक को वीराने का सहारा लेना पडा था उसी प्रकार से दूसरी कुंडली वाले जातक को अपनी शक्तियों को लोगो के बीच मे रहकर अपने खुद के परिवार मे रहकर ही प्राप्त किया जा सकता है।</li>
<li>इस शनि का प्रभाव जीवन के दूसरे वर्ष मे जीवन के छठे वर्ष मे और जीवन के तीस से लेकर बत्तिसवे वर्ष तक दिक्कत देने का कारण बनता है कहने मे तो यह भी कहा जा सकता है कि शनि अपनी कठोरता से जातक को कुम्हार के बर्तन की तरफ़ से कूट कर पकाकर मजबूत बनाने की कोशिश करता है जो मुलायम होते है वह आकार ग्रहण कर लेते है और जो कठोर होते है अपने जीवन की तराजू को खुद के द्वारा तौलना चाहते है वह टूट कर बिखर जाते है,शनि जीवन की मर्यादा को झेलने की शक्ति भी देता है,यह शनि अगर पहले भाव से छठे भाव तक अपना रूप दर्शित करता है तो वह जातक को शादी के पहले तक ही दुखी करता है और शादी के बाद सुखी जीवन जीने के लिये आगे बढा देता है तथा यही शनि अगर सप्तम के बाद से बारहवे भाव तक होता है तो या तो वैवाहिक जीवन से दूर रखता है या वैवाहिक जीवन मे कठोरता को देकर तरह तरह की दिक्कते देने के लिये भी माना जाता है उसी प्रकार से राहु का क्षेत्र भी अगर जीवन मे सप्तम से पहले होता है तो जातक को ईश्वरीय शक्तियों का साक्षात्कार शादी से पहले होता है और बाद मे उसे अपने जीवन के सभी सुख भोगने के बाद जैसे ही केतु वाली उम्र मे साधु जैसा जीवन जीने के लिये मजबूर कर देता है,यह भी देखा जाता है कि सप्तम से पहले अगर केतु होता है तो जातक शादी के पहले ही साधु का जीवन जी चुका होता है और वह जीवन के दूसरे भाग मे रोमांस वाला जीवन जीता है लेकिन जिनके केतु का स्थान सप्तम के बाद होता है वह जीवन की उपलब्धियां शादी से पहले प्राप्त करने के बाद अपने को सांसारिक जीवन से दूर करना शुरु कर देते है। </li>
<li>यही बात मंगल के लिये भी मानी जाती है अगर जातक के जीवन मे मंगल का स्थान सप्तम से पहले होता है तो जातक अपने जीवन के अन्दर सभी प्रकार के पराक्रम और तकनीकी ग्यान को शादी से पहले सीख चुका होता है और अगर जातक का मंगल सप्तम या सप्तम के बाद होता है तो जातक वैवाहिक जीवन को तकनीकी रूप से ही जी सकता है अन्यथा शादी के बाद कई प्रकार के लडाई झगडे और जीवन साथी काम करने वाले स्थान पर क्लेश के कारण भी बनते रहते है। साथ ही जब मंगल मेष या वृश्चिक का होता है तो जातक को बात का पक्का बना देता है और जब मंगल कर्क मीन या वृष राशि का होता है तो वह बात से दूर भाग जाने का क्रम बनाता है।</li>
<li>बुध मार्गी का कारण भी देखा जाता है कि वह दूसरो के लिये गुणगान करने वाला होता है और जब वह वक्री होता है तो लोग उसके बारे मे ही बखान करने लगते है.</li>
</ul>
अक्सर जिस राशि मे चन्द्रमा होता है उस राशि मे व्यक्ति की पहुंच पर ही सोच को देने के लिये और लोगो के अन्दर जानकारी देने के लिये माना जा सकता है,जब तक व्यक्ति चन्द्रमा तक नही पहु़ंचता है तब तक वह जनता के बारे मे सोचता है जैसे ही वह चन्द्रमा की सीमा को लांघ जाता है जनता उसके बारे मे सोचने लगती है,पहली कुंडली मे चन्द्रमा धनु राशि का है और यह राशि मौत के बाद की राशि है जब तक जातक जिन्दा रहता है लोग उसके बारे मे नही सोच पाते है जैसे ही जातक की मौत होती है लोग उसके बारे कई प्रकार की बाते सोच कर और उसके कार्यों को सोच कर उसके प्रति बाते करने लगते है दूसरी कुंडली मे भी चन्द्रमा तुला राशि का है जब तक जातक नौकरी और वैवाहिक जीवन मे जाता है वह लोगो के लिये सोचता रहता है लेकिन जैसे ही शादी होती या नौकरी लगती है जातक के प्रति लोग सोचने लग जाते है।<br />
शिरडी की माटी का यह भाग इसलिये और लिखना पडा कि लोगो की मुख्य सोच अगर ज्योतिष से देखी जाये तो यह राहु किस प्रकार से भावना को बदलने के बाद कहां व्यक्ति को पहुंचा सकता है,और जो लोग इस सोच को धारण करते है वह धारणा केतु के लिये कितनी लाभदायक हो जाती है इस बात को ग्यानी लोग ही समझ सकते है और समय पर उपयोग मे ला सकते है.</div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-85855739727603860872012-04-19T10:14:00.000+05:302012-04-19T10:14:04.045+05:30शिरडी की माटी (भाग 3)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8Src6tVKWSTYM39VNCsSbBG5N9iaCVDju-Cc06GamcUhKwML03ZGidDrTqclwD-9bE5huTSiWkYcMDyi9SrFTK475wZe0CA6V6Rgj9_CEC8xGVX1TWGYLfhnFo7zSDFqkT1pnkV0YgDh4/s1600/kundli.gif" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="317" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8Src6tVKWSTYM39VNCsSbBG5N9iaCVDju-Cc06GamcUhKwML03ZGidDrTqclwD-9bE5huTSiWkYcMDyi9SrFTK475wZe0CA6V6Rgj9_CEC8xGVX1TWGYLfhnFo7zSDFqkT1pnkV0YgDh4/s400/kundli.gif" width="400" /></a></div>
हमारा धरती पर आने के लिये दो कारण माने जाते है पहला तो हम अपने लिये ही आते है और दूसरा हम दूसरो की सहायता करने के लिये आते है.जब हम केवल अपने ही जीवन की गाडी में उलझे रहते है तो वह हमारी निजी गाडी होती है जब हम दूसरो की गाडियों को सुधारने के लिये अपने को प्रयोग मे लाते है तो हमारी बिसात एक मैकेनिक से अधिक नही होती है लेकिन हम जिस गाडी मे उलझे रहते है वह एक ही माडल की गाडी होती है जब हम दूसरो की गाडियों मे उलझने का काम करते है तो वह तरह तरह के माडल की गाडियां होती है। अगर वास्तविक रूप से योग्यता को माना जाये तो केवल एक गाडी की जानकारी से अधिक योग्यता अधिक गाडियों के बारे मे जानने से मानी जा सकती है तो मैकेनिक कहने के लिये तो छोटी औकात होती है लेकिन वह योग्यता मे गाडी मालिक से कहीं अधिक होता है। यही बात संतो के लिये मानी जाती है कहने के लिये उनके पास एक झोली के अलावा कुछ नही होता है लेकिन वह किसी भी दुखी व्यक्ति की पीडा को हरने की योग्यता को रखते है जबकि एक गृहस्थ के पास सब कुछ होते हुये भी वह किसी न किसी पीडा से ग्रसित ही रहता है। किसी की कुंडली मे देखा जाये तो केन्द्र भरा होता है और किसी की कुंडली मे देखा जाये तो केन्द्र खाली होता है,जब केन्द्र भरा होता है तो वह एक गृहस्थ के रूप मे माना जाता है और वह अपनी ही गाडी को सम्भालने और चलाने की फ़िकर मे रहता है लेकिन जब केन्द्र खाली होता है तो वह दूसरो के हित के ही काम करता रहता है.या ऐसे माना जाये कि वह एक गाडीवान है और बिना किसी परिश्रम की कीमत लिये सन्तो को लाने लेजाने का काम करता है। दूसरो के लिये जो अपने जीवन को लेकर चलता है उसके लिये परमात्मा भी योग्यता को देकर भेजता है योग्यता को देखने के लिये त्रिकोण की सीमा को ज्योतिष से वर्णित किया गया है। जब त्रिकोण मे केतु का उपस्थित होना मिल जाये तो वह व्यक्ति एक सहायक के रूप मे संसार सेवा मे लगने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर करता रहता है। उपरोक्त कुंडली मे केन्द्र खाली है केवल प्लूटो जीवन को मशीन बनाकर विराजमान है,प्रदर्शन मे चन्द्रमा है विद्या और बुद्धि मे तथा शिक्षा मे केतु है,सेवा मे गुरु है रिस्क लेने और अपमान तथा गूढ विषयों के प्रति सेवा करने जानकारी रखने गुप्त भेद जाने की राशि मे सूर्य और शनि है,धर्म कानून नियम ऊंची शिक्षा विदेशी जानकारी राज्य और राजनीति के प्रति जानकारी के प्रति तकनीकी विकास और तकनीकी कामो के प्रति मंगल बुध और शुक्र की उपस्थिति है,ग्यारहवे भाव मे कर्म करने के फ़लो को देखा जाता है वहां राहु और यूरेनस की उपस्थिति है,बारहवे भाव मे नेपच्यून की उपस्थिति है। एक चार सात तथा दस मे कोई ऐसा ग्रह नही है जो सजीवता को प्रमाणित करता हो। इस प्रकार से इस व्यक्ति का जन्म दूसरो की सेवा करने के लिये ही हुया है।<br />
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दक्षिण भारत मे नाडी ज्योतिष के लिये हमने देखा है कि वे अधिकतर मामले मे ताड पत्रो के अलावा एक काम और करते है कि जातक की जन्म तारीख आदि के बारे मे भी पूंछते है जरूरी नही है कि हर आदमी की विवेचना ताड पत्र से ही की जा सके,वह जन्म तारीख के अनुसार घर के नाम आदि बखान करने के लिये कुछ प्रश्न करते है और उन प्रश्नो के आधार पर ही जातक के जीवन की विवेचना करते है,जैसे उपरोक्त कुंडली मे यह भावना तो देखी ही जा सकती है कि जातक के केन्द्र मे कोई ग्रह नही होने से वह दूसरो की सेवा के लिये पैदा हुआ है। केतु किसी नाम की व्याख्या नही करता है,केवल नवे भाव मे तीन ग्रहो की सम्मिलित रूपरेखा से जातक का नाम देखा जा सकता है.इसके अलावा भी अगर नवमांश को देखा जाये तो वहां भी नवे भाव मे शुक्र केतु का साथ चन्द्रमा की राशि कर्क मे हो गया है,अगर इसी कुंडली को भाव श्रीपति मे ले जाते है तो यह कुंडली अपना रूप अलग ही प्रकाशित कर देती है,(भाव श्रीपति विष्णु रूप मे जीव के प्रकट होने की विवेचना से माना जाता है और दक्षिण भारतीय ज्योतिष मे इस प्रथा का गुप्त रूप प्रयोग किया जाता है जो जन सामान्य की समझ से बाहर की बात होती है) इस कुंडली के अनुसार अष्टम भाव मे सूर्य शनि शुक्र बैठ जाते है। इसी पद्धति के अनुसार यह भी देखा जाता है कि लगन की नजर हमेशा अष्टम पर होती है,यानी शरीर का कारण अन्तिम गति से जुडा होता है। शरीर की जीवन के अन्त मे क्या दशा होनी है वह इसी भाव से जुडा होता है। यह भाव गुप्त शक्तियों के रूप मे जाना जाता है,और योगी साधना को करने के लिये इसी भाव का प्रयोग करते है। इसी पद्धति से अगर केतु का स्थान देखा जाये तो वह चौथे भाव मे है और मेष राशि का है,तथा अपनी पंचम द्रिष्टि से अष्टम मे बैठे सूर्य शनि शुक्र को देख रहे है,केतु के लिये सन्यासी सूर्य के साथ केतु मिलकर विष्णु शनि के साथ केतु के मिलने से शिव और शुक्र के साथ केतु के मिलने से शिव की मान्यता देखी जा सकती है,एक सन्यासी के अन्दर इन तीनो शक्तियों का होना जगत गुरु दत्तात्रेय के लिये ही माना जाता है।<br />
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तीसरा भाव घर की शिक्षा पंचम भाव प्राथमिक शिक्षा सप्तम भाव माध्यमिक शिक्षा और नवा भाव कालेज की शिक्षा तथा दूसरे भाव से शिक्षा के बाद अन्य उपाधिया जैसे डिप्लोमा किसी विषय मे अन्य डिग्री आदि का लेना माना जाता है। कालपुरुष के अनुसार शिक्षा का विश्लेषण करने पर घर की शिक्षा के लिये बडे भाई या बहिन की बात मिलती है प्राथमिक शिक्षा के लिये कान्वेंट जैसी शिक्षा मिलती है तथा कालेज शिक्षा मे तकनीकी शिक्षा का होना मिलता है और उस तकनीकी शिक्षा के अन्दर कोई उच्च डिग्री आदि के लिये दो और शिक्षाये मिलती है। जातक अपनी योग्यता से अपने धर्म परिवेश को तकनीकी शिक्षा से विदेशी परिवेश मे फ़ैलाने के लिये अपनी योग्यता को रखता है,साथ ही बैंक फ़ायनेन्स अस्पताली दवाइयों के मामले मे तकनीकी कारणो मे खेती किसानी आदि मे पानी के साधनो मे जो सोफ़्ट्वेयर काम करते है और जो स्वचलित रूप से अपने कार्य को करते के कार्यों मे जाना उचित माना जाता है,यही कारण जातक को अगर व्यापारिक रूप से करने होते है तो वह अपनी योग्यता को तरह तरह के सोफ़्टवेयर आदि को बनाकर बेचने के काम शिक्षा से सम्बन्धित कम्पयूटर की उपयोगिता के काम करने मे भी सफ़ल माना जाता है। लेकिन जो भी कार्य जातक के द्वारा होते है वह लोक हित के लिये ही माने जाते है उन साधनो का उपयोगों के लिये खुद का कोई लाभ नही मिलता है इस प्रकार से संत वही है लेकिन रूप बदला है तो केवल आधुनिक विज्ञान की सीमा मे जाकर नये नये रूप ईजाद करने के लिये और नये नये रूप मे लोगो की आवश्यकताओ को पूरा करने के लिये।</div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-28615098239383138942012-04-19T09:03:00.001+05:302012-04-19T09:03:32.588+05:30शिरडी की माटी (भाग 2)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhakv4dS2-4V1G9jMbSTgVYw8-eGnRicL_5r0qY3riwvCjKvHw9kTo8UOQg5aCsCGwhGPqLeMxQ_aR2DP5JDV5YRwckOr4QoYtzQRxRbWPHBqAGsVNWc5hSl06cF5NSdGlInQJ_nxCL7Pnv/s1600/kundli.gif" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="317" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhakv4dS2-4V1G9jMbSTgVYw8-eGnRicL_5r0qY3riwvCjKvHw9kTo8UOQg5aCsCGwhGPqLeMxQ_aR2DP5JDV5YRwckOr4QoYtzQRxRbWPHBqAGsVNWc5hSl06cF5NSdGlInQJ_nxCL7Pnv/s400/kundli.gif" width="400" /></a></div>
जब जनता की शिकायत अधिकारी के पास पहुंचने लगती है तो पहले तो वह शिकायत को नजरंदाज करता रहता है कि हो सकता है किसी ने कोई भूल से काम किया हो और वह उस भूल को सुधार ले लेकिन जब शिकायते अधिक आने लगती है तो अधिकारी जांच के लिये निकल देता है,वह सभी प्रकार के अपने जांच के कारको को प्रयोग मे लाता है और जब देखता है कि गल्ती अधिक हो रही है तो गल्ती करने वाले को दंड देने और जिनके साथ गल्ती हुयी है उन्हे सहायता देने का काम करता है। कभी कभी ऐसा भी होता है कि शिकायत करने के लिये भीड तो जाती है लेकिन अधिकारी या तो नियुक्त नही हुआ होता है और जब तक नियुक्त होता है तब तक जनता चली जाती है,उस बीच मे उस अधिकारी से भी बडे अधिकारी को शिकायते दूसरे मार्ग से मिलती है वह अपनी योग्यता से अपने कार्यों को पूरा करने के लिये अन्य साधनो का प्रयोग करता है। इसी प्रकार से परम पिता परमात्मा इस धरती पर आत्माओं को भेज कर जांच करवाता है कि धरती पर कितना अधर्म हो रहा है कितना धर्म हो रहा है कितना जीव को सताया जा रहा है और कितना जीव के साथ प्रकृति इंसाफ़ कर रही है कि नही कर रही है जीव का उद्देश्य परहित मे है कि नही आदि की जानकारी लेने के लिये वह मानवीय रूप मे आत्मा को धरती पर भेज कर उसके जाने के बाद उसके सुकर्मो और दुष्कर्मो की मीमांशा करता है भेजी जाने वाली आत्मा को तो सुकर्मो और दुष्कर्मो की सजा मिलती ही है लेकिन उसके कर्मो और के प्रति भी परमात्मा को पता चल जाता है कि धरती पर किस प्रकार से पाप और पुण्य घट बढ रहे है।<br />
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प्रस्तुत कुंडली विश्वप्रसिद्ध शिरडी धाम मे जन्म लेने वाली एक जातिका की है,पंचम भाव मे गुरु और नवम भाव मे सूर्य का होना जीवात्मा योग होने की बात को प्रकट करता है,यह जीवात्मा योग ईश्वर अंश से जन्म लेने की क्रिया को कहा जाता है और जो कारण इस जन्म के लिये माने जाते है वह गुरु का शिक्षा के भाव मे और सूर्य का धर्म के भाव मे होना भी यह प्रकट करता है कि जातिका का उद्देश्य शिक्षा से धर्म और मीमांशा के प्रति लोगों को बताना तथा उस सूर्य रूपी आत्मा को जो अपने नि:स्वार्थ भाव से धर्म के प्रति समर्पित है का गुणगान करना भी है। बुध वक्री है और मार्गी बुध तो दूसरो से कहने सुनने और अपने प्रभाव को प्रसारित करने के लिये माना जाता है जब कि वक्री बुध केवल दूसरो के भावो को सुनने के बाद उसका प्रभाव धार्मिक रूप से विवेचन मे लाकर प्रयोग करने के लिये माना जाता है। वैसे तो कहा जाता है कि बुध वक्री उल्टी बात करता है लेकिन उल्टी बात का मतलब यह नही होता है कि वह गाली देता है बल्कि बुध वक्री का मतलब होता है कि वह प्रश्न करने वाला होता है और उत्तर देने के लिये वह जिस भाव पर अपनी नजर रखता है वही भाव अपनी योग्यता के अनुसार बुध को जबाब देते है,लेकिन बुध वही प्रश्न करता है जिस ग्रह के साथ होता है तथा जिस ग्रह का असर द्रिष्टि से बुध को मिलता है इसके साथ ही उसके प्रश्न अमिट रूप से वही रहते है जो जन्म के समय मे बुध के प्रति अपनी धारणा को प्रकट करते थे,इसके अलावा भी सांसारिक गतिविधि का रूप भी तब और समझ मे आता है जब बुध गोचर से विभिन्न भावो मे गोचर करता है और जो भी उस भाव का सामयिक कारण और रूप होता है उसके बारे मे भी अपनी धारणा को जन्म के बुध की प्रकृति को साथ रखने से और केवल प्रश्न करने की क्रिया को ही प्रस्तुत करने की मान्यता से समझा जा सकता है। इस बुध से यही माना जाता है कि जातिका को प्रश्न करने की आदत है वह किसी भी बात को उल्टा इसलिये कहती है कि सामने वाला जबाब दे सके लेकिन सामने वाला जबाब तभी दे पायेगा जब वह दिमागी रूप से बुद्धिमान है और उसे बजाय करके दिखाने के समझाने की पूरी जानकारी है। करके दिखाने के लिये तो वही लोग सामने आते है जिनके पास शरीर का बल होता है लेकिन समझाकर दिखाने का कार्य वही करते है जिनके पास दिमागी बल होता है और वह अपने समझाने के तरीको को विभिन्न रूप मे सामने लाकर प्रस्तुत कर सकते है। कभी कभी यह भी देखा जाता है कि जो व्यक्ति कहना चाहता है वह सामने वाला समझ रहा है कि नही अगर कहने वाला उल्टा बोलता है और सामने वाला भी उल्टे को उल्टे रूप मे ही प्रस्तुत रखने की कला को जानता है तो दोनो अपनी अपनी बात को एक दूसरे को समझा कर सन्तुष्ट होजायेंगे और सामने वाला उल्टी बात का जबाब जब समझाने की बजाय ताकत से देना शुरु कर देता है तो उल्टा बोलने वाला या तो कभी उल्टी बात को करता ही नही है या वह हमेशा के लिये शांत हो जाता है।उल्टी बात करने का भी एक असर होता है कभी कभी कोई बात उल्टी की जाये और वह शास्त्र सम्मत हो तो उस उल्टी बात का भी आदर किया जायेगा और जब कोई उल्टी बात की जाये लेकिन वह गाली जैसी लगे तो जो सुनेगा वह बजाय उत्तर देने के या तो अपनी दिमागी शक्ति से कोई कानूनी काम करने के लिये राजी हो जायेगा या फ़िर अपने देह बल को प्रयोग करने के बाद दांत तोड देगा। इस कुंडली से भी यही समझ मे आता है कि बुध के वक्री होने का असर तो है लेकिन बुध पर गुरु के प्रभाव के कारण जो भी बात बुध करना चाहता है वह धर्म से सम्बन्धित है शिक्षा से सम्बन्धित है जीवन साथी से सम्बन्धित है बुध के राजकीय ग्रह के साथ होने से तथा राज्य के ग्रह सूर्य पर अपना असर देने के कारण सरकारी कानून से सम्बन्धित है के कारण जो भी बात बुध के द्वारा उल्टे रूप मे की जायेगी वह सुनी भी जायेगी और उसका उत्तर भी बजाय शरीर की शक्ति का प्रयोग करके दिमागी शक्ति को प्रयोग करने के बाद ही दिया जायेगा। इस बात को समझने के लिये जातिका के तीसरे भाव मे विराजमान वक्री शनि से देखा जा सकता है। मार्गी शनि शरीर की शक्ति से काम लेने वाला होता है लेकिन वक्री शनि दिमागी शक्ति से काम लेने वाला होता है जब मशीनी ग्रह और तकनीक का मालिक प्लूटो भी साथ हो जाता है तो वह शानि मशीनी रूप से दिमागी उत्तर प्रस्तुत करने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर करने लगता है।<br />
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सूर्य के धर्म के भाव मे रहने से जातिका का अहम केवल धर्म और मर्यादा के प्रति माना जाता है साथ ही सूर्य पर गुरु की नजर होने से जातिका अपने परिवेश और परिवार मे भी धर्म और संस्कृति के प्रति अटल विश्वास रखने वाली होती है वह किसी भी सम्बन्ध को केवल धर्म और पारिवारिक सम्बन्ध की द्रिष्टि से देखती है उसे अपने परिवेश का पूरा ग्यान है कि वह कहां से आयी है उसे क्या करना है उसकी धारणा क्या है उसे जीवन मे किस प्रकार के कार्य करने है और वह किस प्रकार से दूसरो से किस प्रकार के कार्य करवाने की क्षमता को रखती है। अक्सर देखा जाता है कि बहुत कम लोग ही इस बात से सम्बन्ध रखते है कि गुरु और नेपच्यून जब एक राशि मे हो और उस राशि का सम्बन्ध अगर धर्म संस्कृति और जीवन के साथ साथ न्याय दर्शन महापुरुषो के विचार उन विचारो के द्वारा समाज और धर्म के प्रति चलने वाले विश्वास आदि भी नेपच्यून और गुरु की संगति से जातिका के पास मिलते है। एक संत की आत्मा का प्रादुर्भाव भी इसी गुरु और नेपच्यून की संगति पर जाना मिलता है और इस प्रकार की युति यही वर्णन करती है कि जातिका रूप भले ही संसार मे साधारण मनुष्य के रूप मे है लेकिन वह आत्मा से एक संत की आत्मा को लेकर ही इस धरती पर आयी है। इसी बात से एक प्रश्न और बनता है कि आखिर आत्मा का इस धरती पर आने का कारण क्या है ? इस बात को देखने के लिये :-<br />
<ul style="text-align: left;">
<li>गुरु ने बल दिया सूर्य और वक्री बुध को तथा सूर्य और वक्री बुध ने अपने बल को वक्री शनि और प्लूटो को दे दिया,वक्री शनि ने अपने बल को प्लूटो की सहायता से वापस गुरु को अपना बल दे दिया। </li>
<li>वक्री शनि और प्लूटो ने अपना बल गुरु नेपच्यून को दिया गुरु ने उस बल को सूर्य और बुध पर दे दिया और सूर्य बुध (व) ने अपना बल वापस शनि प्लूटो को दे दिया।</li>
<li>सूर्य और वक्री बुध ने अपना बल शनिवक्री और प्लूटो को दिया शनि वक्री और प्लूटो ने अपना बल गुरु और नेपच्यून को दे दिया,गुरु वह बल वापस सूर्य बुध वक्री को दे दिया.</li>
</ul>
</div>
यह तीनो मीमांशा केवल शरीर और पहिचान (लगनेश से) शिक्षा संतान बुद्धि जीवन की सोच (पंचमेश से) जीवन साथी जीवन मे आने का उद्देश्य और जीवन के कार्य लोगों को दी जाने वाली सलाह (सप्तमेश से) मिलती है,साथ मे जिन और शक्तियों ने बल दिया है उनके अन्दर भौतिक धन कुटुम्ब पहिचान तथा अपने से बडे मित्र भाई बहिन आदि के मालिक बुध (व) ही बाकी का किसी का कोई लेना देना नही है यह भी है कि जो भी बुध वक्री ने दिया है वह जातिका वापस भी कर देगी किसी का कोई अहसान भी अपने पर नही रख सकती है।<br />
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परमात्मा भी अपनी कला को किस प्रकार से बदल कर प्रस्तुत करता है उसकी मिशाल नही मानी जाती है,पुरुष राशि मे पुरुष ग्रह के साथ अगर बुध मार्गी होता तो वह पुरुष रूप मे इस जगत मे प्रकट होता,लेकिन बुध के वक्री होने के कारण वह स्त्री रूप मे प्रकट हो गया। यही बात जीवन साथी के लिये भी मानी जा सकती है कि स्त्री राशि मे सप्तमेश शनि स्त्री रूप मे प्रकट होने थे लेकिन वक्री होने के कारण पुरुष रूप मे प्रकट हो गये। इस प्रकार की युति एक पूर्व जन्म के द्वन्द के रूप मे माना जा सकता है कि दोनो आत्माओ के अन्दर यह भाव रहा कि अगर वह स्त्री होती तो वह कुछ कार्य जो पुरुष रूप मे नही कर पाये वह कर सकती थी,तथा यही पति के लिये भी माना जा सकता है कि वह जो कार्य स्त्री रूप मे नही कर पाया वह कार्य वह पुरुष रूप मे कर सकता था और प्रकृति ने जन्म विपरीत लिंगी बनाकर दे दिया। यह भाव प्रकृति के द्वारा दिये गये नामो से भी प्रकट हो जाता है जैसे स्त्री नाम को पुरुष के साथ और पुरुष नाम को स्त्री के साथ,विनय विजय विनीत विह्वल आदि पुरुष वाचक नाम है और किरण किमी आदि स्त्री नाम है।<br />
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सूर्य बुध वक्री ने कालेज शिक्षा दी और राहु ने शिक्षा के क्षेत्र मे जाने की अलावा डिग्री दी यह साधारण आदमी के लिये सोचा जा सकता है। जब इसे कालपुरुष की कुंडली के अनुसार देखा जायेगा तो गुरु कालेज शिक्षा मे चला जाता है और राहु धन भाव मे आकर शिक्षा देने वाले अलावा कारको के लिये अपना बल देने लगता है। राहु और चन्द्र मिलकर चिन्ता मे लीन व्यक्तियों को धर्म और न्याय तथा कानून के अलावा ज्योतिष कर्मकाण्ड आदि की शिक्षा दे सकता है,यही राहु कभी तो बहुत से कार्य दे दे और कभी बिलकुल ही नही दे,जो कह दिया जाये वह सत्य हो जाये और लोग सत्य के रूप मे स्वीकार करने लग जायें,तथा यही राहु कार्य के रूप मे चिन्ता का विषय हमेशा प्रस्तुत करना शुरु कर दे। जो सूर्य अपने प्रभाव को सरकारी रूप से या राजनीति के रूप मे प्रस्तुत करना चाहे वह चन्द्रमा की चिन्ता के कारण कुछ कर भी नही पाये और संसार हित के लिये अपने को प्रस्तुत करना शुरु कर दे। जीवन की जद्दोजहद मे शामिल होने के लिये भी परमात्मा कारणो को पहले ही बनाकर भेज देता है,पति के लिये कार्य भाव खाली और पत्नी के लिये रोजाना के कार्यों और सेवा वाला भाव खाली,इन्ही दोनो भावो के लिये पति पत्नी अगर अपनी जीवन की जद्दोजहद को करते रहते है तो उनके लिये जीवन का सार्थक करने का प्रभाव पूरा नही हो पाता है अगर वह अपने अनुसार इन्ही कारणो को जो सामने है उन्हे पूरा करने की कोशिश करते रहे तो वह अपने अनुसार अपने जन्म को सार्थक भी कर सकते है और दुनिया मे नाम तथा लोक हित के लिये मशहूर भी हो सकते है। चन्द्रमा को गुरु बारहवा दे दिया है और सूर्य के लिये गुरु नवा दे दिया है,लोक हित मे गुरु सन्तुष्ट रहने का काम कर रहा है और स्वहित के लिये गुरु भाग्य का काम कर रहा है,जातिका जनता के लिये आश्रय का स्थान देने का काम करती है तो वह प्रसिद्धि की तरफ़ बढ जाती है और वह अगर राज्य या राजनीति से जुड जाती है तो वह एक सम्माननीय व्यक्ति के रूप मे प्रसिद्धि प्राप्त करती है।<br />
<br /></div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-57798597476515934922012-04-17T11:16:00.001+05:302012-04-17T11:16:30.232+05:30शिरडी की माटी (भाग 1)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhcdF_wAK1xiYXTx6ylug393ZvmY15PUHORiEZ0aAS1RWBcxtQ4IcYO89HK5CBsMWQgZrvZVA-AYxdcFZvq1y8rX1i5KyeX5yLVjnSnCJoY_Gl0d9Tc-2pdF4ItqKdhfJPlU0qcPRy8BUcg/s1600/kundli.gif" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="317" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhcdF_wAK1xiYXTx6ylug393ZvmY15PUHORiEZ0aAS1RWBcxtQ4IcYO89HK5CBsMWQgZrvZVA-AYxdcFZvq1y8rX1i5KyeX5yLVjnSnCJoY_Gl0d9Tc-2pdF4ItqKdhfJPlU0qcPRy8BUcg/s400/kundli.gif" width="400" /></a></div>
कहा जाता है कि आत्मा जब अपने साकार रूप को प्रकट करती है और उस आत्मा के रूप को प्रकट करने का क्षेत्र शुद्ध और सात्विक होता है तो वह आत्मा अपने अन्दर उन्ही गुणो के शरीर को धारण करके आती है जैसा उस स्थान की धरती का प्रभाव होता है। यह प्रभाव भी उसी प्रकार से माना जाता है जैसे एक बीज को बोने के लिये अलग अलग जमीन का प्रयोग किया जाता है और जमीन के प्रभाव के अनुसार ही बीज की उत्पत्ति होती है। आज संसार मे शिरडी का नाम शिरमौर केवल इसलिये हो रहा है कि उस स्थान की मिट्टी ने भगवत रूप धारण किया था और मनुष्य रूप मे रहकर भी अपनी कृपा को साक्षात किया था,उसी मिट्टी से पैदा होने वाली आत्माओं का विश्लेषण करने का सौभाग्य मुझे मिला है और आप सभी के सामने उन आत्माओं के ज्योतिषीय कथन को प्रकट करना चाहता हूँ,मेरी भी बुद्धि मानवीय है हो सकता है कोई त्रुटि रह जाये या कोई बात लिखने मे गलत लिख जाऊँ,इसलिये विद्व जनो से क्षमा का भाव भी रखता हूँ।<br />
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कुंडली मे गुरु जीव का अधिकारी होता है सूर्य आत्मा का अधिकारी माना जाता है मंगल आत्मीय शक्ति को बढाने वाला होता है बुध आत्मीय प्रभाव को प्रसारित करने का कारक होता है शुक्र जीव को सजाने और आत्मा के भावो को प्रकट करने मे अपनी सुन्दरता को प्रकट करता है तो चन्द्रमा आत्मीय मन को सृजित करने का भाव पैदा करता है.शनि भौतिक रूप को प्रकट करता है और जीव के कर्म को करने के लिये अपनी योग्यता को प्रकट करता है। यूरेनस दिमाग के संचार को प्रकट करने और भौतिक संचार को बनाने बिगाडने का काम करता है प्लूटो मिट्टी को मशीन मे परिवर्तित करने का कार्य करता है नेपच्यून आत्मा के विकास का अधिकारी माना जाता है.<br />
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समय के अनुसार जीव का रूप परिवर्तन होता रहता है जैसे आदिम युग मे जीव का रूप कुछ और होता था पाषाण युग मे कुछ था मध्य युग मे कुछ और था और वर्तमान मे कुछ और है तथा आने वाले भविष्य मे जीव का रूप कुछ हो जायेगा। जीव वही रहता है रूप परिवर्तन मे सहायक प्लूटो को मुख्य माना गया है,जो आधुनिकता से लेकर अति अधुनिकता को विकसित करने के लिये लगातार अपने प्रभाव को बढाता जा रहा है और हम क्या से क्या होते जा रहे है,लेकिन जीव के विकास की कहानी के साथ आत्मा का रूप नही बदल पाता है जीव कितना ही आधुनिक हो जाये आत्मा वही रहती है। जो भी कर्म किये जाते है उनका प्रभाव आत्मा पर उसी प्रकार से पडता रहता है जैसे एक चिट्टी विभिन्न डाकघरो मे जाकर डाकघर की उपस्थिति को दर्शाने के लिये अपने ऊपर उन डाकघरो की मुहर अपने चेहरे पर लगाकर प्रस्तुत करती है।<br />
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प्रस्तुत कुंडली सिंह लगन की है और सूर्य विद्या से प्राप्त बुद्धि के भाव मे विराजमान है,सूर्य का साथ देने के लिये बुध जो लगन का चेहरा और भौतिक प्राप्ति तथा कार्य के प्रभाव का नाम प्रस्तुत करने की भावना को भी देता है। सूर्य का प्रभाव धरती तक लाने के लिये सूर्य किरण ही जिम्मेदार होती है। बिना सूर्य किरण के सूर्य का प्रभाव धरती पर आ ही नही सकता है,बुध को किरण का रूप मानने पर यही पता चलता है कि बुध सूर्य की गरमी रोशनी जीवन की प्रस्तुति को धरती तक लाने के लिये संचार का काम करता है इसलिये बुध को संचार का ग्रह कहा गया है। पंचम भाव विद्या के भाव से दूसरा भाव होने से विद्या से प्राप्त बुद्धि को प्रयोग करने का भाव भी कहा गया है और जब इस भाव मे गुरु की धनु राशि का समागम होता है तो ऊंची शिक्षा वाली बुद्धि को प्राथमिक शिक्षा जैसा माना जाता है। कानून की कारक यह राशि विदेशो से भी सम्बन्ध रखती है धर्म और भाग्य से भी यह राशि जुडी होती है साथ ही यात्रा और धार्मिकता को फ़ैलाने या उस धार्मिकता से लोकहित के कार्य करने के लिये भी अपनी युति को प्रस्तुत करती है। इस राशि के प्रभाव को अगर पंचम मे लाया जाता है तो ऊंची जानकारी को खेल खेल मे प्रस्तुत करने की कला भी मानी जाते है,सूर्य भी हकीकत मे कालपुरुष की कुंडली के अनुसार इसी भाव का मालिक है,राज्य और राजनीति से भी सम्बन्ध रखता है। लेकिन उद्देश्य कुछ भी हो मतलब शिक्षा से ही होता है।<br />
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पुराने जमाने की जो कहानी कही जाती है कि गुरुओं मे इतनी दम होती थी कि वे मिट्टी को चलाने फ़िराने लगते थे,वे कहानिया अविश्वसनीय लगती है,हम कभी कभी कह देते है कि यह सब कपोल कल्पित है,लेकिन आज जिधर भी नजर घुमाई जाती है उधर ही मरी हुयी मिट्टी दौड रही है जिस इंसान को देखो मरी मिट्टी से ही खेल रहा है काम कर रहा है उसी मिट्टी को प्रयोग मे लाकर कमा रहा खा रहा है उसी मिट्टी पर बैठ कर भागा जा रहा है उसी मिट्टी से एक दूसरे से संचार कर रहा है,लेकिन उस जमाने की बातें कपोल कल्पित लगती है ! पुराने गुरु पीले कपडे पहिन कर विद्या को प्रदान किया करते थे लेकिन आधुनिक गुरु कम कपडे पहिन कर कम काम करके अधिक बुद्धि का प्रयोग करके जो कारक पैदा कर रहे है उन्हे गुरु की उपाधि से दूर करने के बाद वैज्ञानिक की उपाधि दे रहे है,वास्तविकता भी है कि जब गुरु सुपर गुरु हो जाता है और मरी मिट्टी मे इतनी जान डाल देता है कि उसका जीवन बिना मरी मिट्टी के बेकार सा हो जाता है तो वह दिमाग को हर पल हर क्षण हर मौके पर दौडाने का काम भी करता है और अपने को वैज्ञानिक कहलाने लगता है। वैज्ञानिक शब्द की व्याख्या को देखा जाये तो वह व+ऐ+ज्ञान+इक से ही देखा जायेगा और इसे अगर विच्छेद करने के बाद जाना जाये तो वाममार्गी तांत्रिको से कम नही समझा जा सकता है। व को मुर्दा कहा जाता है ऐ की मात्रा लगाते है मुर्दे मे जान डालने की क्रिया बन जाती है और जो इस क्रिया को प्रयोग करना जानता हो उसे ज्ञानी की उपाधि दी जाती है लेकिन वह सिद्धान्त के ऊपर ही निर्भर है इसलिये इक यानी एक ही के प्रति समर्पित हो जाती है,तो कौन कहता है कि वैज्ञानिक तांत्रिक नही होता है। जीव यानी गुरु को अपने तंत्र से मरी हुयी मिट्टी मे जान डाल कर लोक हित मे प्रयोग किया जाने लगे और लोग उस मरी मिट्टी जिसमे जान डाल दी गयी है उसे प्रयोग मे लेकर अपने को धन्य समझ ले तथा अपनी आवश्यकताओ को पूरा करने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर कर दे तो जिसने उस मई मिट्टी मे जान डाल दी है वह किसी संत से कम कहा जा सकता है क्या ?<br />
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राहु फ़ैलाव देता है फ़ैलना भी सीमित नही होता है,असीमित होता है और जो व्यक्ति एक साधारण व्यक्ति से कई गुनी योग्यता सीखने की रखता हो तथा अपने को बजाय साधारण आदमी के अलग थलग दिखाने की औकात को रखता हो उसी को वक्री कहा जाता है। राहु हमेशा उल्टा चलता है,राहु को शक्ति के रूप मे देखा जाता है और जब यह राहु गुरु के साथ हो जाये तो खराब भाव मे जाकर यह जहरीली हवा बन जाता है लेकिन अच्छे भाव मे जाकर यह अमृत प्रदान करने वाली हवा भी बन जाता है और जिस व्यक्ति की कुंडली मे राहु लगन मे हो अच्छी राशि मे हो तो बात ही कुछ और होती है। लेकिन सीधा आदमी उल्टे को नही सुधार सकता है केवल उल्टा आदमी ही उल्टे को सुधार सकता है,उसी प्रकार से राहु को सुधार मे लाने के लिये गुरु को भी उल्टा कर दिया जाये तो राहु आसानी से सुधार मे लाया जा सकता है,इस कुंडली को भी देखिये राहु लगन मे है शिक्षा की राशि मे है और गुरु भी वक्री होकर राहु की गति मे बदल गया है साथ ही नवे भाव के मालिक मंगल का तकनीकी सहारा भी ले लिया है तो राहु को सुधार कर अच्छे रूप मे बदलना जाना जा सकता है। जो राहु दूसरो को डराने का काम करता है एक प्रकार से काली आंधी बनकर लोगो को परेशान करता है तो वह राहु वक्री गुरु के सानिध्य मे आकर और मंगल का साथ लेकर असीमित ज्ञान के क्षेत्र को दिखाने प्रकाश मे लाने के लिये और संसार को सामने रखने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर कर रहा है। इसी बात को अगर राहु को सिलीकोन माना जाये गुरु को सिलीकोन को तरीके से जोडना और सर्किट आदि बनाने के काम मे लिया जाये तथा मंगल को शक्ति की कारक बिजली के रूप मे देखा जाये तो यह कम्पयूटर का रूप धारण कर सकता है सर्किट बोर्ड पर लगे हुये आई सी कण्डेन्सर रजिस्टेंस ट्रांजिस्टर डायोड आदि की जानकारी भी देता है और उस के अन्दर अपने ज्ञान का प्रयोग करने के बाद लोगो के लिये उस मशीन का तैयार करना हो जाता है जिससे लोग अपने जीवन की जरूरतो को बाहरी लोगो से लिखने पढने से लेकर आने जाने तथा कितने ही प्रकार के कार्य करने के लिये स्वतंत्र हो सकते है। यह वक्री गुरु का ही काम है कि वह शनि प्लूटो यानी मरी हुयी मशीन को हार्डवेयर आदि डालकर उसे सिस्टम से चलाने की क्रिया मे राहु नामका सोफ़्टवेयर डालकर कई प्रकार की मशीनी श्रेणी मे बदल सकता है। अगर इसी जगह पर मार्गी गुरु होता तो वह दूसरे के द्वारा बनाये गये सामान को प्रयोग करने वाला होता लेकिन वक्री गुरु होने के कारण वह अपने द्वारा बनाये गये सामान को दूसरो के हित के लिये प्रयोग करने वाला बन जाता है।<br />
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सिंह लगन का चौथा भाव वृश्चिक राशि का होता है यह राशि बहुत गूढ होती है कभी प्रकट रूप से सामने नही होती है जैसा कि मेष राशि का स्वभाव होता है कि उसके मन के अन्दर कुछ भी है वह सामने रख देती है इसलिय ही दूसरो के लिये बलि का बकरा बन जाती है उसी स्थान पर सिंह लगन का जातक अपने विचार बहुत गूढ रखता है और उस बुद्धि का प्रयोग करता है जो बुद्धि साधारण आदमी के पास नही होती है वह अपने भाव को प्रकट करने के लिये गूढ तंत्र का प्रयोग करता है उसे तकनीकी विद्या को प्राप्त करने की आदत होती है साथ ही वह अपने को इतने भेद की नीति के अन्दर रखता है कि मन के अन्दर क्या है जान लेने के लिये अपनी पूरी योग्यता को प्रस्तुत कर सकने के बाद भी यह जाहिर नही होने देता है कि आखिर मे उसकी मंशा क्या थी ? यह राशि तकनीकी राशि भी है और किसी भी प्रकार की तकनीक को दिमाग मे रखने और तकनीकी विद्या के प्रति हमेशा मन को लगाकर चलने के लिये भी मानी जा सकती है यह राशि तकनीक के अलावा दुनिया के भेद मृत्यु के बाद का जीवन पराशक्तियों और शमशानी सिद्धियों के प्रति भी जान लेने की भावना को रखती है। हकीकत मे इस भाव का मालिक चन्द्रमा होता है और जनता का मालिक भी चन्द्रमा होता है दिशाओं से यह दक्षिण पश्चिम दिशा की कारक भी कही गयी है इस प्रकार से जातक की मानसिक रुचि अन्तर की जानकारी के लिये भी मानी जा सकती है।यह राशि नकारात्मक मंगल की राशि भी कही गयी है सकारात्मक मंगल जीव के अन्दर की शक्ति कही जाती है और नकारात्मक मंगल जीव के मरने के बाद उसकी पराशक्ति का कारक होता है। सकारात्मक मंगल जीव के जिन्दा रहने तक साथ देने वाला होता है और नकारात्मक मंगल जीव के मरने के बाद उसकी शक्तियों को दूसरे लोगों के प्रति प्रयोग करने के लिये भी माना जाता है,अक्सर सामाजिक परिवेश मे इस मंगल को लोग भूत प्रेत तंत्र आदि के रूप मे कहते सुने जा सकते है।<br />
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यूरेनस इस राशि मे उपस्थित होता है तो जातक के मन के अन्दर एक तो उन शक्तियों को प्रकट करने की इच्छा होती है जो मरने के बाद की जानी जा सकती है दूसरे जातक के अन्दर मरी हुयी मिट्टी के अन्दर से यह जान लेने की कला का विकास भी होता है कि वह कैसे मरी किस अवयव की खराबी से मरी और उस मरी हुई शक्ति के अवयब को जांच लेने की और उसे बदल कर नया जीवन मरी हुयी मिट्टी को देने से भी जानी जा सकती है इस बात को अगर डाक्टरी रूप मे देखा जाता है तो एक प्राणी की मौत के पहले के जीवन को प्राप्त करने के लिये खराब हुये अवयब को बदलने का काम किया जाता है जबकि यूरेनस को संचार का ग्रह माने जाने पर जातक के अन्दर कमन्यूकेशन की चीजों के खराब होने पर उन्हे जांच लेने और उन्हे ठीक करने की क्रिया को जान लेने का कारण भी कहा जाता है इस कारण को अगर देखा जाये तो आज के जमाने मे इन्हे इन्फ़ोर्मेशन तकनीक का जानकार भी कहा जाता है और कम्पयूटर इंजीनियर के रूप मे भी देखा जाता है। नेपच्यून के इस भाव मे होने से यह भी देखा जाता है कि जातक के अन्दर राख से साख निकालने की क्षमता का होना भी होता है वह समझ सकता है कि जो कबाडा हो चुका है उस कबाडे से क्या क्या वस्तु निकाली जा सकती है जो काम की है और उस वस्तु को दूसरी वस्तुओं मे प्रयोग करने के बाद उन्हे काम मे लिया जा सकता है। नेपच्यून का रूप अक्सर आत्मा के रूप मे पाश्चात्य ज्योतिष मे प्रयोग मे लाया गया है लेकिन हमारी संस्कृति के अनुसार से मन के आगे नही मान सकते है मन और आत्मा मे भेद को समझने वाले लोग इस बात को समझ सकते है। जो आत्मा कबाड से जुगाड बनाकर उन्हे काम का सिद्ध कर सके वही एक अच्छे इंजीनियर की श्रेणी मे भी गिना जाता है।<br />
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सूर्य और बुध का पंचम भाव मे होना आत्मा का मिलन शिक्षा के क्षेत्र मे जाने का होता है यहा जातक अपनी उपस्थिति को शिक्षा के क्षेत्र मे ले जाने और वहीं से अपनी उन्नति को शुरु करने के लिये भी माना जाता है लेकिन यह बात तभी सिद्ध हो सकती है जब जातक के पुत्र संतान की प्राप्ति हो,उसके पहले सूर्य का उदय होना और सरकारी क्षेत्र मे अपने प्रभाव को दिखाने का कारण नही बनता है,सूर्य से तीसरे भाव मे केतु के होने से भी एक कारण यह भी माना जाता है कि कुम्भ राशि का केतु उन्ही लोगो से मित्रता को बनाता है जब वह मित्रता किसी भी प्रकार से कमन्यूकेशन के मामले मे हो पुरानी ज्योतिष के अनुसार बडे भाई की पत्नी या दोस्त की पत्नी के या बडी बहिन के पति के सहायक कार्यों से जोड कर भी देखा जाता है और इस केतु को अक्सर सहायक के रूप मे भी माना जाता है चाचा भतीजे का सम्बन्ध भी कायम करता है जीवन के अन्दर एक व्यक्ति की सलाह और शिक्षा जातक को आगे बढाने के लिये भी मानी जाती है।यह केतु पत्नी के रूप मे भी सामने आता है और जातक को अपनी सहायता से आगे बढाने के लिये भी देखा जा सकता है। यह केतु मानसिक रूप से भी अपनी सहायता को देने वाला माना जाता है और जीवन मे जो भी सहायक कार्य है उन्हे करने के लिये भी देखा जा सकता है। संतान मे यह दूसरे नम्बर की संतान का रूप भी समझा जा सकता है और पुत्री संतान के प्रति भी अपनी भावना को रखता है।<br />
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जातक एक शिक्षक के रूप मे भी जाना जा सकता है जो लोगो को आधुनिक युग मे विभिन्न प्रकार की मशीनोको उपयोग मे लाने का रूप बताये,जो लोग विद्या से जुडे है उनके लिये कार्य करने का रूप भी प्रस्तुत करता है,साथ ही कालेज शिक्षा मे कार्य को करने का रूप भी दे सकता है जो राजनीति से सम्बन्धित विषयों की जानकारी कानूनी जानकारी और विदेशी परिवेश से जुडी जानकारी को प्रदान करना जानता हो,एक संत जो अपने स्वार्थ की पूर्ति के बिना अपनी सहायता को सेवा के रूप मे लोगों को प्रदान करे भी माना जा सकता है। शनि अपनी नजर से की जाने वाली सेवा से जीवन यापन के लिये कार्य करना भी माना जाता है साथ ही प्लूटो के साथ होने से वह उतना धन नही इकट्ठा कर पाता है जो जीवन मे धन का मोह रखने वाले करते है और बिना उपयोग मे लाये मर जाते है। चन्द्रमा का ग्यारहवे भाव मे होना जातक को उतना ही लाभ दे पाता है जो अपने शरीर की पूर्ति कर ले और कहने के लिये तो उसके कोई भी काम नही बिगडते है जो भी कार्य होता है वह मित्रो की सहायता से पत्नी की सहायता से साथ मे चलने वाले दो लोगो से जो मित्रता की सीमा मे ही होते है के प्रति माना जा सकता है।</div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-36137695048358421912012-04-16T18:57:00.000+05:302012-04-16T18:57:29.277+05:30द्सवे शनि की वैवाहिक जीवन में बाधा से मुक्ति के उपाय<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ज्योतिष के अनुसार दसवां शनि विवाह और वैवाहिक जीवन मे गोचर या जन्म से बाधा देने के लिये माना जाता है.इस शनि की पहली पहिचान यह होती है कि पिता मे जडता होती है और माता मे बडबोलापन होता है। बहुत मेहनत करने के बाद भी केवल इतना मिलता है कि दाल रोटी मुश्किल से प्राप्त की जाये। इस स्थिति मे जब खुद की पूर्ति नही हो पायेगी तो घर मे शादी के बाद का खर्चा और माता की हठधर्मी तथा पिता का सुख दुख मे सहभागी नही होना एक प्रकार से वैवाहिक जीवन और विवाह दोनो के लिये ही दिक्कत वाला माना जायेगा इस शनि के लिये जो उपाय शास्त्र सम्मत भी है और कुछ मनोवैज्ञानिक भी है साथ मे आज के युग के हिसाब से उत्तम भी है को करने से इस बाधा का निकारण हो सकता है।<br />
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<li>दसवे स्थान के शनि का रास्ता बारहवे भाव में जाने से चौथे भाव मे जाने से और सातवे भाव मे जाने से मिलता है.</li>
<li>दसवा शनि का स्थान बदलना घर से दक्षिण-पूर्व दिशा मे पलायन कर जाना हितकर होता है कारण अक्सर मान मर्यादा और रहने वाले स्थान की संगति का असर भी आगे नही बढने देता है इसके लिये अगर रहने वाले स्थान को बदल दिया जाये तो शनि अपना फ़ल उचित देने लगता है.लेकिन जो लोग इस शनि के प्रभाव से अपने निवास को कार्य स्थान मे बदले हुये या अपने निवास को कार्य स्थान मे ही बनाये हुये है वे इस कारण को भी बदल कर अपने कार्यों और वैवाहिक जीवन मे सुधार ला सकते है.</li>
<li>दसवे शनि का पंचम त्रिकोणीय भाव परिवार से विमुखता से भी माना जाता है यानी खुद के परिवार और जन्म के बाद मिलने वाले धन से दूर हो जाना लेकिन इसे भली भांति समझने के लिये अपने को अपने ही परिवार मे उपस्थिति को देना और अपनी सामाजिक पारिवारिक व्यवहारिक नीतियों को बदलने के बाद सुधार का आना भी माना जाता है। शिक्षा से तथा बुद्धि से आमने सामने का भेद रखने से अक्सर उन्ही कामो को किया जाता है तो करके सीखे जाते है और उन कामो के लिये बहुत समय की जरूरत पडती है,अगर कामो को करके सीखने वाली प्रक्रिया को बदल कर पढकर सीखना और फ़िर करना जारी किया जाये तो यह शनि अपनी नीति को बदल सकता है.</li>
<li>दसवे शनि का एक रूप और भी देखा जाता है कि जातक व्यवसाय करने की अपेक्षा नौकरी करने मे ही रुचि रखता है इसका भी एक कारण है कि वह अपने दिमाग को कम से कम प्रयोग करने के बाद चलने वाली जिन्दगी को जैसा चल रहा है वैसा ही चलने के लिये भी अपनी रुचि को प्रदर्शित करता है इसे बदला जाये और उन कामो को करने का मानस बनाया जाये जहां कार्य को सामूहिक रूप से किया जाता है और मिलकर लाभ को बांटा जाता है इस प्रकार से भी शनि का विभाजन कई स्थानो पर हो जाने के बाद धन की और पारिवारिक सुख की बढोत्तरी होने लग जायेगी.</li>
<li>पिता के रूप मे जडता को बदलने के लिये पिता की सेहत का ख्याल किया जाये और उन्हे कार्यों मे सहायता की जाये,माता की हठधर्मी को रोकने के लिये उन्हे अपने मर्जी के कार्यों मे लगा रहना चाहिये तथा उनकी किसी राय को मिलने से पहले ही राय को जान लेना चाहिये इस प्रकार से उन्हे यह नही लगेगा कि वे जो कह रही है कोई सुन नही रहा है और उस प्रकार से उन्हे चिल्लाना या क्रोध करने की आदत पड जाती है,अक्सर यह शनि माता को कानो के रोग भी देता है जिससे उन्हे जोर से बोलने की आदत हो जाती है इस काम को भी किसी अच्छे ई एन टी का चैक अप करवाकर ठीक करना सही हो सकता है.</li>
<li>शादी अगर हो गयी है तो जीवन साथी को सांस की बीमारी भी होती देखी गयी है,यह बीमारी लगातार शनि वाले कामो मे लगे रहने से या अधिक समय ठंडे और शीलन भरे माहौल मे रहने से या इसी प्रकार के देशो मे रहने से भी होता है अक्सर देखा जाता है कि यह शनि घर के अन्दर के काम और जहां भी काम किया जाता है वहां पर बहुत सी जिम्मेदारियों को दे देता है इस प्रकार से न तो भोजन की क्रिया समय से हो पाती है और न ही खुली धूप मे जाया जा सकता है इस काम के लिये जातक अपने जीवन साथी को सम्भालने के लिये और उपरोक्त कारणो को रोकने के बाद भी अपनी जीवन रेखा को सम्भाल सकता है.</li>
<li>अक्सर देखा जाता है कि दसवे शनि के होने पर लोग धर्म और भाग्य को नही मानते है इस प्रकार से जो भी सहायता उन्हे भाग्य से मिलने वाली होती है वह फ़्रीज हो जाती है जैसे भाग्य के बाद ही कर्म का घर आता है और कर्म के घर मे शनि होने से जो भी भाग्य से मिला है वह फ़्रीज हो जाता है इसलिये जातक को अपने धर्म के अनुसार पूजा पाठ और सामाजिक नियमो को भी निभाना सही है,जो किया जा रहा है वह तो सही है लेकिन जो किया जा रहा है उसका फ़ल भी सही मिले तो वह कारण केवल भाग्य के कारण ही मिल सकता है.</li>
<li>दसवे शनि के होने पर जातक को पीठ की बीमारी भी होती देखी जाती है यह उनके अधिक काम करने और भोजन आदि मे समय के अभाव या कम मिलने के कारण भी देखा जा सकता है इसलिये जातक को समय से भोजन और समय से नीन्द का निकालना भी जरूरी है,साथ ही सोने वाले स्थान पर बजाय कठोर वस्तुओ के मुलायम वस्तुओ का उपयोग करना भी ठीक रहता है.इस शनि के कारण अक्सर उम्र की तीसरी सीढी पर आकर कमर झुक जाती है या किसी प्रकार से रीढ की हड्डी की बीमारी हो जाती है इसलिये ध्यान रखना जरूरी है.</li>
<li>दसवे शनि के लिये पुरुष और स्त्री दोनो ही बायें हाथ की बीच वाली उंगली मे ही नीलम आदि को धारण कर सकते है,अगर राहु अष्टम मे है तो नीलम का पहिनना खतरा भी दे सकता है.तब शनि के मंत्रो के जाप करने के बाद ही सफ़लता मिलती है.</li>
<li>इस शनि मे एक बात और भी देखी जा सकती है कि माता परिवार से कोई न कोई आकर घर मे टिका होता है उसका सम्मान करना भी जरूरी होता है.</li>
<li>दसवे शनि को दूर करने का एक उपाय और भी माना जाता है कि रहने वाले स्थान पर पूजा आदि मे लगातार दीपक का जलाया जाना.</li>
<li>शरीर और कार्य मे अधिक आलस आने पर मूंगा से बनी प्रवाल भस्म का शहद के साथ प्रयोग करना.</li>
<li>तुरत शादी और वैवाहिक जीवन मे फ़ायदा के लिये मजदूरों को भोजन देने की क्रिया को शुरु कर देना.</li>
</ul>
</div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-44544621827617333712012-04-16T17:59:00.000+05:302012-04-16T17:59:17.811+05:30विवाह मे बाधा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhPsyqoKJ5nPUJe7-Dwvkm7oyZo7YbDB5pjcLAtDetcIr9j4LzmhSRnd4x03tvrKDqRPaFr9FOQ_1uZwwoez5XLdfD8PaPSF5chN1vDQWIqxsGqMHnlPR4hiptTcc7C2z-HdaRifKy7dBoN/s1600/kundli.gif" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="317" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhPsyqoKJ5nPUJe7-Dwvkm7oyZo7YbDB5pjcLAtDetcIr9j4LzmhSRnd4x03tvrKDqRPaFr9FOQ_1uZwwoez5XLdfD8PaPSF5chN1vDQWIqxsGqMHnlPR4hiptTcc7C2z-HdaRifKy7dBoN/s400/kundli.gif" width="400" /></a></div>
जीवन के चार पुरुषार्थो मे विवाह भी तीसरे पुरुषार्थ काम नाम की गिनती मे आता है। इस पुरुषार्थ के बाद शरीर जीवन और जीवन के उद्देश्य मिल जाते है जातक अपने जीवन को इसी पुरुषार्थ मे निकाल लेता है। कई बार ऐसी ग्रह युति बन जाती है कि सोच कर भी विवाह करना भारी पड जाता है और केवल भटकाव का रास्ता ही मिलता है.प्रस्तुत कुंडली वृश्चिक लगन की है मालिक मंगल दसवे भाव मे है। मंगल की द्रिष्टि मे धर्म और भाग्य का मालिक चन्द्रमा है। जीवन का हर काम चन्द्रमा के ऊपर ही निर्भर है और चन्द्रमा को भी खुद मंगल ने अपने कन्ट्रोल मे रखा हुआ है,मंगल को स्त्री कुंडली मे भाई के रूप मे भी मानते है पिता के घर मे होने से पिता के भाई के रूप मे मानते है और इस मंगल के अन्दर शुक्र और शनि का प्रभाव आने से मंगल का रूप नेक न होकर बद के रूप मे बन गया है। मंगल की नजर जब भाग्य और धर्म के कारक चन्द्रमा पर है तो जातिका का चाचा या चाचा जैसा रिस्तेदार जातिका के पिता के स्थान पर अपनी भूमिका को अदा कर रहा है शनि को बडे भाई के रूप मे जाना जाता है इसलिये जातिका के पिता का बडा भाई भी अपनी युति को विवाह नही करने और अपने अनुसार विवाह करने के लिये अपनी योजना को बनाता है लेकिन मंगल की बदनीयती से शादी मे दिक्कत का होना माना जाता है। पिता का कारक सूर्य लाभ और जोखिम के काम के अन्दर तथा केतु की पंचम नजर से आहत होने के कारण परिवार मे अपने ही बच्चो को कोई सहायता नही दे पा रहा है वह अपने परिवार को संगठित रखने के लिये अपने को अपने बडे और छोटे भाई के प्रति समर्पित है जबकि पिता के दोनो भाई अपनी योजना के अनुसार जातिका के दादा की दुश्मनी को निकालने के लिये कि जातिका के दादा ने एक अलग से रकम का बन्दोबस्त जातिका की शादी के लिये किया था और उस रकम का उपयोग दोनो भाइयों ने पिता को विस्वास मे लेकर अपने कार्य और घर के निर्माण मे लगा दिया,जब जातिका का पिता उस धन के लिये जो शादी के लिये प्रयोग मे लाना है की बात करते है तो वे दोनो कोई न कोई बहाना बनाकर शादी वाले कारण को और आगे बढा देते है। जातिका की माता भी अपनी तीन सन्तानो से परेशान है.पुत्र सन्तान शिक्षा के प्रति पहले तो जागरूक रहे लेकिन अपनी शिक्षा को प्राप्त करने के बाद अपने अपने कार्य मे लग गये उनके लिये बहिन या बहिन का विवाह आदि सभी बाते दूर हो गयी उन्हे केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति की खबर रह गयी।<br />
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विवाह के भाव को ग्यारहवे भाव मे बैठा राहु देख रहा है पंचम भाव मे बैठा केतु देख रहा है दसवे भाव मे बैठा शनि अपनी वक्र द्रिष्टि से इस विवाह के भाव को आहत कर रहा है। गुरु जो सम्बन्ध का कारक है वह अष्टम मे जाकर अपनी सम्बन्ध वाली नीतियों को भूल कर बैठा है,दसवे भाव मे बैठा मंगल चौथे प्रभाव से जातिका के मानसिक कारणो और माता के प्रति अपनी कन्ट्रोल वाली नीति को अपना रहा है अपनी द्रिष्टि जातिका के माता के भाव मे रखकर माता को अपने प्रभाव मे रख रहा है और ननिहाल जो केतु का कारक होकर पंचम मे विराजमान होकर अपने प्रभाव को देख रहा है तथा जातिका की प्राथमिक शिक्षा को अपने अनुसार देने के बाद जातिका की शादी आदि की बात की तो यह मंगल जातिका के ननिहाल परिवार को भी मारक द्रिष्टि से देख रहा है। जातिका की उम्र तेतीस साल हो चुकी है,केतु की दशा चल रही है,केत मे शनि का अन्तर चल रहा है इसलिये जातिका शिक्षिका के रूप मे अपने निवास स्थान पर ही रह रही है और छोटे से स्कूल मे अपनी शिक्षा को देकर माता की सहायता कर रही है जबकि पिता का कोई भी सहारा जातिका और जातिका की माता को नही मिल रहा है। जातिका की ताई का कहना है कि जातिका की शादी उसके रिस्तेदारो मे कर दी जाये लेकिन जातिका की ताई के रिस्तेदार शराब कबाब आदि से बिगडे हुये लोग है,इसलिये जातिका उन लोगो से शादी नही करना चाहती है,जातिका के ऊपर जातिका के परिवार वाले नजर भी रख रहे है जिससे वह अपने प्रभाव को देकर और पंचम केतु का सहारा लेकर किसी के साथ भाग भी नही जाये,लेकिन यह केतु अपने प्रभाव को छठे भाव मे आकर अपना असर देने लगेगा,जातिका का कमन्यूकेशन फ़रवरी दो हजार तेरह मे किसी शिक्षा मे साथ रहे व्यक्ति से बन जायेगा और और गुप्त रूप से सम्बन्ध बनाकर कोर्ट मैरिज या इसी प्रकार के काम कर लिये जायेंगे। यह अपने अनुसार एक साल तक गुप्त निवास करेंगे और फ़रवरी दो हजार चौदह से शुक्र की दशा लगने पर तथा गुरु का गोचर सप्तम मे आते ही सामाजिक रूप से रहने के लिये अपना प्रभाव देने लगेंगे.</div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-13446970589682314642012-04-16T11:57:00.001+05:302012-04-16T11:57:07.043+05:30बहुविवाह दोष और परिहार के उपाय<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जातक के जन्म के समय मे गुरु शुक्र मंगल चन्द्र बुध केतु शनि राहु सभी ग्रह दोहरे जीवन साथी के लिये तभी उत्पन्न करते है जब यह ग्रह एक या अधिक संख्या में दोहरे स्वभाव वाले भाव मे उपस्थित होते है,भाव के बाद राशिया भी अपनी युति को प्रदर्शित करती है और ग्रह भी गोचर से अपने प्रभाव को प्रदर्शित करते है। मेष लगन मे सप्तम स्थान मे दोहरे स्वभाव की राशि तुला होती है,साथ ही कुटुम्ब भाव मे भी दोहरे स्वभाव की राशि वृष होती है,इन राशियों मे किसी भी ग्रह का उपस्थित होना दोहरे सम्बन्धो के लिये अपने प्रभाव को देना शुरु कर देगा। लगनेश मंगल इन राशियों अपना स्थान बनाता है तो भी और शुक्र अपना स्थान बनाता है तो भी दोहरे सम्बन्ध माने जायेंगे। विवाह होने के लिये एक साथ कई कारण पैदा होते है,जैसे बुध बातचीत मे आता है गुरु सम्बन्ध की छाप देता है और शुक्र कामक्रिया का कारक है,इसी प्रकार से मंगल उत्तेजना देता है शनि उत्तेजना को ठंडा करने के लिये अपनी शक्ति को देता है लेकिन राहु उत्तेजना को बढाने का काम करता है। कर्क वृश्चिक मीन का राहु अपने सम्बन्धो को भुलाकर भी सम्बन्ध बनाने के लिये अपनी धारणा को देता है जैसे कुल सम्बन्धो के लिये भी यही बात देखी जाती है साथ ही एक ही परिवार मे भाई बहिन जैसे रिस्ते भी कभी कभी राहु की शक्ति के कारण अनदेखे किये जाते है और प्रणय सम्बन्ध बनाकर उन्हे भी कलुषित कर दिया जाता है। गुप्त सम्बन्धो का बनना और गुप्त सम्बन्धो को क्रिया मे शुरु होना दो भावो के स्वामियों पर निर्भर करता है। इसके लिये छठे और आठवे भावो के साथ उनके मालिको के चक्कर मे जब लगनेश आजाते है और अलग अलग भावो के मालिक लगनेश के साथ आमने सामने की युति को बनाने लगते है तो सम्बन्ध गुप्त रूप से बन भी जाते है और उनका क्रिया मे होना भी मान लिया जाता है। पंचमेश और लगनेश का साथ होना या पंचमेश और लगनेश का आमने सामने होना,राहु मंगल या गुरु अथवा शुक्र का साथ देना गुरु शिष्य के नाते को भी खत्म कर देता है। षष्ठेश लगनेश और पंचमेश की युति या आमना सामना माता की बहिन यानी मौसी जैसे नापाक रिस्ते को गुप्त रिस्ते के कारण बद कर देता है। लगनेश का अष्टम मे होना और केतु का साथ होना भी सभी रिस्तो को ताक मे रखकर कामुकता की शांति के लिये रिस्ता बना लिया जाता है। इन कारणो से बचने के लिये ही अलग अलग समाजो ने अपने अपने नियम बनाकर दूरिया बनाने और रिस्तो को पाक साफ़ रखने की बात की है।<br />
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उडीसा मे कई समुदाय रिस्तो को अपने समुदाय के अन्दर ही करते है जबकि यूपी और बिहार आदि के साथ राजस्थान में हरियाणा मध्य प्रदेश महाराष्ट्र मे समुदाय के रिस्ते से दूर का रिस्ता देखा जाता है यानी गोत्र भी बचाये जाते है और दादी नानी आदि के गोत्रो से दूर रहा जाता है। जबकि कई जातियों मे रिस्ता किया जा सकता है तो केवल माता के भाई के लडके के साथ या माता के भाई की लडकी के साथ इस प्रकार से प्राकृतिक रूप से ममेरी और फ़ुफ़ेरी बहिन का रिस्ता भी समाप्त हो जाता है और उन लोगो के कहने का अर्थ यह भी होता है कि खून के रिस्तेदार अपनत्व लेकर चलते है जबकि बाहरी लोग समाज व्यवस्था पारिवारिक व्यवस्था खानपान को साथ लेकर नही चल पाते है और अक्सर विवाह टूटते हुये देखे जा सकते है। राहु से सम्बन्धित जातिया भी रिस्तो के प्रति अधिक दूरिया नही देखती है यही हाल केतु से सम्बन्धित मानवीय समुदाय मे देखा जा सकता है। जबकि मंगल से सम्बन्धित रिस्तेदारो मे आपसी रिस्तो को और खून के रिस्तेदारो को देखा जाता है जबकि बुध से समन्धित समुदायो मे धन और सामाजिक बल के बडे हुये रूप को देखकर रिस्ते किये जाते है। गुरु से समन्धित समुदायों गोत्र और कई बातो का परिहार किया जाता है जबकि शुक्र से सम्बन्धित समुदायों जाति पांति धर्म आदि को नही देखा जाता है। शनि वाले समुदायों मे भी गोत्र आदि का बहुत ध्यान रखा जाता है और किसी प्रकार से कोई उच्च जाति का जीवन साथी किसी कारण से आ भी जाता है तो उसे शादी का बुखार उतरते ही सत्यता मे जाते ही अपने रिस्ते को समाप्त भी करना पड जाता है या वह दूर जाकर अपनी वैवाहिक जीवन को जीने के लिये मजबूर हो जाता है।<br />
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जन्म समय के गुरु का प्रभाव अगर किसी खराब ग्रह से कलुषित हो रहा है तो भी नाजायज सम्बन्ध बन जाते है और जन्म समय के गुरु का असर किसी गलत ग्रह पर पड रहा है तो नाजायज रिस्ता भी जायज बनाकर समाज मे ग्रहण कर लिया जाता है,कहने का मतलब यह है कि गुरु अगर जन्म समय मे ठीक है और अपने प्रकार को सही दिशा मे प्रदर्शित कर रहा है तो जातक का जीवन सही रिस्तो की तरफ़ जायेगा और सम्बन्धो के मामले मे दिक्कत नही आयेगी मगर गुरु का प्रभाव अगर गलत है तो जातक अपने जीवन मे जब भी गुरु किसी भी ग्रह के साथ गोचर करेगा उसका खराब ग्रह से दूषित भाव सम्बन्धो के प्रति गलत प्रभाव ही देगा।<br />
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चन्द्रमा जब अष्टमेश षष्ठेश सप्तमेश द्वितीयेश से सम्बन्ध कर रहा हो उस समय राहु केतु या मन्गल भी साथ दे रहे हो तो मानसिकता को साफ़ रखने के लिये युति वाले ग्रह के साकार कामो को करने लग जाना चाहिये। काम करना और काम मे रत होना दोनो अलग अलग है काम को कार्य भी कहते है और काम को यौन सुख के लिये भी देखा जाता है.यौन सुख की लालसा के समय मे कार्य को करने लग जाना चाहिये इस प्रकार से यौन सुख की लालसा कार्य रूप मे फ़लदायी हो जायेगी जबकि यौन सुख मे जाने से शरीर को भी बरबाद करेगी और शक्ति की कमी तथा बदनामी को भी प्रदान करेगी. यात्रा करना और जल विहार करना बागवानी मे मन को लगा लेना कैमिकल के काम करने लग जाना तकनीकी रूप से कार्यो का करने लग जाना विद्या के क्षेत्र मे नयी नयी विद्या को ग्रहण करने लग जाना,खट्टी और उत्तेजक भोज्य पदार्थो पेय पदार्थो को त्याग देना चन्द्रमा की मानसिक दशा मे लाभदायी हो जाते है,गोमती चक्र इसके लिये एक अचूक उपाय है चांदी मे बनवाकर कमर मे धारण करने से कामोत्तेजना मे शांति मिलती है दिमाग मे चलते हुये गलत विचार शुद्ध होने लगते है। यह भी ध्यान रखना चाहिये कि केतु उस समय साधन देता है राहु उस साधन को प्रयोग करने का अवसर देता है राहु केतु के प्रभाव से भी बचने का कारण समझकर चलना चाहिये.<br />
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शरीर मे उत्तेजना तभी आती है जब स्त्रियों के शरीर मे रज की मात्रा बढती है और पुरुष के शरीर मे वीर्य की मात्रा का बढना होता है। अक्सर जो लोग पसीना बहाने का काम नही करते है अधिकतर बैठे रहते है और उनके लिये दिमागी काम करने का समय भी कम होता है उन लोगो के लिये रज और वीर्य को साधने का कार्य करना चाहिये इसके लिये योग करना व्यायाम करना हाथ पैरो को चलाने का काम करना जिम जाना आदि भी ठीक रहता है इस प्रकार से रज और वीर्य बढने के कारण पसीना आने से दूर होने लगते है। जब भी लगे कि मन भटक रहा है उस समय अपने धर्म और रीति नीति के अनुसार चलने लग जाना चाहिये,कारण को कारकत्व मे बदलने का उपक्रम सोचना चाहिये।<br />
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राहु भीड का कारक भी होता है और शुक्र चमक दमक को देने वाला भी होता है,राहु शुक्र के साथ मिलकर शरीर मे भयंकर उत्तेजना को भी प्रदान करता है और चमक दमक को देखकर वासना की उत्पत्ति भी करता है। मंगल के समय मे यानी पच्चीस साल से लेकर पचास साल की उम्र तक इनका वेग बहुत अधिक होता है,लेकिन उम्र की तेरह साल की अवस्था से लेकर उन्नीस साल की अवस्था को केतु से जोड कर देखा गया है इस समय मे दिमाग को घुमाने के लिये फ़ोटोग्राफ़ी कलात्कम कारणो का सृजन करना अपने नाम को आगे बढाने के लिये अपने शिक्षा सम्पत्ति को बढाने के उपक्रम करने से फ़ुर्सत मे नही लाना चाहिये इस प्रकार से यह योग फ़ायदा भी दे जायेंगे और मानसिक रूप से मन भी खराब नही होगा और शरीर की भी सुरक्षा बनी रहेगी। भीड भाड वाले क्षेत्र से दूर रहना चाहिये जहां सामूहिक भोजन और नाचगाना आदि होता है वहां से किनारा कर लेना चाहिये,जहां चमक दमक और पहिनावे को विशेष महत्व दिया जाता है वहां जाने से बचना चाहिये आदि कारण उत्तेजित होने वाले कारको से दूर रखने मे सहायक हो सकते है।</div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-90548299082729314652012-04-15T10:52:00.001+05:302012-04-15T10:52:08.933+05:30भूतनी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIxfrcpVDLWSVA9OJWYetIbcKGJvzHKY-MIkZOurYUvLHk5xNtqoSFEZHR9ZdtH_jsPhC8qnjEffpW3WfelX7uDrL4YgNxfYLDpma_PeJLulUDNQsuuj8CGvkPM5ubTsdG4js84GRBaD8v/s1600/kundli.gif" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="317" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIxfrcpVDLWSVA9OJWYetIbcKGJvzHKY-MIkZOurYUvLHk5xNtqoSFEZHR9ZdtH_jsPhC8qnjEffpW3WfelX7uDrL4YgNxfYLDpma_PeJLulUDNQsuuj8CGvkPM5ubTsdG4js84GRBaD8v/s400/kundli.gif" width="400" /></a></div>
पुरुष के जीवन मे अगर मर्यादा है पारिवारिक स्वाभिमान है चरित्र से वह जीवन मे सही रूप से चलने वाला है अपने खानपान पर उसे सात्विकता की पहिचान है,धर्म पर चलने वाला है तो एक प्रकार का तेज उसके माथे पर चमकने लगता है,वह तेज एक तो सात्विक विचारो से उत्पन्न होता है दूसरे वह अपने जीवन मे उन्न्ति के मार्ग पर बहुत आगे बढ जाने वाला होता है तीसरे एक नारी ब्रह्मचारी की कहावत के अनुसार वह पौरुषता मे भी बढ चढ कर होता है। महर्षि विश्वामित्र की तपस्या को खंडित करने के लिये जिस प्रकार से रम्भा नामकी अप्सरा ने इंद्र के कहने से उनकी ब्रह्मचर्य की अखंडता को समाप्त किया था उसी प्रकार से अगर इस कलयुग मे भी कोई व्यक्ति अपनी मर्यादा मे रहकर चलना चाहता है तो उस व्यक्ति के आसपास ही कितनी रम्भा आकर उसकी चरित्र की पौरुषता की अखंडता को विदीर्ण करने के लिये अपने आप बिना बुलाये आजाती है और अपना काम करने के बाद चली जाती है,वह व्यक्ति जो अपनी मर्यादा मे चल रहा था अपने कार्य से कार्य रखने का कारण ही समझता था जिसे अपने परिवार और समाज से बहुत अच्छा सहयोग मिलता था जो नेक चलनी के लिये जाना जाता था उसे पथ से विचलित करने के बाद जब इसी प्रकार की रम्भाये आती है तो वह अपने आप ही कलयुगी जामे को धारण कर लेता है उसके बाद एक साधारण आदमी मे और उसमे कोई फ़र्क नही रह जाता है। मैने पहले भी लिखा है कि कुम्भ राशि के व्यक्ति मित्र बनाने की कला मे निपुण होते है वे भावनाओ की गहराई को जानते है और कहां किस प्रकार से भावना को आहत करना है इस बात का गूढ उन्हे पता होता है इसका कारण होता है कि कुम्भ राशि के छठे भाव मे चन्द्रमा की राशि कर्क होती है और चन्द्रमा खुद उनके लिये मित्र बनाने की कला मे निपुण कर देता है। एक बात और भी देखी जाती है कि जब कोई नया पशु जो मादा हो और वह नये नर पशुओं के बाडे मे आजाये तो हर नर पशु को उसे भोगने के लिये अपनी अपनी शक्ति का प्रयोग करने लगता है,उसी प्रकार से जब कोई सामाजिक मर्यादा मे पहिनावे मे चाल चलन मे अपनी संस्कृति के अनुसार रह रहा हो और उसके बीच मे कोई नये पहिनावे वाला अपने को दूसरो से अलग दिखाने वाला हर बात मे स्पष्ट कहने वाला आजाये तो लोग अपनी संस्कृति पहिनावे और बोलचाल से दूर हटकर नये पन मे जाने के लिये उस व्यक्ति की तरफ़ आकर्षित हो जाते है। वक्री गुरु और मार्गी गुरु इस बात के लिये अपनी पहिचान बता देते है,जब कुंडली मे वक्री गुरु होता है तो वह मार्गी गुरु के विपरीत चलता है। यानी मार्गी गुरु जब धर्म और आध्यात्मिकता को लेकर चलने वाला होता है किसी भी प्रकार के सम्बन्ध को आजीवन चलाने वाला होता है तो वक्री गुरु केवल स्वार्थी भावना से अपने को समाज और मर्यादा से दूर रखकर विदेशी पहिनावे मे ले जाकर अपने को पूरी तरह से खुला रखकर सामने आता है,वैसे तो दबे स्वर मे लोग उसकी बुराई करते है लेकिन सामने आकर उसकी बुराई भी नही कर पाते है। कालिदास ने अपने ग्रंथ "बृहद शकुंतलम" में राजा दुष्यन्त और शंकुतला के चरित्र को इसी मार्गी और वक्री गुरु की उपाधि से विभूषित किया है। राजा दुष्यन्त का गुरु वक्री था और शकुंतला का मार्गी था,राजा दुष्यन्त ने अपने वन विहार के समय शकुन्तला के रूप और लावण्य को देखकर गन्धर्व विवाह कर लिया था तथा प्रणय के बाद उसे एक अंगूठी देकर चले गये थे,कि शकुन्तला जब राजा दुष्यंत के दरबार मे उससे मिलने के लिये आये तो वह उस अंगूठी को दिखा दे,जिससे वे उसे पहिचान जायेंगे और अपना लेंगे,कुछ दिन बाद वह अंगूठी सरोवर में स्नान के समय मे गिर गयी और उसे एक मछली निगल गयी। जहां दुष्यन्त को शकुन्तला का कोई ख्याल नही था,वही शकुन्तला राजा दुष्यन्त के प्रणय के बाद अपने पुत्र भरत के साथ वन मे ही निवास करने के बाद हमेशा राजा दुष्यन्त के ख्यालो मे ही खोई रहने लगी,जब वही वक्री गुरु प्रणय के समय के गुरु के साथ बारह साल बाद गोचर मे आया तो उस मछली को मछुआरे ने मारा और राजा दुष्यन्त के राज्य की मुद्रा से अंकित अंगूठी को राजा दुष्यंत को दी तब जाकर राजा दुष्यंत को शकुन्तला का ख्याल आया और वे शकुन्तला को लेने के लिये उसी जंगल मे पहुंचे जहां उनका पुत्र शेर के दांत गिनने में मशूगल था। वक्री गुरु को अपना काम करने के बाद स्वार्थी भावना से याद नही रहता है कि उसे और कोई भी सम्बन्ध के मामले मे मर्यादा का निर्वाह करना है वह अपने उद्देश्य की पूर्ति के बाद अपने दूसरे उद्देश्य के लिये शुरु हो जाता है और उसे यह भी ख्याल नही रहता है कि उसे जिस सीढी तक पहुंचाया गया है उसके नीचे भी कोई है,उसे केवल आगे बढने और अपनी इच्छाओं की तृप्ति केलिये ही ख्याल रहता है,जो लोग उसकी कार्य शैली मे आये होते है वे भले ही उसकी याद मे अपने को तिल तिल कर जला ले लेकिन उसे इन बातो से कोई लेना देना नही होता है।<br />
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उपरोक्त कुंडली में चन्द्रमा से गुरु और शनि अष्टम भाव मे है और वक्री है,शनि वक्री बजाय मेहनत करने के बुद्धि से काम करता है,जबकि वक्री गुरु बजाय सम्बन्ध निभाने के केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति को ही करने के लिये अपने दिमाग को लगाये रहता है.गुरु धन का मालिक है और शनि लगन का मालिक है,गुरु लाभ का भी मालिक है,तो शनि खर्च का भी मालिक है,अष्टम भाव विदेशी परिवेश से युक्त माना जाता है जातिका जिसकी यह कुंडली है अपने को विदेशी परिवेश मे रखने के लिये तथा साफ़ और स्पष्ट बोलने के लिये अपनी कामुकता को प्रदर्शित करने के लिये तथा एक ही उद्देश्य लेकर चलने वाली कि वह कैसे भी कहीं भी अपने दिमाग का प्रयोग करने के बाद अधिक से अधिक धन को प्राप्त कर ले उसकी नजर मे कोई हो केवल उसकी स्वार्थ की पूर्ति हो जाये और वह जिस काम को चाहती है वह काम हो जाये भले ही वह अपने चरित्र को गंवा दे कोई दिक्कत नही है भले ही वह किसी चरित्रवान का चरित्र भ्रष्ट कर दे उसे कोई लेना देना नही है भले ही उसकी याद मे कोई आजीवन आहे भरता रहे उसे कोई मतलब नही है उसे मतलब है तो केवल अपनी स्वार्थी भावना को पूर्ण करने के लिये कोई भी काम करना। अक्सर ऐसे लोगो को देखा जाता है कि वे अपने को अपने समाज से अलग दिखाकर अपनी तरफ़ लोगो को आकर्षित करने के लिये कारणो को प्रयोग करना। यह बात पुरुषो मे भी देखी जाती है कि वे कुछ नही तो अपनी दाढी मूंछ को ही विचित्र तरीके से कटवा कर चलने लगेंगे,जो पहिनावा पहिना जा रहा है उसे इस प्रकार से पहिनेंगे कि वे दूसरो से अलग थलग होकर दिखाई देने लगें। स्त्रियां पुरुषो को आकर्षित करने के लिये और पुरुष स्त्रियों को आकर्षित करने के लिये इस प्रकार के प्रभाव को प्रदर्शित करने लगते है।<br />
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वक्री गुरु वाले जातक एक स्थान पर टिक कर नही रह सकते है,अगर वे एक स्थान पर टिके भी है तो उनका दिमाग एक स्थान पर नही रहता है,उन्हे अपने माता पिता भाई बहिन परिवार समाज से कोई लेना देना नही होता है,जब कोई सामाजिक काम होता है या कोई परिवार का धार्मिक काम होता है तो वे उसे सामाजिकता और धार्मिकता से नही ग्रहण करते है उसके परिणाम की प्रतीक्षा करते है,अक्सर इस प्रकार के कार्य उनके लिये एक मनोरंजन से अधिक कुछ भी नही है। शादी विवाह के सम्बन्धो मे भी देखा जाता है कि कभी भी अपनी रिस्ते वाली बातो को निभाकर चलने वाले नही होते है,अगर असमर्थ होकर निभाना भी पडता है तो वे या तो परिवार से या समाज से कट कर ही रहते है और उन कामो को करते रहते है जो उनके परिवार और समाज मे कभी किये नही गये है। यह एक काम और भी बहुत अच्छा करता है कि इस प्रकार के गुरु वाले जातको को पुरुष संतान या तो देता नही है और देता भी है तो वह सन्तान का सुख नही दे पाता है उसका कारण भी है कि जब सन्तान पैदा होती है तो गुरु मार्गी होता या अस्त होता है। गुरु और शनि जब अष्टम मे वक्री होकर बैठे हो तो जातिका का साथ केवल अन्तरंग सम्बन्धो की सन्तुष्टि से आगे कुछ भी नही होता है,अगर कोई व्यक्ति इस ग्रह युति की जातिका से आजीवन सम्बन्ध बनाकर चलने वाली बात को सोचे तो उसका सोचना गलत होगा कारण जातिका को पता है कि वह जितना ले सकती थी उसे सन्तुष्टि मिल चुकी है और वह अपने नयेपन और नये अनुभव की तलास मे आगे चली गयी होती है। वक्री गुरु से जब मंगल अष्टम मे होता है तो इस प्रकार के जातक यौन रोगों से ग्रसित होते है,वक्री गुरु से जब बुध अष्टम मे होता है तो उनकी काम क्रिया मे महसूस करने वाली शक्ति का पता नही होता है,अष्टम वक्री गुरु से जब सूर्य अष्टम मे होता है तो अक्सर एड्स जैसे रोग पाये जाते है जिनका कोई इलाज नही होता है। अष्टम वक्री गुरु से जब शुक्र अष्टम मे होता है तो इस प्रकार के जातक अक्सर काम क्रिया मे निपणता को हासिल कर लेते है और अपनी काम सन्तुष्टि से मन चाहे धन और सुख सुविधा को प्राप्त करने के बाद बदले मे सन्तुष्टि देने वाले व्यक्ति को रोग भी दे जाते है पथ से भ्रष्ट भी कर जाते है,मर्यादा और परिवार मे आग भी लगा जाते है व्यक्ति की उन्नति की क्रियाओ को समाप्त कर जाते है,धर्म और अन्य प्रकार के मोक्ष वाले साधनो से दूर भी कर जाते है। इस प्रकार की जातिकाओं का रूप एक भूतनी से अलग नही है. </div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-58657049308582076852012-04-15T09:35:00.000+05:302012-04-15T09:35:24.898+05:30गुप्त सम्बन्ध और वैवाहिक जीवन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiFrhTNbGFmhucaSr2UmdhHvkczNs21xukA0zJSHR7mh4dFqTSnLZoKvaD7V2iuk41f_9K7C5b70FZbiSap3dWHT5YT8EB2ziEq4RLxYx21Kn9ync2iHJsbE-mqEyO7_9I6ekpgVkJiDB6e/s1600/kundli.gif" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="317" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiFrhTNbGFmhucaSr2UmdhHvkczNs21xukA0zJSHR7mh4dFqTSnLZoKvaD7V2iuk41f_9K7C5b70FZbiSap3dWHT5YT8EB2ziEq4RLxYx21Kn9ync2iHJsbE-mqEyO7_9I6ekpgVkJiDB6e/s400/kundli.gif" width="400" /></a></div>
जातक के जन्म समय के ग्रह जीवन में सभी सुख तो नही देते है,कोई न कोई ग्रह तो अपनी सीमा रेखा से बाहर हो जाता है और जातक को उसी सीमा में कष्ट देने के लिये अपनी हरकतो को करने लगता है। जातक जिस परिवार मे जन्म लेता है उस परिवार की भलाई बुराई तो वह सहन कर सकता है लेकिन जातक का विवाह अपने परिवार और घर मे नही हो सकता है इसलिये उसे अपने जीवन के जवानी से अन्तिम समय तक के लिये जीवन के लिये दूसरे पर निर्भर होकर रहना पडता है। बचपन तो माता पिता निकाल देते है शिक्षा भी माता पिता और परिवार के लोग मिलकर निकाल देते है,इसके बाद नौकरी और धन कमाने की स्थिति भी कैसे भी निकल जाती है लेकिन विवाह के बाद क्या होगा यह किसी को पता नही होता है,अक्सर इसी बात मे लोग भ्रम मे रहते है और जिसे अच्छा समझा जाये वह खराब निकल सकता है जिसे खराब समझा जाये वह अच्छा भी निकल सकता है। उपरोक्त कुंडली कन्या लगन की है लगनेश बुध सप्तम में अपना स्थान बनाकर बैठे है,साथ में बारहवे भाव का मालिक सूर्य भी है.यह सूर्य सप्तम मे आकर नीच का फ़ल देने के लिये अपनी युति देता है इसी सूर्य को केतु जो तीसरे भाव मे है वह मंगल का बल लेकर भी सूर्य को देता है,इस प्रकार से नीच के सूर्य को बल मिल जाता है और वह जातक के साथ घात करने से नही चूकता है।यह कुंडली एक लडकी की है जो विद्या और बुद्धि के क्षेत्र मे नाम कमाने वाली है,धन भाव मे वक्री शनि है इसलिये बुद्धि से धन कमाने की योग्यता है,मंगल केतु तीसरे भाव मे है इसलिये कम्पयूटर और तकनीकी कारणो मे बहुत ही आगे बढने वाली है,गुरु चन्द्र चौथे भाव मे है इसलिये परिवार और मर्यादा मे रहकर अपने पारिवारिक जीवन को चलाने वाली है। छठा शुक्र जीवन मे हजार दोष पैदा करने वाला है,नीच का सूर्य सप्तम मे बैठ कर अपने नीच प्रभाव को देने वाला है,बुध जो सातवे भाव मे बैठ कर अपनी नीची बुद्धि को सूर्य और केतु के साथ मिलकर प्रकाशित करने वाला है। माता का कारक गुरु स्वगृही है,इस प्रकार से माता धार्मिक भी है भाग्यशाली भी है और धर्म कानून तथा मर्यादा पर चलने वाली है,पिता का कारक बुध सूर्य के साथ नीच प्रभाव को रखने वाला है और लेकिन कार्यों से ईमानदारी के कार्य जो ब्रोकर से सम्बन्धित है करने वाला है,सूर्य से तीसरा राहु वाहन से सम्बन्धित व्यवसाय पिता के द्वारा करने वाला है,सूर्य से बारहवे भाव मे शुक्र होने से पिता मे मोटापा भी है और वह अपने कार्यों को उत्तम रूप से स्थिर रहकर कार्य करने वाला है।<br />
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जन्म के गुरु और जन्म के चन्द्रमा पर जब गोचर के गुरु ने अपनी युति बनायी तो जातिका की शादी धार्मिक रूप से रीति रिवाज से की गयी,लेकिन जैसे ही फ़ेरे समाप्त हुये जिस वर के साथ शादी की गयी थी उसके पहले से गुप्त सम्बन्ध रखने वाली लडकी आ गयी और अपने अनुसार वर के प्रति पहले से चलते हुये अपने प्रेम सम्बन्ध के सबूत विवाह के समय पूरे समाज को दिखाये,इस प्रकार से एन वक्त पर विवाह होकर भी नही हुआ,लडके वाले जातिका के परिवार वालों से बचने के लिये एक एक करके खिसक लिये और जातिका विवाह के जोडे में अपने घर पर रह गयी। राहु जो जन्म समय और गोचर दोनो से अपनी युति दे रहा था और अक्समात ही खुशी को गम मे बदलने के लिये अपनी शक्ति को देकर चला गया। बिना कुछ किये हुये एक प्रकार से सामाजिक दंड जातिका को दे गया जिसके लिये जातिका ने और जातिका के परिवार वालो ने कभी सोचा भी नही होगा कि उनके साथ ऐसा होगा। जिस लडके के साथ विवाह तय किया गया था वह अपने जन्म स्थान से दूर नौकरी कर रहा था और उसने नौकरी मे ही किसी लडकी को अपनी जीवन संगिनी चुपचाप बना लिया था घर वालो को कानो कान खबर नही थी। पहले तो वह शादी के लिये ना नुकर करता रहा,लेकिन माता के अधिक कहने पर वह शादी के लिये तैयार हुआ और इस जातिका के साथ उसके घर वालो ने रिस्ता तय किया,शादी के एन वक्त पर जिस लडकी को वह जीवन संगिनी बनाकर बैठा था,आयी और जीवन को एक दाग देकर चली गयी। स्त्री की कुंडली मे शुक्र जब छठे भाव मे होता है तो हजार दोष देने के लिये माना जाता है,यही शुक्र पति भाव से बारहवे होने पर काम धन्धे के मामले मे और जीवन के उन्नति के क्षेत्र मे पति को तो आराम देने वाला होता है लेकिन खुद को समय समय पर इसी प्रकार के आक्षेप विक्षेप देने के लिये माना जाता है। सूर्य नीची राजनीति देकर जीवन के कोई भी किये गये अच्छे कामो मे भी बुराई देने के लिये माना जाता है।<br />
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कुंडली मे मंगल केतु की युति एक प्रकार से तो तकनीकी कारणो मे फ़लदायी होती है किसी भी नेटवर्किग के काम मे सफ़लता को देने वाली होती है किसी भी साधन को तकनीकी रूप से चलाने के लिये उत्तम मानी जाती है और पहिचान के रूप मे एक प्रकार से इंजीनियर की उपाधि देती है लेकिन पहिचान के रूप मे एक भटकती आत्मा के अलावा और कुछ भी प्रदान नही करती है। जो भी परिवार विवाह के बाद मिलता है वह अक्सर तामसी भोजन को खाने पीने वाला और जो धर्म और रीति रिवाज हिंसा की तरफ़ जाते है उनकी तरफ़ मन लगा कर चलने वाला होता है। मंगल केतु जब सूर्य से नवे भाव मे आजाते है तो पिता या पिता के परिवार से कोई न कोई दुष्कर्म ऐसा भी हो जाता है जिसके कारण पिता का कोई भी धर्म सहायता मे नही रहता है जहां भी भाग्य के लिये जीवन को आगे बढाने के लिये देखा जाता है वहां धन और पराक्रम की बात तो पूरी हो जाती है लेकिन शरीर सुख समाज का सुख और परिवार का सुख सामने नही रह पाता है। </div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-41863105591671427882012-04-14T11:50:00.001+05:302012-04-14T11:50:54.552+05:30ग्रह और उनके उपाय<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ज्योतिष मे ग्रहों का रूप अलग अलग बताया गया है,ग्रह प्रयक्ष और अप्रतक्ष रूप से अपना असर देते है।ज्योतिषी अपने अपने ज्ञान के अनुसार ग्रह के खराब होने के उपाय बतलाते है। अलग अलग ग्रहो के अलग अलग उपाय बताये जाते है,लोग अपनी अपनी कुंडली लेकर ज्योतिषियों के पास जाते है अपने बारे मे पूंछते है,ज्योतिषी द्वारा कुंडली को देखा जाता है जो भी ग्रह अपना खराब असर दे रहा होता है उसी के अनुसार गणना करने के बाद उपाय बता दिया जाता है। लेकिन उपाय हमेशा के लिये नही होते है,उपाय कुछ समय के लिये करने के लिये कहा जाता है। कारण ग्रह नुकसान का देने वाला होता है वही ग्रह कुछ समय बाद फ़ायदा देने के लिये भी माना जाता है,जो ग्रह फ़ायदा देता है वही ग्रह कुछ समय बाद नुकसान देने के लिये भी अपनी क्रिया को शुरु कर देता है। यह बात और भी मानी जा सकती है कि जैसे ड्राइवर अपनी योग्यता के सहारे ही गाडी को चलाता है,कभी कभी वही योग्यता भी खतरनाक बन जाती है और वही गाडी जो वह आराम से सम्भाल सकता है उसकी जान लेने के लिये भी अपना काम करती है। महावत जिस हाथी को चलाने की सामर्थ्य रखता है वही हाथी जब अपनी पर आता है तो पहले वह अपने महावत को ही मारता है,उसी प्रकार से जो सपेरा सांप को पालता है और सांपो के द्वारा ही अपने जीवन को चलाना जानता है कभी कभी वही सांप उसकी मौत का कारण बन जाता है,जो तांत्रिक अपने तंत्र से सभी को वश मे करने के बाद अपने द्वारा प्राप्त की गयी आसुरी शक्तियों का प्रयोग करता है लेकिन वही तांत्रिक अपने द्वारा पाली गयी आसुरी शक्तियों से ही मारा जाता है। तो यह जरूरी नही है कि जो कारक फ़ायदा दे रहा है वह नुकसान नही दे,इसलिये हमेशा ख्याल यह रखकर चलना चाहिये कि अगर आज सूर्य नुकसान दे रहा है तो वह हमेशा ही नुकसान देता रहेगा वह फ़ायदा भी देगा,लेकिन फ़ायदा के समय मे भी नुकसान वाला उपाय किया जाता रहा तो वह बजाय फ़ायदा के नुकसान भी देने लगेगा। इस बात के लिये लोगो को भ्रम मे डाल दिया जाता है कि यह सूर्य आजीवन परेशान करने वाला है और उसका उपाय आजीवन करना चाहिये।<br />
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सबसे पहले जिन्दा ग्रहों का उपाय करना जरूरी होता है,पिता से बिगड गयी है तो समझ लीजिये सूर्य खराब है बेटा कहे मे नही चल रहा है और ऊल जलूल काम करने के बाद घर मे क्लेश को फ़ैला रहा है तो समझ लीजिये कि सूर्य खराब है,सभी ग्रह अपना खराब तभी देते है जब कोई न कोई खराब ग्रह उस ग्रह से अपनी युति लेता है जैसे बेटा घर मे क्लेश फ़ैला रहा है तो देखना यह पडेगा कि बेटे को शनि या राहु या केतु जैसे कारक साथ मे लेकर चलने की आदत तो नही पड गयी है,कही पिता के पास भी इसी प्रकार के कारक तो नही शुरु हो गये है। सूर्य के साथ शनि का मिलना हो गया होगा तो वह सूर्य की चमक को धीमा कर देगा जो सूर्य की गर्मी है उसे ठंडा कर देगा,इस शनि को दूर करने के लिये सूर्य के बल मे बढोत्तरी करनी पडेगी उसे शनि के कारको से दूर करना पडेगा,सूर्य जो शरीर मे बल का कारक है अपनी पहिचान को देने वाला है अगर वह शनि के तामसी कारणो मे मिल जायेगा तो शरीर की चमक समाप्त होने लगेगी,अगर शरीर मे कई प्रकार के रोग लग गये है तो भी सूर्य का धीमा हो जाना माना जायेगा.लेकिन सूर्य के खराब होने के पहले चन्द्रमा को भी देखना पडेगा जब तक चन्द्रमा पर कोई ग्रह अपना असर नही देगा सूर्य खराब नही हो सकता है,चन्द्र यानी मन पर कोई कारण नही आने पर सूर्य का खराब होना नही माना जाता है,जैसे मन मे किसी प्रकार की शंका आ गयी है और वह शंका समाप्त नही हो रही है जब तक मन की शंका को दूर नही किया जायेगा शरीर का सूर्य व्यवस्थिति नही हो सकता है। जैसे चन्द्रमा के साथ मंगल का प्रकोप शुरु हो जाये तो माता को गुस्सा आना शुरु हो जायेगा और माता जब गुस्सा करेगी तो पिता का दैनिक क्लेश के कारण तामसी कारणो मे जाना जरूरी हो जायेगा,उसी प्रकार से जब बेटे की मां घर मे क्लेश नही करेगी या बेटे पर अनावश्यक कारण नही थोपेगी बेटा तामसी कारणो मे नही जायेगा। यह उम्र और जलवायु के कारण भी होता है,जब तक इन सभी बातो का ख्याल नही किया जायेगा तब तक कोई भी कारण क्लेश का नही बनेगा। समस्या आने के पहले समस्या की हवा चलनी शुरु हो जाती है। जैसे कोई एक्सीडेंट होना है तो पहले एक्सीडेंट करने वाला कारण शुरु हो जायेगा फ़िर एक निश्चित स्थान पर दोनो कारण जब इकट्ठे होंगे तभी एक्सीडेंट होगा,बिना कारण की उत्पत्ति के एक्सीडेंट नही हो सकता है। राहु अब ही सूर्य के साथ गोचर करेगा उस समय पिता या पुत्र के प्रति अनावश्यक सोच का आना माना जायेगा,उस सोच का रास्ता नही मिलने पर शरीर मे कई प्रकार के रोग लगने शुरु हो जायेंगे वह रोग या तो चिन्ता से बाहर जाने के प्रति होंगे या अचानक आने वाली विपत्ति से बचने के लिये सोचे जाने वाले उपाय होंगे उपाय नही मिलने पर सूर्य अपने को समय के घेरे मे ले जाकर तामसी कारणो मे शुरु हो जायेगा उसे चिन्ता होगी कि अमुक समय पर अमुक कारण बन सकता है उतने समय के लिये वह अगर अपने को अपने से बाहर रखेगा तो वह बच सकता है या उस समय पर उसे कुछ भी कहने या सुनने अथवा कार्य को करने मे असमर्थ होना पडेगा इसलिये वह अपने को उस कारण से दूर रखकर ही चलना ठीक होगा इसलिये वह अपने शराब आदि तामसी कारणो मे लेकर चला जायेगा या अपनी समस्या से छुटकारा लेने के लिये किसी अनावश्यक कारण को पकडने और अपनी समस्या से दूर जाने का उपक्रम रचने लगेगा,उस समय अगर केतु का सहारा मिल जाता है और उसकी कार्य प्रणाली को सहायक बनकर हल कर दिया जाता है तो सूर्य डूबने से बच भी जायेगा और समस्या का अन्त भी हो जायेगा। बेटा अगर बाप से बनाकर चलता है तो दोनो का सूर्य हमेशा के लिये ही उदय रहेगा जैसे ही बाप बेटे मे किसी भी बात से अनबन हो गयी दोनो का सूर्य खतरे मे चला जायेगा,इसी प्रकार से जब तक सूर्य यानी सरकार के कानूनो और मर्यादाओ का पालन किया जाता रहेगा शरीर के सूर्य पर कोई दिक्कत नही आयेगी जैसे ही अहम के अन्दर आकर या शनि सम्बन्धित चतुराई को लाकर अपने को सरकार के समक्ष पेश किया गया सरकार शरीर के सूर्य पर कारावास या किसी प्रकार के दंड देने की प्रक्रिया से सूर्य को ग्रहण दे देगी। एक कहावत और भी सुनी होगी कि लोहा लोहे को ही काटता है इसी प्रकार से बाप बेटे की अनबन बाप और बेटे दोनो को ही काट देती है,इसलिये पहले अपने सूर्य को सही रखने के लिये अपने पिता और अपने पुत्र से कभी अनबन बनाकर नही रखना चाहिये इस प्रकार से जिन्दा ग्रह के साथ मित्रता करने के बाद चालीस प्रतिशत तक लाभ लिया जा सकता है बाकी का अपने कार्यों से रत्न धारण करने से और सूर्य वाली मर्यादा को निभाने से भी सूर्य अपना काम करता रहेगा।<br />
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शनि को कुंडली मे बडे भाई की उपाधि से विभूषित किया गया है वही शनि बुजुर्ग की हैसियत से भी अपने को सामने रखता है। बडे भाई और पुत्र का साथ शनि सूर्य की युति मे लेकर जायेगा अगर इस कारण मे केवल केतु का सहारा लिया जाता रहेगा तो बडे भाई के द्वारा पुत्र को सहारा मिलता रहेगा और पुत्र अपनी मर्यादा से बाहर नही जायेगा लेकिन बीच मे शुक्र का आना हो गया तो सूर्य और शनि दोनो ही बरबाद हो जायेंगे,जैसे बडे भाई के द्वारा पुत्र को किसी प्रकार की सहायता दी जाती है वह सहायता तभी तक सही मानी जायेगी जब तक बीच मे लेन देन का कारण नही पैदा होता है यही बात इस प्रकार से भी मानी जा सकती है कि जब घर की औरतो मे सूर्य पैदा हो जायेगा तो एक दूसरे के प्रति राजनीति की बाते पैदा हो जायेंगीऔर कहा जाने लगेगा कि अमुक समय मे अमुक प्रकार की सहायता उन्हो ने नही की थी लेकिन हमने सहायता की थी इस प्रकार से मानसिक कष्ट का कारण पैदा होगा और हो सकता है सूर्य खराब हो जाये यानी पुत्र अपनी सहायता बडे भाई से लेना बन्द कर दे या बडा भाई अपनी दी जाने वाली सहायता को बन्द कर दे,इसी प्रकार से जब घर मे शादी सम्बन्ध वाले कारण बनते है और उस समय अगर सूर्य शनि की मान्यता को कायम नही रखा गया तो भी एक दूसरे के प्रति अनबन होने का कारण पैदा हो जायेगा और वह शादी सम्बन्ध होगा जरूर लेकिन जीवन मे आगे के लिये खतरनाक ही बन जायेगा वह किसी भी प्रकार से सूर्य की तरक्की का रास्ता इसलिये नही बन पायेगा क्योंकि जीवित ग्रह की सहायता नही मिलने पर सूर्य खुद को शनि वाले कारणो मे ले जाकर या तो अपनी मर्जी से शनि जो शराब कबाब आदि के कारणो मे या घर से मर्यादा से विपरीत कामो को करने के बाद शनि को ग्रहण करेगा इसलिये सबसे पहले जहां तक हो सके जिन्दा ग्रह को सम्मुख रखकर चलना ठीक होगा।<br />
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सभी ग्रहो से फ़ायदा लेने का अचूक उपाय जो ज्योतिष और पुराने जमाने से प्रयोग मे आता हुआ देखा गया है वह बहुत ही सुन्दर और बलकारी तथा खुद का और परिवार का नाम चलाने के लिये माना जाता रहा है,सूर्य को खराब नही होने देने के लिये घर के पिता और पुत्र का सम्मान अपने अपने स्थान पर रखना चाहिये तथा समय समय पर मिलने वाले कनफ़्यूजन को दूर करते रहना चाहिये,चन्द्रमा के उपाय के लिये घर के बुजुर्ग स्त्री सदस्यों का सम्मान करते रहना चाहिये और उनके आशीर्वाद को लेते रहना चाहिये बडी बहिन भी चन्द्रमा के अधिकार मे आजाती है लेकिन उसकी शादी के बाद केवल मर्यादा तक जी सीमित रहना चाहिये अन्यथा या तो बडी बहिन का जीवन चौपट हो जायेगा या खुद को कोई आगे बढने का रास्ता नही मिल पायेगा इसी प्रकार से बुध की सहायता के लिये बहिन बुआ बेटी का सम्मान करना और उनके लिये जो भी सहायता मिलती है देते रहना चाहिये बहिन बुआ बेटी से आजीवन का एक सम्पर्क का रास्ता मिलता है जैसे वह अनजाने लोगो के बीच मे शादी के बाद मे जाती है और उन अन्जाने लोगो से सम्पर्क का बनना एक प्रकार से बडे कमन्यूकेशन के रूप मे माना जाता है अगर अपनी तरफ़ से मान सम्मान तथा सम्पर्क को कायम रखा जाता है किसी भी मिलने वाली बुराई या भलाई मे मिल बैठ कर और आदर सम्मान से उस कारण को समझ लिया जाता है तो जो सम्पर्क बना है उससे भी और सम्पर्क को भी दुख मे सुख मे साथ लिया जा सकता है,साथ ही बहिन बुआ बेटी का सम्मान भी सुरक्षित रहेगा और अहम के कारण या एक दूसरे की प्रतिस्पर्धा के कारण उन्हे कष्ट भी नही होगा पारिवारिक जीवन भी सही चलता रहेगा। गुरु का साधने का सबसे अच्छा तरीका है किसी भी सम्बन्ध के प्रति आत्मीय लगाव होना चाहिये इसी बात को उच्च का गुरु यानी कर्क राशि का गुरु माना जाता है क्योंकि कर्क राशि चन्द्रमा की राशि है और इस राशि मे गुरु का आस्तित्व उच्च का हो जाता है यह इसलिये होता है कि सम्बन्ध को मानसिक रूप से इज्जत के रूप से देखा जाता है लेकिन जो लोग सम्बन्ध को केवल स्वार्थ हित तक ही सीमित रखते है वह व्यवहार के रूप मे आजाता है और वह अपने सम्बन्ध को आजीवन कायम नही रख पाते है। इसका परिणाम यह होता है कि जैसे ही काम निकला वे दूर हो जाते है और अपने या उनके आगे के कामो मे बाधा भी आजाती है साथ ही एक दूसरे के प्रति लोकरीति और आक्षेप विक्षेप भी मिलने लगते है। शुक्र के लिये भी यही माना जाता है कि जितना हो सके पति पत्नी को और पत्नी पति को अगर भौतिकता से दूर रखकर अपने को केवल इसी भावना मे लेकर चलते है कि उन्हे हाथ से हाथ मिलाकर जीवन की तरक्की मे आगे जाना है या जो भी काम करना है वह दोनो की रजामन्दी से ही होना है तो शुक्र अपने असर को देता रहेगा जैसे ही शुक्र के अन्दर कानून का भाव पैदा हो जाता है शुक्र खराब हो जाता है यह बात उन लोगो से सीखनी चाहिये जो अपने सम्बन्ध महिलाओ से केवल कामेक्षा की पूर्ति के लिये रखते है या जो लोग विवादित जमीन जायदाद को खरीदने या बेचने मे सम्बन्धित होते है उनके लिये खुद का जीवन भी बरबाद होना माना जाता है साथ ही जिससे वह सम्बन्ध स्थापित करते है उनका जीवन भी बरबाद होना माना जाता है,इसी प्रकार से शनि के लिये मैने ऊपर लिखा ही है जिसे शनि के बारे मे बेलेन्स करना आता है जो समय के साथ कार्य की योजना और महत्व को समझते है जो लोग बुजुर्गो से समय पर राय लेना जानते है और जो लोग अपने लिये हमेशा के लिये चलने वाले कार्य को पकडने की सोचते है भले ही वह कम फ़ायदा देने वाला हो लेकिन लगातार पकड कर चलने और आने वाली कमाई को निश्चित तरीके से समझने के लिये उनके अन्दर बुद्धि है तो वे आगे बढ जाते है,इसी बात को कहावत के रूप मे भी कहा जाता है कि पांच कमाओ लेकिन रोज कमाओ दाल रोटी खाओ लेकिन रोज खाओ,राहु केतु के लिये भी यही मान्यता होती है अक्सर राहु के आने से किसी भी ग्रह के साथ सामजस्य नही बन पाता है कनफ़्यूजन पैदा हो जाते है और उन कनफ़्यूजन को अगर मंगल की तकनीक से निकाल दिया जाता है या अचानक मिलने वाले मुशीबत के कारणो को तकनीकी रूप से प्रयोग मे लाया जाता है तो कनफ़्यूजन भी फ़ायदा देने वाला बन जायेगा लेकिन उसी कनफ़्यूजन मे रहकर और अधिक कनफ़्यूजन को बढा दिया जायेगा तो वही कनफ़्यूजन आगे के सभी रास्ते भी बन्द कर देगा और कोई भी दुर्घटना देने के लिये माना जायेगा। </div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-60739615128198795032012-04-13T11:56:00.004+05:302012-04-13T11:56:57.554+05:30शनि चन्द्र की युति स्वतंत्र कार्य मे बाधा देते है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अक्सर सभी लोग शनि के लिये अपनी धारणा को गलत ही देते है कारण कुंडली मे यह जिस भाव मे होता है उसी भाव के अनुसार कठिनाई जीवन भर देने के लिये माना जाता है। लेकिन मार्गी शनि शरीर को दिक्कत देने वाला होता है जबकि वक्री शनि बुद्धि को परेशान करने के लिये माना जाता है। शनि का प्रभाव ठंडा होने के कारण वह चन्द्रमा रूपी पानी को जमाने का काम करता है जब भी जातक के सामने कोई कार्य आता है तो वह अपने को अपने बुद्धि और विवेक से नही कर पाता है। अक्सर इसी कारण से इस युति वाले जातक हर काम को राय लेकर करना पसंद करते है लेकिन यह बात गुरु पर भी निर्भर होती है कि उसकी कुंडली मे गुरु का स्थान कहां है अगर गुरु का बल शनि या चन्द्र को मिल रहा है तो वह बुद्धिमान व्यक्तियों के सहयोग मे रहकर और राय मशविरा लेकर आगे बढ जाता है जबकि राहु या केतु की शक्ति से वह किसी भी काम की राय लेने के बाद और भी भ्रम मे चला जाता है। यह युति अगर पहले भाव मे होती है तो यह दिमागी रूप से ठस बनाने का काम करती है। जातक के माथे पर बाल रखे रहते है और माथा कम ही दिखाई देता है वह जिस काम की तरफ़ एक बार लगा दिया तो उसी काम को करता रहता है जातक को यह पता नही होता है कि वह आगे क्या करेगा और जो कर रहा है उसका फ़ल क्या मिलेगा। इसके साथ ही अगर यह युति जातक के दूसरे भाव मे होती है तो जातक के कुटुम्ब की महिलाये उससे दूर ही रहतीहै और वह अपने समाज मे परिवार मे निन्दा की नजर से देखा जाता है उसके द्वारा जो भी काम नकद आय के लिये किये जाते है वह इसी प्रकार से या तो मिल नही पाते है या उसके साथ कोई न कोई घात हो जाती है अथवा आने वाली आय का फ़्रीज होना माना जाता है,लेकिन इसी युति वाले अगर अपने कामो के अन्दर आइसक्रीम का काम करना शुरु कर देते है तो उनकी आय की बढोत्तरी होनी शुरु हो जाती है। शनि चन्द्र से सम्बन्धित फ़सले जैसे आलू जमीकंद अरबी आदि भी फ़ायदा देने के लिये अपनी युति को शुरु कर देते है। इस युति मे अगर राहु गर्म राशि मे रहकर अपना प्रभाव देता है तो जातक कांच के काम मे सफ़ल होना शुरु हो जाता है,अगर केतु सहायता देता है तो जातक पहाडी स्थानो मे बर्फ़ीले प्रदेशो मे अपने निवास के दौरान यात्रियों के रहने और आने जाने का इन्तजाम करने के कामो मे सफ़ल हो सकता है। </div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-43881232844318127922012-04-13T11:36:00.001+05:302012-04-13T11:36:56.759+05:30बुध शनि की युति शिक्षा मे आलस<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कुंडली मे बुध शनि की युति अगर शिक्षा के क्षेत्र मे होती है तो जातक पढाई लिखाई के प्रति आलसी होता है वह व्यापारिक कला मे प्रवीण होता है। शिक्षा मे देर होने का कारण करके सीखने वाली बुद्धि से भी माना जाता है,बुध को बुद्धि से देखा जाता है और शनि को कार्य से देखा जाता है। जातक करके सीखने वाले कामो मे सफ़ल हो जाता है। शनि को मिट्टी और बुध को आकार बनाने के लिये भी माना जाये तो जातक का कार्य मिट्टी से बने बर्तन आदि बनाने के लिये और उनकी कलाकारी के लिये भी माना जाता है जातक का जन्म भी इसी प्रकार के परिवार मे होता है। शनि से लकडी और बुध से खिलौने बनाने का रूप भी देखा जाये तो जातक इसी प्रकार के कार्य करने मे सफ़ल हो सकता है। बुध भाषा से और शनि लिखने के लिये माना जाये तो जातक उन्ही बातो को लिखता है जो इतिहास की द्रिष्टि से मजबूत और हमेशा के लिये याद रखने के लिये मानी जा सकती है। जातक की कुंडली मे बुध शनि जिस भाव मे होते है उसी भाव मे कोई न कोई दोष का होना भी माना जाता है। अगर ग्यारहवे भाव मे यह युति होती है तो जातक की पीठ मे कोई कूबड नुमा उठान होता है। जातक के चौथे भाव मे होने पर पुरुष है तो स्त्री जैसे स्तन बन जाते है और अगर यह स्त्री की कुंडली मे होता है तो वक्ष स्थल के मजबूत होने की बात देखी जाती है लेकिन संतान के मामले मे यह युति स्त्री जातको को दिक्कत देने के लिये भी मानी जाती है। दसवे भाव मे यह युति होने से अक्सर जातक का का काम भूमि सम्बन्धी कामो से होता है जमीनी नाप जोख तथा जमीनी लेखा बन्धी के लिये भी माना जा सकता है।<br />
यह युति जमीनी व्यापार करने के लिये भी उत्तम मानी जाती है जैसे यह युति अगर अष्टम मे होती है तो जातक जमीनी व्यापार करने के लिये अपनी बुद्धि का अच्छा प्रयोग करता है लेकिन शर्त यह है कि जातक के लिये केतु भी अपना बल दे रहा हो। जातक व्यापार कार्य के लिये अपनी बुद्धि को अच्छी तरह से प्रयोग कर सकता है तथा खरीद बेच मे अपने को माहिर बना सकता है। जो भी जमीनी कार्य होते है उनके अन्दर जातक सफ़लता प्राप्त करता जाता है। अक्सर यह भी देखा जाता है कि इस युति मे जो भी भाई बहिन होते है उनके अन्दर एक भाई किसी प्रकार से आगे नही बढ पाता है और उसके लिये जीवन मे किये जाने वाले कार्य साधारण ही होते है वह कितनी ही मेहनत करे लेकिन वह सफ़ल नही हो पाता है,अगर बडा भाई या बहिन होती है,तो वह भी व्यापारिक कला मे जाना अच्छा समझता है। कुंडली मे शनि को पहले जन्मा हुआ माना जाता है इसलिये शनि को बडे भाई बहिन की उपाधि दी जाती है। अगर यह युति पंचम नवम और लगन मे होती है तो जातक का विवाह भी इसी काम से जुडे लोगो के साथ होता है। प्लास्टिक से जुडे काम प्लास्टिक को री साइकिल करने वाले काम टायर ट्यूब के काम गाडियों की सजावट के काम भी फ़ायदा देने वाले होते है। इस युति की किसी भी खराबी के लिये जातक को बच्चो को खिलौने दान मे देना चाहिये,अथवा जब भी कोई घर मे शनि वाला काम करे तो या कोई शनि से सम्बन्धित वस्तु घर मे लाये तो खिलौना आदि भी साथ मे लाने से वह वस्तु नुकसान नही देती है।</div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-4791305121339365422012-04-13T11:19:00.002+05:302012-04-13T11:19:51.676+05:3013 तारीख और शुक्रवार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRUnLllQRIb3ny_De1hYnaNM3z_n69DE_HJMTyNmcWl7V5psUY_zzbmzif-lXe5_O9vI-x9KIbFaefUSDWj8Bk5kzB1aDCIbNAOYQNw6iJdJFe-5TInPYZyFYnWNyvdX4FmG_mmZPRBTnC/s1600/13.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="317" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRUnLllQRIb3ny_De1hYnaNM3z_n69DE_HJMTyNmcWl7V5psUY_zzbmzif-lXe5_O9vI-x9KIbFaefUSDWj8Bk5kzB1aDCIbNAOYQNw6iJdJFe-5TInPYZyFYnWNyvdX4FmG_mmZPRBTnC/s400/13.jpg" width="400" /></a></div>
नम्बर तेरह को अक्सर बुरी नजर से देखा जाता है लोग अपने मकान के नम्बर को भी नम्बर को भी तेरह के साथ जोड कर नही रखना चाहते है किसी होटल आदि मे जाना हो तो आप देख सकते है नम्बर तेरह का कमरा बडी मुश्किल से देखने को मिलता है। हिब्रू ने भी बडी तन्मयता से इस नम्बर के बारे मे लिखा है कि एक नरकंकाल जो मनुष्यों के रूप की फ़सल को काट रहा है,नर कंकाल के हाथ में एक हंसिया है और वह मनुष्यों के सिर को काटने का उपक्रम कर रहा है। आज के ही दिन भारत मे जलियांवाला कांड हुआ था और जनरल डायर जिसकी वास्तविक जन्म तारीख तेरह ही थी,और उस दिन शुक्रवार का ही दिन था। वैसे इतिहासिक रूप से उसकी जन्म तारीख नौ अक्टूबर अठारह सौ चौसठ बताई गयी है,वास्तविक जन्म तारीख १३ नवम्बर १८६३ मिलती है.तुला राशि का सूर्य मंगल गुरु बुध था तथा वृश्चिक राशि का चन्द्रमा और राहु तथा वृष राशि का केतु गन पाइंट से भीड की हत्या करने के लिये एक दुरात्मा की तरह से काम करता है। अक्सर इस दिन पैदा होने वाले लोग मारक शक्ति को लेकर पैदा होते है लेकिन यह वही लोग होते है जो सामाजिक व्यवस्था से दूर होते है और मनमर्जी के अधिकारी भी माने जाते है धर्म कर्म संस्कार आदि जिनके वश की बात नही होती है। यह दिन कई देशो मे बहुत ही प्रसन्नता से मनाये जाता है और कई देशो मे यह भूतो का दिन माना जाता है लेकिन जहां संस्कार और विद्या का प्रयोग करना आता है उन स्थानो मे यह बहुत ही शुभता की द्रिष्टि से मनाया जाता है। अंक तेरह का योग चार मे आता है और चार का अंक भारतीय गणना के अनुसार केतु की परिभाषा मे आता है,केतु को साधनो का कारक और गणेश जी के रूप मे पूजा जाना भी माना जाता है शुक्र को लक्ष्मी का रूप दिया गया है और इस दिन को गणेश लक्ष्मी का दिन भी कहा जाता है। यह बात हिन्दी और पाश्चात्य पद्धति से उत्तम मिलान भी माना जाता है।<br />
इस जो लोग तांत्रिक कारणो को समझते है और उनका प्रयोग करना जानते है वे लोग तांत्रिक वस्तुओं की स्थापना भी करते है,तेरह अप्रैल को यह तारीख और दिन आने से तथा सूर्य का बारहवा स्थान बदलने के बाद मेष राशि मे आने से भी यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन लोग केतु से सम्बन्धित तांत्रिक वस्तुओ को स्थापित करने से भी उनकी अद्रश्य शक्ति से सफ़लताओ का मिलना जाना जाता है। लोग आज के दिन दक्षिणावर्ती शंख हड्डी तथा नाखून से बनी वस्तुये केतकी जडी कांटे और वनस्पति जगत की तांत्रिक वस्तुये स्थापित करते है। आज के दिन नाव की कील से बने छल्ले शनि सम्बन्धित तकलीफ़ो जैसे जोडों के दर्द शरीर मे चर्बी का इकट्ठा हो जाना पेशाब वाली बीमारिया हो जाना आदि रोगो के लिये सही माने जाते है।<br />
<br /></div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-45090001669570328322012-04-13T09:32:00.002+05:302012-04-13T09:32:43.639+05:30जिन्ह खोजा तिन्ह पाइयां !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9vMcbUwtezRII4kFYzBKVxdpj3eqa1P704huL1jym0Gw8BRihj_umJm06GLKH-tWNrMQBv1lQR5YN_mfBaGjBdmMkbKzDiRfS-eAobApXd2ZjiYQlwReQNAQPinwbUvImD_oUyWa67WCf/s1600/kundli.gif" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="254" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9vMcbUwtezRII4kFYzBKVxdpj3eqa1P704huL1jym0Gw8BRihj_umJm06GLKH-tWNrMQBv1lQR5YN_mfBaGjBdmMkbKzDiRfS-eAobApXd2ZjiYQlwReQNAQPinwbUvImD_oUyWa67WCf/s320/kundli.gif" width="320" /></a></div>
प्रस्तुत कुंडली सिंह लगन की है स्वामी सूर्य है पंचमेश और अष्टमेश गुरु के साथ मे चौथे भाव मे विराजमान है.सूर्य को बल केवल गुरु का मिला है और बाकी के ग्रह अपना अपना बल केवल अन्य भावो को दे रहे है। चन्द्र राशि कन्या है स्वामी बुध है बुध का साथ भी चन्द्रमा से चौथे भाव मे शुक्र और केतु के साथ है.लगनेश सूर्य चन्द्र लगनेश बुध के अनुसार ही जातक का जीवन का सफ़र माना जाता है। लगनेश के भाव के मालिक मंगल छठे भाव मे है और लगनेश से तीसरे भाव मे होने से जातक की पराक्रम शक्ति का बखान करते है,चन्द्र लगनेश के भाव के मालिक गुरु चन्द्र लगनेश से बारहवे भाव मे सूर्य के साथ बैठ कर मानसिक गति की सीमा का विवेचन करते है.कार्य के मालिक शुक्र है,शुक्र का स्थान कार्य स्थान से अष्टम मे है और कार्येश के भाव के मालिक भी कार्येश से बारहवे भाव मे सूर्य के साथ विराज रहे है.धनेश भी बुध है और धनेश के भाव के मालिक भी धनेश से बारहवे भाव मे अपना स्थान बनाकर बैठे है.तुला के शनि ने कार्येश और धनेश को बल दिया है,केतु ने साथ रहकर और राहु ने लाभ भाव मे अपनी स्थिति को देकर धनेश और कार्यश के साथ अपना सहयोग दिया है.<br />
कुन्डली मे शनि उच्च का है मंगल उच्च का है राहु केतु दोनो उच्च के है इसलिये जीवन मे शक्ति और कार्य तथा कार्य करने का तरीका और कार्य का विस्तार बडे रूप मे देखा जा सकता है।<br />
धन का कार्य और सेवा वाला कार्य जो मृत्यु के बाद की सम्पत्ति को सम्भालने का हो या मृत्यु के डर से किये जाने वाले कार्य जैसे बीमा बचत विदेशी कम्पनी के साथ मिलकर किये जाने वाले कार्य,भी उच्च के मंगल से सही माने जा सक्ते है,जो भी कार्य प्लान बनाकर किये जाते है उनके अन्दर सफ़लता नही मिलती है,जो भी सफ़लता के कारण माने जाते है वह रास्ता चलते कार्यों का सिद्ध होना माना जाता है,कार्य व्यापारिक रूप से किये जाने का कारण भी मिलता है बडे भाई या मित्र के सहयोग से भी माना जाता है दूसरे पत्नी की सहायता से भी माना जा सकता है,बेलेन्स बनाकर कार्य भी करने का असर मिलने की बात मानी जा सकती है,पिता की मृत्यु के बाद मिलने वाली नौकरी के लिये भी गुरु सूर्य अपना असर दे रहे है पिता की त्यागी हुयी सम्पत्ति को भी इकट्ठा करने की और उससे जीवन यापन करने की शक्तिको माना जा सकता है,कालेज शिक्षा का कारक गुरु मृत्यु भाव मे होने से भी सरकारी सहायता से चलने वाले शिक्षा संस्थान से भी पत्नी की सहायता से कार्य करना माना जाता है.जीवन साथी का कारक शुक्र जब केतु और बुध के प्रभाव मे होता है तो न्याय वाले कार्य भी माने जाते है जमीनी नाप जोख के कार्य भी मिलते है,कानूनी कामो के लिये शनि भी अपनी योग्यता को प्रदान करने वाला होता है,बुध ज्योतिष का भी कारक है केतु संस्था प्रधान के लिये भी अपनी युति को प्रदान करता है,शादी विवाह का आयोजन और रहने ठहराने के कार्यों से भी आय का माना जाना उचित है.नेट वर्किंग और व्यापारिक रूप से कमन्यूकेशन के काम भी करने का कारण बन जाता है,लेकिन प्राथमिक रूप से अस्प्ताली कामो मे लिप्त रहना या पिता अथवा पिता परिवार के लोगो के लिये कार्य करना भी माना जा सकता है।<br />
शादी के बाद से ही धन की स्थिति का होना माना जाता है,पारिवारिक कारणो से अथवा ससुराल खानदान की सहायता से जमीन जायदाद का मिलन अभी गुरु के अनुसार माना जा सकता है,यही प्रकार उल्टे होने से पत्नी और पत्नी कृत मामले मे न्याय मे जाना भी माना जा सकता है जहां धन खर्च होने की बात भी समझ मे आती है। धन का मिलना न्याय शिक्षा विदेशी सम्बन्ध यात्रा वाले कारण विदेशी बैंक विदेशी कम्पनी ऐजेन्सी का बनाकर चलना ब्रोकर वाले काम शेयर कमोडिटी के काम उत्तम फ़ल देने वाले माने जाते है। </div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-62111910172002179422012-04-12T12:27:00.001+05:302012-04-12T12:27:42.518+05:30जीवन मे राशियों का प्रभाव (मिथुन)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjqLAc0ykXNOekLQfmyD2i5wqvrdgjSMbqQEw8FqYMYL2PxCc3wn7Rcg2B0k4yPMoeT7gXItPJ8pvXo-aroz6vIZLC7FjPQL69vYeJ_UMTV_bRhU5PeqaodvaMLPwEelX8T-hezpInJcXHJ/s1600/Astrobhadauria051.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="224" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjqLAc0ykXNOekLQfmyD2i5wqvrdgjSMbqQEw8FqYMYL2PxCc3wn7Rcg2B0k4yPMoeT7gXItPJ8pvXo-aroz6vIZLC7FjPQL69vYeJ_UMTV_bRhU5PeqaodvaMLPwEelX8T-hezpInJcXHJ/s320/Astrobhadauria051.jpg" width="320" /></a></div>
मिथुन राशि भचक्र की तीसरी राशि है,यह बुध की सकारात्मक राशि है,कालपुरुष की पहिचान की कारक है,समय के आपसी मिलन का दिन रात का संगम अच्छे बुरे के बीच का समय शरीर मे आगे और पीछे की पहिचान लिखने मे शब्द और भावना का प्रतिरूप चित्र मे बैक ग्राउंड और वास्तविक चित्र के मिलने का स्थान कही हुई बात के बीच मे सोची जाने वाली स्थिति,धन के मामले मे प्राप्त करने और खर्च करने की स्थिति सम्बन्ध के मामले मे सम्बन्ध के बनने और बिगडने के मध्य की स्थिति,प्राप्त किये जाने वाले सुख और दुख के बीच का समय धनी से निर्धन बनने और निर्धन से धनी बनने के बीच के कारको का ज्ञान धरती और आकास के मिलने का स्थान,सूर्योदय के समय दिन और रात का संगम तथा रात होने और दिन चुपने के बीच का समय आदि इस राशि के क्षेत्र की सीमा मे आता है।<br />
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बच्चे के पैदा होने के तुरत बद यह राशि अपना असर देती है जैसे लडका है लडकी गोरी है काली सुन्दर है या बदसूरत है आदि बातो का भान भी इसी राशि के क्षेत्र मे आता है। यह राशि किसी भी कारक की पहिचान बताने वाली राशि है अगर इस राशि का महत्व जीवन से हटा दिया जाये तो जीवन बिना पहिचान के नीरस हो जायेगा। देखकर महसूस करने के बाद सूंघ कर स्वाद लेकर जो भी मानसिक भावना बनती है उस बीच की कडी यह मिथुन राशि ही है,यह राशि भचक्र की राशियॊं मे जनम के समय जितनी दूर होती है उतनी ही देर मे समझ जातक के अन्दर आती है। कर्क राशि वालो के लिये अक्सर कहा जाता है कि जीवन के आखिरी मे उन्हे दुनियादारी की पहिचान होती है इसका भी एक कारण है कि मिथुन राशि उनके बारहवे भाव मे होती है। इसी प्रकार से कहा जाता है कि वृष राशि वाले दुनियादारी को बहुत जल्दी समझने लगते है इसका भी कारण होता है कि इस राशि के आगे मिथुन राशि का ही रूप है।<br />
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यह राशि वष राशि वालो के लिये अच्छे या बुरे प्रभाव फ़टाफ़ट देने वाली होती है,तथा सिंह राशि का साथ देने के लिये यह धन से भी और लाभ से भी हमेशा साथ देती रहने के लिये जानी जाती है। वृश्चिक राशि वालो के लिये यह हमेशा ही अपमान देने के लिये देखी जाती है जबकि मकर राशि जन्म से इस राशि के दुश्मन होते है। कुम्भ राशि वालो के लिये प्यार मोहब्बत पैदा करने के लिये जानी जाती है और मीन राशि वाले इसी राशि की मानसिकता को धारण करने वाले होते है। धनु राशि का आमना सामना इसी राशि से होता है और तुला राशि के लिये भाग्य की राशि मिथुन ही होती है। मेष राशि वाले इसी राशि की सहायता से अपनी पहिचान बना पाते है और इसी राशि की सहायता से अपने भावो को प्रकट करने के लिये अपनी योग्यता को प्राप्त कर पाते है। भावनाओ को प्रकट करने का बल मिथुन राशि मेष राशि वालो को देती है और वही भावना का प्रकट करने का बल मेष राशि वालो के बच्चो को और जल्दी से फ़ायदा देने के लिये लाभ मे आजाती है।<br />
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किसी भी भाषा का सीखना मिथुन राशि की सहायता के बिना नही हो सकता है कोई भी अध्यापक बिना इस राशि का प्रयोग किये शिक्षा भी नही दे सकता है साथ ही कोई भी खिलाडी हीरो हीरोइन अपने करतब को मिथुन राशि की सहायता के बिना प्रस्तुत नही कर सकते है,स्टंट दिखाने वाले लोग भी अपनी कला को इस राशि के प्रभाव से ही दिखाते है,कोई भी चित्र बिना मिथुन राशि के प्रभाव से नही बन सकता है और जब भी मन की भावना को सामने रखने का कारण बनता है इसी राशि की सहायता से ही भावना को प्रस्तुत किया जाता है। रोना हंसना गाना बजाना मजाक करना चलना फ़िरना उठना बैठना आदि मिथुन राशि के द्वारा ही पहिचान मे आते है,किसी भवन का नक्सा भी मिथुन राशि की बदौलत ही बनता है साथ ही किसी साज सज्जा को बनाने के लिये भी मिथुन राशि का प्रयोग किया जाता है। भोजनालय की प्रसंशा भी मिथुन राशि की बदौलत मिलती है तो जीवन मे सफ़ल या असफ़ल होने की धारणा ही मिथुन राशि ही बनाती है।<br />
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मिथुन राशि समय पर स्त्री भी है और समय पर पुरुष भी है समय पर यह नपुंसक का रूप भी प्रस्तुत करती है,समय पर यह धनी बने होने का ख्याव भी देती है और समय पर यह निर्धन होने और कुछ भी पास मे नही होने का असर भी देती है। बिना मिथुन राशि की सहायता से कोई भी जोखिम से बचकर नही निकल सकता है और मिथुन राशि की बदौलत ही लोग जोखिम लेने के लिये भी तैयार हो जाते है। मिथुन राशि के सहयोग के बिना स्त्री पुरुष का संयोग भी नही हो सकता है और संसार के जीवन चक्र को चलाने को चलाने के लिये मिथुन राशि का ही सहारा लेना पडता है। यह राशि पेड के अन्दर जडों के रूप मे अन्धेरे मे रहकर पेड की परवरिस करने वाली है तो फ़ल के रूप मे पेड की महिमा का गुणगान करने वाली है लकडी के रूप मे यह कठोर भी है तो फ़ूल के रूप मे मुलायम भी है,हरे पत्तो के रूप मे पेड की खुशहाली को भी दर्शाती है और पीले पत्तो के रूप मे पेड की समाप्ति की घोषणा यह मिथुन राशि ही करती है। मिथुन राशि सौम्य बनकर समाज मे स्थान भी दिलवाती है और कठोर बनकर समाज से उत्पीडित भी करती है। प्यार भरी बाते बनकर मिथुन राशि मन में चासनी भी बनाती है और डरावनी बातो से यह ह्रदय को सशंकित भी करती है। पुत्र बनकर खुद की वंशावली को आगे भी बढाती है और पुत्री बनकर मिथुन राशि दूसरो के वंश को बढाने के लिये भी अपनी योग्यता को जाहिर करती है। सुन्दर लेख बनकर यह कलाकारी की योग्यता को बताती है तो खराब लेखनी के कारण तिरस्कृत भी करती है। अंग्रेजी के अक्षर Z का रूप भी मिथुन राशि से देखा जाता है यह ऊपर रहकर सबकी रक्षा करने के लिये भी है तो अपने अन्दरूनी भावो के अनुसार यह समाप्त भी कर सकती है,यही भावना मिथुन राशि के लिये मानी जाती है कि यह अपने को क्वारा बनकर मशहूर भी बनाती है लेकिन गुप्त सम्बन्धो से यह कामुकता की शांति भी करने के लिये सामने होती है।यह स्वभाव को कठोर तो स्वभाव को मृदु बनाने के लिये भी अपनी योग्यता को सामने रखती है। मिथुन राशि का रूप सुदर्शन जीवन जीने के लिये देखा जाता है तो उस सुदर्शन जीवन के पीछे दुर्गुणो का भंडारण भी देखा जा सकता है.<br />
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मिथुन राशि अपने सामने भावना की राशि कर्क को रखती है यह राशि अक्समात हंस भी सकती है तो अक्समात ही रो भी सकती है,मिथुन राशि जनता से अपना सम्बन्ध स्थापित करके रखती है,जनता के बिना मिथुन राशि का कोई आस्तित्व नही है। मुंह पर कोमलता हाव भाव मे स्वाभिमान कर्जा दुशमनी बीमारी पालने की मानसिक सोच प्यार मोहब्बत और खेल कूद रोमांश मे बेलेन्स करने के बाद चलने वाली गुप्त काम और गुप्त भेद जानने वाली आजीवन जवान दिखने वाली धर्म भाग्य नैतिकता न्याय से विरुद्ध काम करने वाली और सोचने वाली लेकिन इन्ही से अपने जीवन को चलाने वाली मानी जाती है। मिथुन राशि किसी भी कार्य मे पिता के प्रति मकान के पीछे के हिस्से के प्रति रिस्क ले सकती है। यह मित्रता को ही अपना भाग्य मानने वाली और मित्रो से ही अटकने पर काम निकालने वाली होती है,इसे छोटे काम अच्छे नही लगते है उन्ही कामो को करने का मन हमेशा रहता है जो बडे हो और किसी भी काम करने के बाद दुबारा से उस काम को करना नही पडे। यह इंसानी मित्रता को अपना फ़र्ज मानती है,साथ ही धन और धनी लोगो के लिये खतरनाक भी मानी जाती है अक्सर धनी लोगो की कैसे ऐसी की तैसी की जाये इस बात का ख्याल मिथुन राशि वालो के लिये रहता है।<br />
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इस राशि के सुख दुख के प्रभावो मे अक्सर देखा जाता है कि यह दुख के समय कमन्यूकेशन के साधन प्राप्त करने और सुख के समय मे कमन्यूकेशन के साधन दूसरो को लेने देने मे अपने सुख दुख को घटा बढा सकते है। </div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-68517159457260098632012-04-12T10:58:00.001+05:302012-04-12T10:58:56.835+05:30भाग्य में मंगल शुक्र सुख चैन में पाबंदी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi3Xyyy0A-Rr00LLsyGOyoKw5KVeCeZfgUJqFb91-OifHTX7W9ZTLIwpR6S85v41de7KDVLtgxRwJPMNUTlkknWSPJhEw-DgV_Ht39YDGhBove7cvLSGP4N8Eu2Vhqdv_Ci7GykUc_Ba0aX/s1600/kundli.gif" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="254" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi3Xyyy0A-Rr00LLsyGOyoKw5KVeCeZfgUJqFb91-OifHTX7W9ZTLIwpR6S85v41de7KDVLtgxRwJPMNUTlkknWSPJhEw-DgV_Ht39YDGhBove7cvLSGP4N8Eu2Vhqdv_Ci7GykUc_Ba0aX/s320/kundli.gif" width="320" /></a></div>
प्रस्तुत कुंडली सिंह लगन की है लगनेश सूर्य अष्टम मे विराजमान है,भाग्य मे भाग्येश और सुखेश मंगल के साथ तृतीयेश और कार्येश शुक्र विराजमान है.जीवन साथी के भाव पर केतु और राहु की पूरी द्रिष्टि है जीवन साथी के भाव से आगे सूर्य और बुध है.पुरुष कुंडली होने के कारण जीवन साथी का कारक शुक्र है और जीवन साथी का मालिक शनि तीसरे भाव मे बैठ कर वक्री हो गया है,तुला राशि का शनि उच्च का होता है लेकिन वक्री होने के कारण नीच का प्रभाव देने लगा है,राहु और केतु दोनो ही उच्च के है लेकिन केतु का पंचम भाव मे होना और राहु का ग्यारहवे भाव मे होना जातक के लिये किसी भी समस्या से जूझने के लिये खुद का निर्णय मायना नही रखता है। पंचमेश जो मंत्रणा के लिये जाने जाते है बारहवे भाव के स्वामी चन्द्रमा के साथ जब सुख भाव मे वक्री होकर बैठ जाते है तो जो भी कारण मंत्रणा मे बताया जाये वह अस्थिर ही रहता है और खुद की दी जाने वाली राय कोई मायना नही रखती है। सूर्य का स्थान अष्टम मे होने के कारण और धनेश तथा लाभेश का स्थान भी सूर्य के साथ होने से जीवन मे गुप्त ज्ञान प्राप्त करने और अस्पताली दवाइयों आंखो ह्रदय सम्बन्धी बीमारी बाहर के लोग यात्रा और इसी प्रकार के कामो के अन्दर जातक का ध्यान रहना भी माना जाता है.वक्री गुरु होने के कारण जातक का कार्य करने का स्थान और रहने का स्थान भी मंगल से कन्ट्रोल रहने के कारण या तो पिता और पिता की सम्पत्ति पर निर्भर होता है या पत्नी और पत्नी के कार्यों पर निर्भर रहता है। भाग्य से नवे भाव मे केतु होने के कारण और केतु का शिक्षा तथा बुद्धि के भाव मे होने पर कालेज शिक्षा या स्कूली शिक्षा से जुडा हुआ होना भी माना जाता है लगनेश के साथ बुध होने से ज्योतिष और विचित्र विद्याओं से सम्बन्धित बाते भी जानी जा सकती है। मंगल की नजर बारहवे भाव मे होने से यात्रा और खर्चे पर अंकुश होता है तथा मंगल की अष्टम नजर चौथे भाव मे गुरु और चन्द्रमा पर होने के कारण जातक आने जाने के समय किसी स्थान पर रुकने के समय मिलने वाले सुख के समय भी कन्ट्रोल मे रहना जरूरी है.पारिवारिक कारणो से भी खुद के दिमाग को प्रयोग करने मे जनता से जुडने मे दिक्कत का कारण माना जा सकता है। एक पुत्र की पैदाइस भी आपरेशन के बाद मानी जा सकती है खुद के लिये भी यही बात मानी जाती है वैसे पूरे परिवार की जिम्मेदारी और रीति रिवाजो को चलाने के लिये तथा सामाजिक खर्चो को करने के लिये भी यह केतु और मंगल शुक्र की युति अपना असर देती है। केतु का भाग्य मे अवरोध भी करना माना जा सकता है जैसे केतु से चौथे भाव मे सूर्य बुध के होने से जातक की बुद्धि से किसी एन जी ओ जैसी संस्था को चलाना और गुप्त रूप से धन का प्राप्त करते रहना उस धन से शिक्षा संस्थानो और जनता के बीच की बुद्धि वाली प्रक्रिया को विदेशी सहयोग से चलाना आदि। जातक के भाग्य के भाव को वक्री शनि के द्वारा देखे जाने तथा मंगल के स्वयं ही भाग्य भाव मे बैठ जाने से जातक को अपने समाज परिवार और मर्यादा से दूर जाना भी मिलता है यानी जो कार्य परिवार समाज और घर मे पहले से होते रहे हो उनके अन्दर बदलाव लाकर आधुनिकता मे आगे ले जाना,तथा यही बात गुप्त बातो के लिये भी मानी जाती है जैसे किसी शिक्षा आदि को बहुत जल्दी से प्राप्त कर लेना लेकिन उस शिक्षा का सही रूप मे उपयोग नही हो पाना कारण मंगल और वक्री शनि के कारण पितृ दोष का पैदा हो जाना,इस दोष से जो भी भाग्य से प्राप्त होता है वह कार्य के आखिरी मे सामने आना और असफ़लता का सामना करना आदि। जातक के लिये भ्रम मे जाने का समय भी माना जा सकता है जैसे राहु का गोचर पिछले अट्ठाइस महिने से पंचम चौथे भाव मे हो रहा है और आगे के अट्ठाइस महिने ही और होना है इस प्रकार से जातक के लिये जो सुनहरा अवसर कार्य और कार्य के फ़ल प्राप्त करने का है वह भटकाव वाले दिमाग के कारण सही स्थिति मे नही जा पाना और विदेशी तथा घरेलू कारणो के प्रति हमेशा ही किसी न किसी बात से असमंजस मे रहना आदि भी देखा जा सकता है। मिथुन का राहु पराक्रमी बनाता है लेकिन जब राहु गलत राशि के साथ गोचर मे आजाता है तो जातक को बहाना बना कर काम निकालना झूठ बोलना और एक से अधिक लोगो के साथ मंत्रणा करने के बाद खुद को भी कनफ़्यूजन मे रखना और क्या सही है क्या गलत है का निर्णय भी नही ले पाना आदि कारण बन जाते है,जैसे कि इस समय राहु जन्म के चन्द्रमा और जन्म के वक्री गुरु के साथ अपना गोचर कर रहा है इसलिये जातक का दिमागी हाल और दिमाग से रोज कुआ खोदना रोज पानी पीना आदि की बातो मे भी राहु अपनी गति को इतना कनफ़्यूजन मे डाल कर रखता है कि जातक को यह पता ही नही चल पाता है कि वह क्या कर रहा है इसका फ़ल आगे क्या मिलेगा और जो फ़ल मिलेगा उसे वह उपभोग मे ले सकता है कि नही आदि। राहु जब चौथे भाव मे गोचर करता है और चन्द्रमा के साथ गोचर करता है तो घर मे ही अपमान का होना माना जाता है अपने ही लोग उसे अपमान देने लगते है और उस अपमान के कारणो को वह किसी से कह भी नही सकता है अपने मन के अन्दर ही घोंट कर रह जाना और जब भी कोई इच्छा हो उस इच्छा का दमन अपने ही अन्दर कर लेना आदि भी माना जा सकता है।<br />
इस राहु के कारण जातक को अनौखी चीजो को खरीदने बेचने के लिये प्रयास करना भी माना जाता है वह अदभुत चीजो की तरफ़ आकर्षित भी होता है और इन चीजो को खरीदने बेचने के कामो के अन्दर अपने को ले भी जाता है उसे लगता है कि बहुत अच्छी फ़ायदा वाली बात है रिस्क भी लेता है और जब फ़ायदे के स्थान पर पहुंचता है तो वहां केवल आशंकाओ के अलावा और कुछ दिखाई भी नही देता है। जातक के इस भाव मे राहु के आने से जातक जनता को करतब दिखाने की कला का भी प्रयोग करता है और उस करतब दिखाने की कला मे जातक के लिये कई प्रकार के दैवीय और राक्षसी कारण भी बन सकते है अधिक कारणो को प्रयोग करने के कारण शरीर के अन्दर एल्कोहल की मात्रा भी पैदा हो जाती है और जातक अक्सर पेशाब वाली बीमारियों से परेशान भी होना देखा जा सकता है,अथवा यौन रोगो की तरफ़ भी जातक का जाना हो सकता है। यह सब पराशक्तियों के छेडने और उनसे कार्य लेने के लिये अपनी अधूरी विद्या को प्रयोग करने के कारण भी होता है। जातक के साथ काम करने के लिये दोहरे साधन होते है वह साधन इतने या व्यक्ति इतने कार्यों को सामने करते है कि जातक को यह लगता है कि वह किसी प्रकार से फ़्री नही है वह अपने को कभी कभी तो इतना कार्यों मे लगा लेता है कि उसे होश भी नही रहता है कि बाकी के काम और करने है साथ ही यह भी होता है कि वह कभी कभी यह भी सोचने लगता है कि कोई काम भी नही है या जो भी वह कर रहा है वह बेकार का काम है और उस काम को करने से कोई फ़ायदा भी नही है। जातक के भाग्य को बढाने के लिये केतकी जडी की नौ फ़ांके चांदी के ताबीज मे रखकर सोमवार को गले मे धारण करने से जो साधन धन और सुख देने के आडे आते है उनके अन्दर फ़ायदा होना भी माना जा सकता है। </div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-59245153478187004162012-04-11T13:03:00.002+05:302012-04-11T13:03:49.101+05:30शनि देव पर तेल चढाना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://chalisa.co.in/wp-content/uploads/2011/07/shani-chalisa.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="http://chalisa.co.in/wp-content/uploads/2011/07/shani-chalisa.jpg" width="292" /></a></div>
जब कोई भी ग्रह अपने खराब फ़ल को प्रदान करता है तो ज्योतिषी अपने अनुसार उस ग्रह के बारे मे उपाय बताने लगते है। इन्ही उपायों मे एक उपाय है शनि पर तेल चढाना,इस उपाय का वास्तविक कारण और मिलने वाले फ़लो के बारे मे विस्तार से जानना जरूरी है।<br />
शनि ग्रह कठोर और ठंडे स्वभाव के लिये कहा गया है,शनि की द्शा अन्तर्दशा मे शनि के गोचर मे साढे शाती के समय मे शनि अपने फ़लो को देता है,इन फ़लो मे वह जातक को कठोर जीवन जीने और विषम परिस्थितियों मे रहने तथा काम करने की बुद्धि को भी प्रदान करता है और स्वविवेक से जीवन जीने के लिये भी अपने अनुसार परिस्थिति को प्रदान करता है।लाखो किस्से कहानिया आपबीती आदि बाते पढने और सुनने को मिलती है। मैने अपने इस पचपन साल की उम्र मे शनि की दशा को भी भोगा है अन्य ग्रहो के साथ की अन्तर्दशा को भी भोगा है साढेशाती भी भोगी है और शनि को नजदीक से पहिचाना भी है। शनि करके सिखाने वाला ग्रह है जैसे स्कूल कालेज मे पढा भी जाता है और करके सीखा भी जाता है प्रेक्टिकल नाम की शिक्षा करके सीखने की क्रिया ही मानी जाती है। केवल पढने से और देखने से कोई भी काम नही किया जा सकता है जब उस काम को करने के लिये मानस नही बने और काम को किया नही जायेगा वह किसी भी प्रकार से न तो दिमाग मे बैठेगा और न ही किये गये काम का उचित फ़ल ही मिल पायेगा। शनि की कठोरता को समझने के लिये किये जाने वाले काम का रूप और काम को करने के प्रति लगाव तथा काम करने के लिये प्रयोग की जाने वाली शक्ति का प्रयोग जानना जरूरी होता है। किसी काम को नही करने और बिना किये ही उसका फ़ल प्राप्त होने का मतलब है कि मन के अन्दर या शरीर के अन्दर कार्य करने की क्षमता का विकास नही हो पाया है और उस कारण को एक प्रकार से ऐसे भी जाना जाता है कि जो कार्य करना था उसके अन्दर अन्य कारको को सामने लाकर कार्य शक्ति का क्षीण हो जाना भी माना जाता है,यानी जो शक्ति कार्य करने मे लगानी थी उस शक्ति को अन्यत्र कहीं प्रयोग मे लाया गया है जो भी कार्य किया जा रहा है वह नही हो पा रहा है।<br />
<table cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="float: right; margin-left: 1em; text-align: right;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="http://fatpeopleeating.com/corndogeatingcontest_fatpeopleeating.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; margin-bottom: 1em; margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="320" src="http://fatpeopleeating.com/corndogeatingcontest_fatpeopleeating.jpg" width="261" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">शनि की वक्र द्रिष्टि</td></tr>
</tbody></table>
शक्ति को एकत्रित करने के लिये और शक्ति का प्रयोग करने के लिये तथा शक्ति को प्रयोग करने के बाद फ़लाफ़ल का भेद जानने के लिये खुद पर नियंत्रण करना जरूरी है। मिट्टी पत्थर लोहा आदि सभी जमीनी तत्व है इन जमीनी तत्वो को अन्दर ही तैलीय तत्व भी विद्यमान है,जैसे सरसों का तेल मूंगफ़ली का तेल कोई हवा मे उडकर तो आता नही है जमीन के अन्दर की गर्मी और जमीन के तत्वो का वैज्ञानिक विकास सरसों के दाने मे तेल भी लाता है और मूंगफ़ली के अन्दर भी तेल की मात्रा को प्रदान करता है। संसार का कोई भी अनाज लिया जाये सभी के अन्दर तैलीय पदार्थ यानी वसा का उपस्थित होना जरूरी होता है,किसी भी जीव को देखा जाये सभी के अन्दर वसा का होना देखा जाता है बिना वसा के या तैलीय पदार्थ के जीवन का रहना नही माना जाता है और जितना तैलीय पदार्थ शरीर अनाज फ़ल वनस्पति मे होता है उतनी ही वह शक्तिशाली भी होती है और अधिक दिन तक चलने वाली भी होती है। साधारण रूप से वसा या तैलीय पदार्थ को कठोर काम करने और अधिक समय तक काम करने के लिये प्रयोग मे लाना उचित माना जाता है लेकिन यह उन्ही लोगो के लिये माना जाता है जो शरीर से श्रम करने वाले होते है अगर किसी एसी मे बैठने वाले व्यक्ति को अधिक वसा या तैलीय पदार्थ का सेवन अधिक करवा दिया जाये या उसके अन्दर वसा की मात्रा अधिक हो जायेगी तो काम नही करने शरीर मे गर्मी नही पैदा करने के कारण वसा शरीर मे जगह जगह जम जायेगी और जो भी शरीर का तंत्रिका तंत्र है उसके कार्यों में अवरोध का पैदा होना हो जायेगा फ़लस्वरूप ह्रदय सम्बन्धी बीमारी आदि का होना शुरु हो जायेगा।<br />
जब शनि देव परेशान करते है तो मनुष्य को मेहनत करने का समय आता है,मेहनत करने का कारण भी जीवन के प्रति मिलने वाले फ़लो की प्राप्ति से जुडा होता है। जैसे पेड पौधे जीव जन्तु आहार विहार से तैलीय पदार्थो को प्राप्त करते रहते है वैसे ही मनुष्य भी आहार विहार और भोजन आदि से चिकनाई प्राप्त करता रहता है,शरीर मे जितनी चिकनाई को प्रयोग करने की क्षमता होती है उतना वह प्रयोग मे ले लेता है बाकी का हिस्सा उसे जहां खाली जगह मिलती है जमा कर लेता है,जब उसे कहीं जमा करने की जगह नही मिलती है तो वह खाल को बढाकर खाली जगह मे चर्बी को इकट्ठा कर देता है। यह बात अक्सर उन लोगो के अन्दर देखी जाती है जो बैठे रहते है दिमागी काम को करते है और ठंडे माहौल मे रहते है। यह चर्बी यानी वसा उन्हे शरीर के अन्दर अधिक ठंड से बचाने और शरीर का तापमान नियंत्रित करने के काम भी आता है,साथ ही भूख प्यास मे शरीर को मिलने वाली ऊर्जा को भी प्रदान करने के काम आता है जैसे समय कुसमय भोजन आदि नही मिलता है पानी नही मिलता है तो यह चर्बी अपनी पूर्ति से प्यास और भूख को पूर्ति मे लाती है। इस बात के लिये जीवो के अन्दर आप देख सकते है कि उत्तरी धुर्वीय प्रदेशो मे रहने वाले जीव सील वालरस आदि अपनी चर्बी की सहायता से बर्फ़ के जमे रहने तक बिना कुछ खाये पिये तापमान के प्रभाव को झेलते रहते है,ठंडे प्रदेश मे रहने वाले लोग जीवो का आहार करते रहते है कारण उन्हे वनस्पति की अपेक्षा जीव के अन्दर से अधिक वसा मिल जाती है और वे अपने जीवन को सुचारु रूप से चलाते रहते है इसलिये ही ठंडे प्रदेशो मे रहने वाले लोग मांसाहारी अधिक मात्रा मे होते है। इसी प्रकार से गर्म प्रदेशो मे भी चर्बी का प्रयोग प्यास को शांत रखने के लिये किया जाता है,जैसे रेगिस्तानी इलाको मे भी अधिक घी और तेल का प्रयोग किया जाता है साथ ही ऊंट इसका अच्छा उदाहरण है वह कई दिनो तक बिना पानी को पिये रह सकता है।<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_eBo2a3lhPG5MfR2WOCKx5P9haIBvXzjkqAgLiax5IHbUCBG_DMm6HQwZ2T2vov3kNAygJ0petVJTJsQRPTNxst9kYBFVZIfSN96fSSQuGj1RFTCDdCC6zBuLrG6Ves2RlA7o3orLRnA/s1600/india+child+labor.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="290" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_eBo2a3lhPG5MfR2WOCKx5P9haIBvXzjkqAgLiax5IHbUCBG_DMm6HQwZ2T2vov3kNAygJ0petVJTJsQRPTNxst9kYBFVZIfSN96fSSQuGj1RFTCDdCC6zBuLrG6Ves2RlA7o3orLRnA/s320/india+child+labor.jpg" width="320" /></a></div>
मनुष्य के शरीर मे जब अधिक वसा एकत्रित हो जाती है तो वह कार्य करने मे आलस का भाव ले आता है वह और अधिक सुस्त होता चला जाता है उसे किसी प्रकार से भी काम करने का मन नही करता है,जब शरीर की ग्रंथिया शिथिल हो जाती है तो यह भी जरूरी है कि शरीर का तंत्र भी गडबडा जाता है,इस गडबड मे और आलस के अधिक आने से न तो शरीर ही काम करता है और न ही दिमाग ही काम करता है कारण दिमाग भी शरीर के अनुसार ही काम करता है जितना शरीर बिना चर्बी के होता है उतना ही वह गर्म भी होता है और कार्य करने के अन्दर उत्तेजना भी आती है कार्य के अन्दर फ़ुर्ती भी आती है लेकिन अधिक कमजोरी के कारण गुस्से की मात्रा भी बढ जाती है। अक्सर यह भी देखा होगा कि जो लोग अधिक भारी होते है और शरीर से बलवान होते है उन्हे गुस्सा आती ही नही है या आती है तो जरा सी देर के लिये आती है,जितना अधिक शरीर बलवान होता है भारी होता है बुद्धि की कमी आजाती है,जितना शरीर हल्का होता है बुद्धि भी उतना ही काम करती है। जब आलस आता है तो चर्बी को घटाने की जरूरत पडती है,उस चर्बी को मेहनत करने के द्वारा ही घटाया जा सकता है शरीर को चलाने फ़िराने से चर्बी घट सकती है इसी लिये जिन लोगो के पास कोई काम नही होता है या दिमागी काम को करने वाले होते है उन्हे योग व्यायाम आदि करने की सलाह दी जाती है विभिन्न हिस्सो की चर्बी को हटाने और य्ववस्थित रखने के लिये योगो के कई रूप बनाये गये है.जब शरीर मे चर्बी की मात्रा का फ़ैलाव अधिक हो जाता है तो काम नही बन पाते है और उन कामो के नही बनने का कारण यह भी होता है कि आलस का आना समय पर क्रिया को पूरा नही कर पाना उचित समय पर उचित काम को नही करपाना आदि। इस प्रकार की बाते होने पर शरीर को जो तैलीय पदार्थ सेवन करने के लिये कहे गये है उनके अन्दर कमी कर दी जाती है। अक्सर मनुष्य की भावना जोड कर रखने और नियमित रूप से हर वस्तु को प्रयोग करने की होती है,उसी प्रकार से घर के अन्दर रसोई के अन्दर तैलीय पदार्थ भी रखे जाते है जब घर के अन्दर रखे हुये है और पूडी बनाकर खाने की इच्छा होगी तो वह तो बनायी जायेंगी और मन के आजाने से कितने ही तेल की मात्रा शरीर मे बढी हुयी हो वह खायी भी जायेंगी,इस बात को लोगो ने धार्मिक पहलू मे जोडा और शनिवार के दिन तेल का दान करवाना शुरु कर दिया तथा शनिवार को तेल से बने पदार्थ आदि खाने से मना भी किया कर दिया। कई स्थानो पर तेल को दान मे लेने वाले नही मिलते है इसलिये धार्मिक भावना मे यह निश्चित कर दिया गया कि अमुक स्थान पर शनि के रूप मे काले पत्थर पर तेल को चढाया जाये,लोगो की आस्था के अन्दर यह बात घर कर गयी कि तेल को शनि पर चढाने से शनि का प्रभाव कम होता है,और लोग इस बात को लेकर चलने लग गये। लेकिन जब खुद के घर मे तेल नही हो और शरीर की अन्य कमी के कारण शरीर काम नही कर रहा हो तो मनोवैज्ञानिक आधार पर भी लोग खरीद कर तेल को चढाने लग गये,जो लोग शरीर से कमजोर है और उनके अन्दर चलने फ़िरने की हिम्मत नही है वे भी तेल को खरीद कर धार्मिक आस्था के चलते शनि के नाम से किसी भी स्थान पर तेल को चढाने लग गये। इस प्रकार से चालाक लोगो की अपनी चलने लगी और उन्होने शनि को तेल चढाने की क्रिया करवाना शुरु कर दिया।<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhS-WZl0k2-0G9LaqvIbNahLvG3QhkTU3I5puR3IqkVidvH-fu7zPhv42cHk8Ip0soCNRmu5QAewPr41wKjFZlvUw9NgsWqudPTtN9JrTCDCchcGbUKV7kafyPBSGDSBHm_8CrLRjpifFY/s400/Bikram+Yoga+Man.gif" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhS-WZl0k2-0G9LaqvIbNahLvG3QhkTU3I5puR3IqkVidvH-fu7zPhv42cHk8Ip0soCNRmu5QAewPr41wKjFZlvUw9NgsWqudPTtN9JrTCDCchcGbUKV7kafyPBSGDSBHm_8CrLRjpifFY/s320/Bikram+Yoga+Man.gif" width="192" /></a></div>
शनि के रूप मे किये जाने वाले दान पुण्य आदि के नाम से लोगो के लिये एक प्रकार से उद्योग बन गये और गली मे मुहल्ले मे शहर मे कई कई स्थान बना दिये गये,किसी को कोई स्थान नही मिला तो शनि का पेड शमी को बताकर उसके ऊपर ही तेल को चढाया जाने लगा,कई लोगो ने शनि के लिये काले अनाज को दान करवाना शुरु कर दिया कोई लोहे को दान करने के लिये कहने लगा और कोई अपने अपने मत से कई कारण बताकर समस्या को तो देखा नही लेकिन समस्या की पूर्ति के लिये अपनी वाहवाही के लिये शनि के लिये तेल को चढाना आदि बाते शुरु करवा दी,तथा एक प्रकार से भय का भी प्रदान करना शुरु कर दिया कि जो भी शनि के लिये उल्टा बोलता है जो भी शनि की बुराई करता है उसे शनि अपनी वक्र द्रिष्टि देकर बरबाद कर देते है। यह बात कहां साबित होनी थी और कहां उसे प्रयोग कर दिया। जो लोग अधिक मोटे हो जाते है उनका शरीर कोई काम नही करता है जो आलस से घिर जाते है जिन्हे केवल खाने और अपनी शारीरिक क्रियाओं को पूरा करने के लिये रोजाना की जरूरत के लिये धन और वस्तुओं की आवश्यकता होती है,वे अपनी चालाकी वाली वक्र द्रिष्टि से तलासा करते है कि कौन सा ऐसा काम किया जाये जिससे वे अधिक से अधिक साधन प्राप्त करने के लिये अधिक से अधिक चालाकी वाले काम करके अधिक से अधिक लोगो को अपनी वक्र द्रिष्टि से कोपभाजन बनाये। लेकिन यह बात भी शनि देव को प्रदान कर दी। जो लोग मेहनत करते है मजदूरी करते है अपने रोजाना के पेट पालने के उपक्रम करते है शरीर को तोडते है जिन लोगो के अन्दर किसी भी काम करने के लिये अद्भुत शरीर की शक्ति होती है उन्हे शनि के लोगो मे गिना जाने लगा,यह केवल लोगो के अन्दर गलत धारणा के लिये माना जा सकता है और यह धारणा केवल इसी लिये पैदा की जाने लगी कि कैसे भी अपनी वक्र द्रिष्टि से लोगो को निशाना बनाकर लूटा जा सके और अपनी पेट भराई को किया जाता रहे।<br />
शनि को कार्य का रूप भी दिया गया है,जो कार्य करता है वह शनि के रूप मे माना जाता है,जबकि शनि वसा की अधिकता से कार्य करने के लिये कतई मजबूर है,कार्य को करने के लिये शक्ति देने के लिये मंगल को माना जाता है,मंगल की शक्ति से खून के अन्दर बल होगा तो वह अपने आप काम करने लगेगा वह किसी की सहारे की जरूरत को कभी प्रयोग मे नही लेगा,लेकिन शनि वाले व्यक्ति को सहारे की भी जरूरत होगी और अपने लिये जरूरतो को पूरा करने के लिये वह मंगल की सहायता के लिये भी भागेगा। जैसे ही वह अपनी वक्र द्रिष्टि देने मे कामयाब हो जायेगा वह अपने काम को चतुराई से करने भी लगेगा और अपना आक्षेप दूसरो पर देकर मेहनत करने वाले लोगो को शनि की उपाधि भी देने लगेगा। जिन लोगो मे शनि की अधिकता है और जो लोग काम नही कर पाते है जिनकी बुद्धि समय पर काम नही करती है जिन लोगो के अन्दर चतुराई की आदत नही है वे लोग शनि के उपाय करने के लिये तेल भी चढा सकते है और शनि की पूजा पाठ के लिये अपने शरीर के कई कारणो को समाप्त भी कर सकते है,इसलिये जरूरत होती है कि शरीर को मंगल की पूर्ति की जाये यानी शरीर को गर्म रखने के लिये और शरीर के अन्दर पैदा हुये तैलीय पदार्थो की कमी के लिये निश्चित समय पर योग किये जाये जो लोग खुले स्थान मे है वे लोग सुबह शाम की दौड लगाये,मेहनत वाले कामो को करने के बाद तेल जमीन और पत्थरो को दान करे लेकिन वह तेल वास्तविक तेल होना चाहिये यानी वह मनुष्य के शरीर से निकला हुआ तेल पसीने के रूप मे होना चाहिये,वह तेल खरीदा नही होना चाहिये वह घर के अन्दर से नही लेना चाहिये वह तेल मेहनत करने के बाद शरीर से पसीने के रूप मे निकाल कर दान करना चाहिये तब जाकर शनि देव प्रसन्न भी होंगे और दिमाग भी चलेगा,सभी काम चाहे वह शिक्षा का हो चाहे वह नौकरी का हो चाहे वह व्यापार का हो सभी पूरे होने लगेंगे।</div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-633106190988309712012-04-09T12:37:00.002+05:302012-04-09T12:37:55.738+05:30कैसे होते है पति पत्नी मे झगडे ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitOWsl1DlRn2mfiTvf7tOiynbwb1eSBTNwTA2PVAb4ggbpXHcdz8G7aUPQJsyAqCn-REHcu4NeV30oOT-T1JjpEmjy9B-HDEQLSs4gceum2AKpL5AVPqfQnrx6MIskGLxPLvvwBLo0g8so/s1600/kundli.gif" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="254" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitOWsl1DlRn2mfiTvf7tOiynbwb1eSBTNwTA2PVAb4ggbpXHcdz8G7aUPQJsyAqCn-REHcu4NeV30oOT-T1JjpEmjy9B-HDEQLSs4gceum2AKpL5AVPqfQnrx6MIskGLxPLvvwBLo0g8so/s320/kundli.gif" width="320" /></a></div>
आदमी का जीवन कुल पांच भावो पर टिका हुआ है,माता के भाव से जन्म लेता है शिक्षा के भाव से अपनी विद्या को प्राप्त करता है और परिवार पर टिक जाता है विद्या के बाद काम धन्धे के लिये अपनी योजना को बनाकर या दूसरो की योजना को बनाकर सेवा मे शुरु हो जाता है इस कार्य के बाद वह अपने जीवन साथी के साथ जुड जाता है और जो भी काम जीवन के लिये करने पडते है करता है और अपने जीवन को पूरा करने के बाद मौत के भाव मे जाकर अपनी इहलीला समाप्त कर लेता है। चौथा भाव माता का माना जाता है और चौथे भाव का कार्य शरीर की पालना करना होता है शिक्षा और परिवार का भाव धन और कुटुम्ब को पालने वाला होता है नौकरी और सेवा का भाव जो छठा कहलाता है वह अपनी औकात को संसार मे दिखाने के लिये अपनी हिम्मत से अपने को समाज मे द्रश्य करने का काम करता है,सप्तम का कार्य जो जीवन साथी का भाव कहलाता है वह घर मकान बनाने आगे की संतति को बढाने और परिवार की उन्नति को पैदा करने से होता है। मौत का भाव जो अष्टम का भाव कहलाता है का कार्य अपना भार बच्चो पर छोडना परिवार को अपने हिसाब से चलने के लिये स्वतंत्र करना आदि का काम होता है। आदमी के पास कई प्रकार के दुख भी आते है और सुख भी आते है लेकिन सुख और दुख तब और अधिक प्रतीत होने लगते है जब दिमाग मे भ्रम पैदा हो जाते है। संसार मे कई कार्य आदमी स्वयं करता है और कई कार्य आदमी से भावना को देकर करवाये जाते है। जो लोग दूसरो पर तानाकशी करते है उलाहना देते है और एक दूसरे की प्रतिस्पर्धा को सामने रखकर एक प्रकार का भूत भरते है वे अक्सर राहु की श्रेणी मे आजाते है और राहु का काम होता है कि वह दो लोगो को आपस मे उलझा कर दूर बैठ कर तमाशा देखे और जिस की जीत होती है उसे वाहवाही दे और जो हारता है उसे समाप्त करने के बाद जो भी उसके पास है उसे लेकर अपने को आगे बढाने का उपक्रम करे। जन्म के समय मे राहु केतु जिस भाव मे होते है और जिस राशि मे होते है उसी का प्रभाव आजीवन देते चले जाते है जिस भाव और जिस राशि से गुजरते है वह जन्म के समय के भाव और राशि का प्रभाव देते चले जाते है।इसे ही समय की आंधी कहते है यह लाभ वाले भावो मे और लाभ की राशि मे होता है तो बढोत्तरी करता जाता है वह अगर मृत्यु के भी भाव मे गोचर करता है तो मौत के बाद के प्रकारो को उत्तम प्रकट करता जायेगा और वही राहु केतु अगर हानि की राशि मे है तो वह लाभ के भाव मे भी जाकर अपनी हानि को प्रकट करने लगेंगे। लेकिन दोनो ही स्थान के राहु केतु अपने अपने समय मे आधा सुख और आधा दुख देने का काम करते है अगर जीवन की पहली सीढी पर दुख मिला है तो दूसरी सीढी पर जाकर यह सुख देने लगते है और जब पहली सीढी पर सुख मिला है तो अन्त की सीढी पर दुख जरूर मिलेगा इसी बात को सोच कर विद्वान लोग अपने जीवन को जीते रहते है और अच्छे मे बुरे समय को तथा बुरे समय मे अच्छे समय की कल्पना को करने के बाद अपने काम करते रहते है।<br />
प्रस्तुत कुंडली वृष लगन की है जातक का राहु पंचम भाव मे कन्या राशि का है। जातक का विद्या वाला क्षेत्र और परिवार वाला क्षेत्र राहु ने अपने कब्जे मे किया हुआ है। जातक को राजनीति हो या खेलकूद हो या फ़िर मनोरंजन का क्षेत्र हो बच्चे पैदा करने वाला क्षेत्र हो या जीवन साथी के लाभ वाला क्षेत्र को सभी के अन्दर छिद्रान्वेषण करने की आदत जन्म के समय से ही है। पिछले समय मे राहु ने मौत के भाव को गोचर मे लिया था उस समय जातक के परिवार मे जो भी मौत से सम्बन्धित कारण बने थे सभी के अन्दर राहु वाली बीमारियों के कारणो का बनना माना जाता है इसी के साथ जो भी कारण जातक ने अपने कार्य आदि के लिये किये थे सभी के अन्दर आकस्मिक रूप से बनने वाले कर्जा दुश्मनी बीमारी और जानजोखिम के कारण इसी राहु ने प्रदान किये थे। जहां भी रिस्क लेने की बात आयी होगी जातक को किसी न किसी बीमारी से जूझना पडा होग। भले ही वह संतान के रहने का स्थान हो या शरीर मे खुद के जननांग या लैट्रिन बाथरूम वाली बीमारियो का होना हो। घर के अन्दर का पारिवारिक माहौल हो या पिता के बाहरी कारणो का बनना हो,चाहे वह धर्म कर्म सम्बन्धी कारणो का करना हो या धन को प्रयोग करने का कारण हो सभी बाते राहु के कारण असमंजस और अचानक बनने की बात समझी जा सकती है। वर्तमान मे राहु का गोचर सप्तम मे हो रहा है यह राशि वैसे भी अन्दरूनी मामले की राशि कही जाती है और जब यह सप्तम मे आजाती है तो पति या पत्नी के द्वारा चुभने वाली बात को करना आम बात माना जाता है अक्सर जीवन साथी के भाव मे इस राशि के आने से जातक के जीवन साथी का भाव एक ही माना जाता है कि वह गुप्त साधनो से धन कमाना और गुप्त कार्य करने के बाद अपनी पोजीशन को बढाना दुनिया के भेद समझ कर उनसे काम लेना और जब किसी बात का नही होना हो तो अपने ही कार्यों से अपने को समाप्त कर लेना। कामुकता का होना भी अधिक पाया जाता है कारण इस भाव मे वृश्चिक राशि का होना कामुकता को सामने रखकर ही जीवन साथी के साथ सम्बन्ध बनाये जाते है और जीवन साथी की किसी भी कार्य योजना पर नजर रखना भी एक कारण बन जाता है जब राहु का गोचर इस राशि मे होता है तो जीवन साथी के साथ भी कुछ अच्छा नही होता है वह अपनी किसी न किसी प्रकार की शरीर की बीमारी से भी परेशान होता है और अपने ही ख्यालो मे खोने के बाद तथा अपनी ही बात को उत्तम रूप से मानने के बाद वह समझ भी नही पाता है कि उसे क्या करना है और क्या नही करना है।<br />
सप्तम भाव को मंत्रणा का भाव भी कहा जाता है,किसी भी प्रकार से जातक को किसी प्रकार की सलाह लेने के समय मे कोई अटपटी बात सुनने को मिले या किसी भी काम को करने के लिये रास्ता नही मिल रहा हो तो वह अपने जीवन साथी से रास्ता बनाने की बात करे तो जीवन साथी पर राहु की छाया होने के कारण जीवन साथी सीधा सा उल्टी बात का इशारा जातक के पूर्वजो तक कर देता है या किसी प्रकार से उल्टे धर्म कर्म की बात भी करता है,जब पारिवारिक बात होती है या सामाजिक बात होती है तो जातक अपने अनुसार उल्टी बात को ही अपने जीवन साथी से सुनता है। इसके अलावा राहु की नजर लाभ के भाव मे होने से और लाभ के भाव मे मीन राशि के होने से जातक को लाभ होता है बाहरी लोग लाभ देने के लिये सामने आते है लाभ आता भी है लेकिन उस लाभ का रूप सामने दिखाई ही नही देता है तो जातक के अन्दर एक सोच पैदा हो जाती है कि आखिर मे प्राप्त किया गया लाभ गया कहां,जीवन साथी की भी भावना होती है कि वह जो भी लाभ के साधन है वह कमाता भी खूब है और जोड कर भी रखता है लेकिन वह सब जाता कहां है,अक्सर जीवन साथी के द्वारा लाभ के कारणो को अपने परिवार के भाई बहिनो के लिये या भतीजो के लिये खर्च कर दिया जाता है,जातक को पता भी नही होता है कि कितना कहां पर खर्च हुया है इस बात पर भी जातक के मन के अन्दर एक प्रकार का गलत भाव पैदा हो जाता है,यही नही अक्सर जो भी कार्य जीवन साथी के द्वारा किये जाते है वह अपनी बहिन के लिये किये जा सकते है अगर बुध लाभ भाव मे है और शुक्र साथ है तो कमन्यूकेशन मोबाइल आदि के लिये भी किये जा सकते है,क्योंकि जन्म का केतु इसी भाव मे होने से जातक का लाभ भी कमन्यूकेसन के साधनो से ही होता है। जातक की गुप्त भावना भी एक प्रकार से कुछ विजातीय या विदेशी लोगो के सम्पर्क मे होने के कारण तथा दोस्ती की भावना मे जीवन साथी के साथ कुछ अटपटा लगने से भी दिमागी क्लेश का होना माना जा सकता है। लगन मे केतु की उपस्थिति शरीर और मन मे खाली पन को भी प्रदान करने वाला होता है जब भी मन से कोई काम करने की बात आती है तो रहने वाले स्थान या कार्य करने वाले स्थान पर खाली पन सा महसूस होता है और जो भी कार्य किये जाते है वहां दोहरे साधन भी प्रयोग करने से दिक्कत का होना माना जा सकता है। राहु जीवन साथी के भाव मे है के द्वारा जीवन साथी के प्रभाव अन्धेरे मे भी रहते है जिससे आशंकाये भी दिमाग मे बलवती हो जाती है और वे आशंकाये दिमाग को कनफ़्यूजन मे डाले रहने के कारण भी दिमाग उत्तेजित रहता है। जब जीवन साथी के भाव मे शमशानी शांति देखने को मिलती है याजीवन साथी का प्रभाव भी राख जैसा दिखाई देता है तो भी एक प्रकार से भावना भर जाती है कि जीवन बेकार है जीवन मे जो भी किया वह भी बेकार है संतान नौकरी अक्समात काम के अन्दर आने वाले अडंगे भी जीवन साथी के बदौलत तैयार हुये है,इस प्रकार से भी जीवन साथी के प्रति दिक्कत का होना माना जाता है। अक्सर सप्तम मे राहु आता है तो वह खुद के द्वारा अपनी छाया चार प्रकार से जरूर देता है,एक तो ऊंची शिक्षा और पिता परिवार पर छाया जाती है और उनके बारे मे उल्टा बोला जाता है,दूसरा मित्र वर्ग को आहत किया जाता है और जो भी मित्र वर्ग से कमन्यूकेशन किया जाता है मिलना होता है उसपर भी शक की जाने लगती है जिसके कारण भी घर मे क्लेश का होना माना जाता है इस शक से जातक को अपने जीवन साथी से डर भी लगने लगता है,जातक के शरीर पर भी इस राहु का असर रहने से भी जातक कितना ही अपने को सम्भालने की कोशिश करे अपनी कितनी ही शक्ति का प्रयोग करे जीवन साथी के राहु के द्वारा उसके एक एक क्रिया कलाप पर नजर रखने से भी दिक्कत का आना होता है जैसे किसे टेलीफ़ोन किया गया किससे क्या बात की गयी उस बात का मतलब क्या है मोबाइल मे अमुक नम्बर कहां से आया है इंटरनेट से किसे क्या लिखा गया कौन कौन मित्रता की श्रेणी मे जुडा है और उससे क्या कया बात होती है आदि बाते भी देखने को मिलती है इस बात से भी यह लगने लगता है कि जब किसी भी काम मे स्वतंत्रता नही है तो जीवन का मतलब क्या होता है और जब किसी भी काम को करने के बाद केवल क्लेश ही मिलता है तो फ़िर इस जीवन का मतलब ही क्या रह जाता है। इन सभी समस्या से बचने के लिये राहु के उपाय करना जरूरी है:-<br />
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<li>जातक को तामसी भोजन और जल्दी से राय लेने वाले कारणो से बचना चाहिये राहु के इस गोचर के समय मे अगर किसी प्रकार से कोई नशा आदि करने की आदत बन जाती है तो आदमी अपने जीवन के साथ साथ अपने परिवार को भी अन्धेरे मे डाल देता है,उसके शरीर मे उन रोगो का आना शुरु हो जाता है जो आगे चलकर जब राहु छठे भाव मे जायेगा तो उसे कष्ट भोगने के लिये अस्पताली जीवन भी जीना पड सकता है और अपने जीवन साथी से अगर अधिक मन मुटाव हो जाता है तो अदालती मामले और वकीलो आदि मे खर्चा करने के बाद खुद का वैवाहिक जीवन भी समाप्त करना पडेगा और केवल भटकाव के अलावा और कोई रास्ता नही मिलेगा.</li>
<li>राहु के सप्तम मे गोचर के समय जातक को शराब आदि की जरूरत महशूश होने लगती है जब शराब या इसी प्रकार के नशे की आदते शरीर से जुड जाती है तो व्यक्ति अपने जीवन साथी से लगाव भी कम कर देता है वह अपने भौतिक जीवन को तबाह भी करने लगता है और जो काम किया जाता है वह बिना सोचे विचारे किया जाता है फ़लस्वरूप बरबादी ही मिलती है.</li>
<li>राहु के सप्तम मे गोचर करने से सामाजिक जीवन और पारिवारिक जीवन से जुडे लोग दूर होने लगते है उसका कारण कई प्रकार की होनी और अनहोनी बातो को वे करने लगते है और आक्षेप भी देने लगते है वास्तव मे व्यक्ति कतई साफ़ भी हो लेकिन उस व्यक्ति के हर क्रिया कलाप पर कोई न कोई ब्लेम दिया जाने लगता है,इसका कारण एक और भी माना जाता है कि व्यक्ति का जीवन साथी उल्टे शब्दो का प्रयोग समाज के लोगो या परिवार के लोगो से प्रयोग मे लाता है और अपनी ही भावना और अपने ही ख्वाब मे घूमता रहना भी माना जाता है.</li>
<li>एकान्त मे बैठे रहना एक अजीब सी दुनिया मे खोये रहना तथा ख्वाब के टूटने पर गुस्सा करना चिढचिढाना आदि भी देखा जाता है इससे भी साधारण रूप से चलता हुआ जीवन अचानक दिक्कत मे आजाता है.</li>
<li>इस राहु से बचने के लिये गलत संगति और अपने घर के भेद किसी से नही कहने चाहिये साथ ही जीवन साथी को किसी भी प्रकार से अकेला नही छोडना चाहिये वह अपने शरीर के साथ कोई भी अपघात कर सकता है और कोई बहुत बडा आक्षेप भी दे सकता है जो आजीवन केवल सोचने के अलावा और कोई रास्ता नही दे सकता है।</li>
<li>इस भाव के राहु के गोचर के बाद अक्सर वैवाहिक जीवन उन्ही का बचता है धर्म कर्म और अपने अनुसार सही मार्ग पर चलते रहे होते है अगर किसी भी प्रकार से गलत कामो मे अनैतिक कामो मे और कमाई के अन्दर कोई भी गलत नीति का प्रयोग किया गया है तो राहु सभी कार्यों के साथ जिसके लिये जो गलत कार्य किया गया है उसे ही नष्ट करने के लिये आगे आता है यह भी देखा गया है कि सौ मे से सत्तर लोगो का वैवाहिक जीवन इसी बीच मे संकट मे आजाता है.</li>
<li> जातक को तीन भ्रमो से दूर रहना जरूरी है एक तो हकीकत मे चलने वाले भ्रम दूसरे गुप्त रूप से किये जाने वाले कार्यों के भ्रम और तीसरे आशंकाओ वाले भ्रम.</li>
<li>जातक को अधिक कनफ़्यूजन मे फ़ौरन स्नान करना चाहिये या किसी दूसरे माहौल मे अपने को ले जाना चाहिये.</li>
<li>जातक को किसी भी प्रकार से वाहनो मे कपडो मे घर के अन्दर के रंग मे या दैनिक उपयोग मे लाये जाने वाले कारणो मे नीले रंग का सख्त परहेज करने लग जाना चाहिये.</li>
<li>अगर अधिक से अधिक मृत्यु वाले कारणो मे जाना पड रहा है अधिक से अधिक अस्पताली कारणो मे जाना पड रहा है घर की बिजली से चलने वाले उपकरण जल्दी जल्दी खराब होने लगे है तो जातक को राहु का तर्पण कराये बिना राहत नही मिल सकती है.</li>
<li>जातक को चांदी की चैन या मोती की माला गले मे पहिननी चाहिये साथ ही किसी प्रकार से भी विजातीय लोग जो अपने धर्म से उल्टे चलते है का साथ नही पकडना चाहिये.</li>
<li>जातक को राहु की शांति के लिये केतु के उपाय भी करने चाहिये,जैसे शिव की आराधना लोगो की सहायता वाले काम तीर्थ स्थानो या धार्मिक स्थानो की यात्रा करना भटकने वाले जीवो की रक्षा करना पक्षियों और जानवरो पर दया करना आदि.</li>
<li>जातक केतु के मंत्रों का जाप रोजाना सुबह सूर्योदय से पहले एक माला करता है तो भी राहु से शांति का कारण बनने लगता है,केतु का मंत्र है ऊँ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सह केतुवे नम: </li>
<li>जातक एक लहसुनिया शनिवार की सुबह सूर्योदय से पहले गणेश मन्दिर मे दान कर दे और दूसरी लहसुनिया पेंडल बनाकर गले मे धारण कर ले तो भी फ़ायदा मिलता है.</li>
<li>चार मुखी रुद्राक्ष चादी के तार मे बंधवा कर (छेद करवा कर नही) गले मे चांदी की चैन मे पहिने तो भी फ़ायदा होता है.चार मुखी रुद्राक्ष का मंत्र है - ऊँ स्त्रीं हुं फ़ट स्वाहा.</li>
<li>अगर कोई बात समझ मे नही आयी है और जीवन साथी के रिस्तो मे बहुत अधिक कडवाहट हो गयी है तो ईमेल करने के बाद राय ले सकते है ईमेल है - astrobhadauria@gmail.com या शाम को चार बजे से नौ बजे के बीच मे टेलीफ़ोन कर सकते है,मोबाइल नम्बर है +91-9414386494. </li>
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</div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1237095130492097331.post-67279867736879250682012-04-08T22:50:00.001+05:302012-04-08T22:50:40.188+05:30क्यों हो जाते है प्लान फ़ेल ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मन का कारक चन्दा होता मन की बात बताता है।<br />
मन अगर गन्दा हो जाये पीछे ही रह जाता है॥<br />
कन्या चन्द्र ऊंचा देखे नीचे नही सहारा है।<br />
करे नौकरी पाले घर को मिलता नही किनारा है॥<br />
कर्जा और दुश्मनी पाले अपने से भी बैर करे।<br />
बिना बात के बैर निकाले कन्या राशि आन परे॥<br />
लौट दुपहरी सूरज बैठा नवां भाव कहलाता है।<br />
जीवन के अन्तिम समय मे पुत्र नाम कर जाता है॥<br />
वक्री शनि हो चौथा बैठा धनु राशि का भेद भरे।<br />
बार बार मन पलटे शिक्षा से आज अलग कल विलग करे॥<br />
मन की सोच निराली होती शिक्षा पूरी कर ना पाये।<br />
बात विदेशी सोचे मन में घर का घर मे रह जाये॥<br />
मंगल राहु छठे हो बैठे भ्रम मे जीवन जाता है।<br />
करे चाकरी औरों की जस का तस रह जाता है॥<br />
गुप्त प्रेम मे मन को भेजे राहु गुरु जब युति करे।<br />
छठा राहु और अष्टम गुरु बदले की मन मे हवा भरे॥<br />
बारहवा केतु ख्वाब दिखाता कुर्सी ऊंची दिखलाता है।<br />
सिंह राशि का टीचर बन कर दूर कहीं बस जाता है॥<br />
धन भाग्य का शुक्कर मालिक बक्री दस मे जा बैठे।<br />
लगन का मालिक बुध साथ हो ज्योतिष से पैसा ऐंठे॥<br />
उल्टी बात बताता है स्त्री जाति ठग जाती है।<br />
किस्मत उल्टी चलती है गंदी आदत लग जाती है॥<br />
छठवां मंगल जासूसी करता मित्र भेद के बारे में।<br />
ऊंचा बनने की बात करे गिनती करता न्यारे में॥<br />
बाप कमाई खुद की भाई ऊंची शिक्षा मे लुट जाती है।<br />
ख्वाब की खातिर रोता रहता शिक्षा ना हो पाती है॥<br />
राहु दशा हो भ्रम मे रहता राहु तीसरा होता है।<br />
तर्क करने का मानस देता झूठ बोलता रहता है॥<br />
करे बराबरी महान पुरुष की अपनी बात बताता है।<br />
राहु शनि के अन्तर में ख्वाब नही बन पाता है॥</div>रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttp://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.com1